
बिहार विधानसभा चुनाव जोर-शोर से शुरू हो गया है. बिहार के किसी भी चुनाव में जाति की भूमिका अहम मानी जाती है. राजनीतिक दलों से लेकर मतदाता तक टिकट तय करने से लेकर वोट देने तक जाति को ध्यान में जरूर रखते हैं. बिहार सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले ही एक जातीय सर्वेक्षण भी कराया था. सरकार की इस कोशिश को भी वोट बैंक की राजनीति से ही जोड़ कर देखा गया. आइए हम आपको बताते हैं कि बिहार में जातियां कितनी हैं.
बिहार में कब हुआ था जातीय सर्वेक्षण
बिहार सरकार ने 2023 में गांधी जयंती के अवसर पर जाती सर्वेक्षण का आंकड़ा जारी किया था. साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले 2023 में बिहार की तत्कालीन महागठबंधन सरकार ने दो चरण में जातीय सर्वेक्षण कराया था. इस सर्वेक्षण का पहला चरण सात जनवरी से 21 जनवरी के बीच और दूसरा चरण 14 अप्रैल से अगस्त के पहले हफ्ते तक चला था. इस दौरान दो करोड़ 83 लाख 44 हजार 107 घरों का सर्वे हुआ था.
इस सर्वेक्षण से पता चला था कि बिहार में कुल 203 नोटिफाइड जातिया रहती हैं. इनमें से हिंदुओं की चार जातियों- ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ और भूमिहार और मुसलमानों की तीन जातियों शेख, पठान और सैयद को अनारक्षित या सामान्य श्रेणी में रखा गया था.
बिहार में कितनी है पिछड़ी जातियों की आबादी
अगर हम बिहार की आबादी में श्रेणीवार जनसंख्या देखें तो पिछड़ा वर्ग की आबादी करीब 27.12 फीसदी, अति पिछड़ा वर्ग की आबादी करीब 36.01 फीसदी, अनुसूचित जाति की 19.65 फीसदी, अनुसूचित जनजाति की 1.68 फीसदी और अनारक्षित वर्ग की आबादी करीब 15.52 फीसदी है.
इस सर्वे में 196 जातियों को आरक्षित श्रेणी में रखा गया है. इन 196 जातियों में से 112 अति पिछड़ी जातियों की सूची में, 30 पिछड़ी जातियों की सूची में, 22 अनुसूचित जाति की श्रेणी में और 32 अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में हैं.
इनके अलावा जिलाधिकारियों ने 10 ऐसी जातियां भी रिपोर्ट की जिन्हें न तो राष्ट्रीय और न ही प्रदेश की सूची में नोटिफाइड किया गया है. ये जातियां हैं- बंगाली कायस्थ, खत्री, धारामी, सुतिहार, नवेसूद, भूमिज, बहेलिया, रस्तोगी, केवानी और दर्जी.
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