Mohan Yadav,Amit Shah,Shivraj Singh Chouhan: मध्य प्रदेश की सियासत में पिछले कुछ वक्त से जो सवाल हवा में तैर रहा था, गुरुवार को ग्वालियर के मंच से अमित शाह ने उसका औपचारिक जवाब दे दिया. केंद्रीय गृह मंत्री का यह कहना कि "मोहन यादव, शिवराज सिंह चौहान से भी ज्यादा ऊर्जा के साथ राज्य को विकसित बनाने में जुटे हैं," देखा जाए ये महज एक प्रशंसा नहीं बल्कि बीजेपी हाईकमान की ओर से की गई एक गहरी राजनीतिक 'पोज़िशनिंग' है.
अटकलों पर विराम: संदेश साफ
अटल बिहारी वाजपेयी की 101वीं जयंती पर आयोजित 'अभ्युदय मध्य प्रदेश ग्रोथ समिट' के दौरान दिया गया यह बयान कोई संयोग नहीं था. राजनीतिक गलियारों में इसे एक सोचा-समझा संकेत माना जा रहा है. संदेश बहुत स्पष्ट है—मध्य प्रदेश में सत्ता के केंद्र को लेकर अब कोई संशय नहीं है. यही मुख्यमंत्री हैं, यही दिशा है और यही हाईकमान का अंतिम शब्द है.
शिवराज इतिहास, मोहन यादव वर्तमान
अमित शाह ने अपने संबोधन में शिवराज सिंह चौहान को राज्य से "बीमारू" टैग हटाने का पूरा श्रेय दिया, लेकिन साथ ही बहुत सलीके से उन्हें 'अतीत' के पन्नों में जगह दे दी. शिवराज के योगदान को स्वीकारते हुए शाह ने जिस तरह मोहन यादव को 'भविष्य' के रूप में पेश किया, वह एक क्रमिक विकास जैसा दिखा. यह बदलाव न तो टकराव भरा था और न ही अचानक. इसे एक सम्मानजनक विदाई और नए नेतृत्व के अभिषेक के रूप में प्रस्तुत किया गया.
यह तारीफ मोहन की नहीं, शाह के फैसले की है
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर इस पूरे घटनाक्रम की एक और परत खोलते हैं. उनका मानना है कि यह बयान दरअसल मोहन यादव की मुहर नहीं, बल्कि अमित शाह के अपने फैसले पर मुहर थी.
गिरिजा शंकर साफ कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान अब मध्य प्रदेश की राजनीति में निर्णायक कारक नहीं हैं. वे सम्मानित नेता हैं, राष्ट्रीय चेहरा हैं और पार्टी की संपत्ति हैं लेकिन अब राज्य की राजनीति का केंद्र नहीं. उनका युग मिटाया नहीं जा रहा, उसे सील किया जा रहा है.
संस्थागत वैधता बनाम जन-करिश्मा
मोहन यादव की शक्ति का स्रोत शिवराज की तरह 'जनभावना' या 'निजी राजनीतिक पूंजी' नहीं है. उनकी असली ताकत 'संस्थागत वैधता' है. वे हाईकमान द्वारा चुने गए हैं, और आज की बीजेपी में यही सबसे बड़ी शक्ति है. वे एक ऐसे प्रशासक हैं जो व्यवस्था के साथ चलते हैं, वैचारिक रूप से सुरक्षित हैं और संगठन के समानांतर कोई नया शक्ति केंद्र खड़ा नहीं करते. यही गुण उन्हें इस दौर का सबसे 'आदर्श मुख्यमंत्री' बनाता है.
गुटबाजी के दावों पर कड़ा प्रहार
राज्य में ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे दिग्गजों के बीच गुटबाजी की जो चर्चाएं मीडिया में चलती रही हैं, शाह की यात्रा ने उन पर भी पानी फेर दिया. विश्लेषकों के अनुसार, मध्य प्रदेश में कोई संरचनात्मक चुनौती या विद्रोह नहीं है. बीजेपी यहां एक 'नियंत्रित नेतृत्व संक्रमण' (Controlled Leadership Transition) कर रही है, जहां व्यक्तित्व आधारित शासन की जगह अब आदेश आधारित व्यवस्था ने ले ली है.
प्रतिद्वंद्विता नहीं, केंद्रीकरण की कहानी
ग्वालियर का यह बयान साबित करता है कि मध्य प्रदेश की कहानी अब 'शिवराज बनाम मोहन' की नहीं रह गई है. यह पूरी तरह से नियंत्रण और केंद्रीकरण की कहानी है. बीजेपी ने शिवराज को हटाया नहीं, बल्कि उन्हें राज्य की राजनीति से राष्ट्रीय विरासत की ओर 'स्थानांतरित' कर दिया है. अब मध्य प्रदेश में मोहन यादव 'शिवराज 2.0' नहीं, बल्कि एक नई और पूरी तरह अलग शैली के मुखिया हैं, जो दृश्यता से ज्यादा स्थिरता के लिए नियुक्त किए गए हैं.
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