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चंबल घाटी की बीहड़ों में डाकुओं की कहानियां हमेशा से रहस्य और रोमांच से भरी रही हैं, लेकिन कुसमा नाइन का नाम इन कहानियों का एक ऐसा अध्याय है, जिसके बिना यह सिलसिला अधूरा-सा प्रतीत होता है. अपने क्रूर कारनामों से आतंक का परचम लहराने वाली यह महिला डाकू अपने समय की सबसे खूंखार डकैत मानी जाती थी. कुसमा नाइन का नाम सुनते ही लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते थे. रविवार को कुसमा नाइन की मौत हो गई. उम्रकैद की सजा काट रही कुसमा लंबे समय से टीबी की बीमारी से जूझ रही थी. कुसमा के जीवन का सफर बीहड़ों से शुरू हुआ था लालाराम श्रीराम गैंग के साथ उसने डकैती की दुनिया में कदम रखा और फिर राम आसरे फक्कड़ के साथ मिलकर अपने खौफनाक कारनामों को अंजाम दिया था. उसके किस्से ऐसे हैं कि सुनने वाला दहशत में आ जाए. वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शाक्य ने कुसमा नाइन का इंटरव्यू लिया था. आइए जानते हैं कुसमा की जिंदगी से जुड़े कुछ किस्से
प्रेमी के साथ घर छोड़ने से हुई थी शुरुआत: कुसमा का जन्म उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव में हुआ था. 13 साल की उम्र में उसे अपने स्कूल के सहपाठी माधव मल्लाह से प्यार हो गया था. दोनों अपने परिवारों के खिलाफ जाकर घर से भाग गए और दिल्ली पहुंचे. हालांकि, कुसमा के पिता ने पुलिस की मदद से उन्हें पकड़ लिया. इसके बाद उसके पिता ने उसकी शादी जबरन केदार नाई से कर दी. यह घटना कुसमा के जीवन का पहला बड़ा मोड़ थी, जिसने उसके मन में विद्रोह की चिंगारी जलाई.
प्रेमी द्वारा अपहरण और डाकू जीवन की शुरुआत: शादी के बाद भी माधव उसे भूल नहीं पाया. वह चंबल के कुख्यात डाकू विक्रम मल्लाह के गैंग में शामिल हो चुका था. एक दिन माधव अपने गैंग के साथ कुसमा की ससुराल पहुंचा और उसे जबरन अगवा कर लिया. इसके बाद कुसमा विक्रम मल्लाह के गिरोह में शामिल हो गई. यह दूसरा किस्सा था, जिसने उसे अपराध की दुनिया में धकेल दिया और डाकू जीवन की नींव रखी.
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फूलन देवी से टकराव और लालाराम गैंग में शामिल होना: विक्रम मल्लाह के गैंग में रहते हुए कुसमा का फूलन देवी से विवाद शुरू हुआ. फूलन और विक्रम ने उसे लालाराम नाम के डाकू को मारने का जिम्मा सौंपा, जो उनका दुश्मन था. लेकिन कुसमा ने लालाराम को नहीं मारा, बल्कि उसके साथ प्रेम संबंध बना लिए और उसकी गैंग में शामिल हो गई. बाद में उसने लालाराम के साथ मिलकर विक्रम मल्लाह को ही मरवा दिया. इस विश्वासघात और क्रूरता ने उसे गैंग में एक मजबूत पहचान दी.
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गवाहों की फो़ड़ दी आंखें : 1996 में औरैया में कुसमा ने अपने साथी फक्कड़ बाबा के भतीजे की हत्या के मामले में गवाही देने वाले दो लोगों, संतोष और राजबहादुर, को सबक सिखाने की ठानी. उसने गैंग के साथ उनके घर पर हमला किया, उन्हें बीहड़ में ले जाकर बेरहमी से पीटा और उनकी आंखें फोड़ दीं. इस घटना ने पूरे इलाके में दहशत फैला दी और कुसमा की क्रूरता को एक नया आयाम दिया.
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बेहमई कांड का बदला : 1981 में फूलन देवी ने बेहमई कांड में 22 ठाकुरों को मार डाला था. इसका बदला लेने के लिए कुसमा और लालाराम ने 1984 में औरैया के अस्ता गांव में हमला किया. कुसमा ने अपने गैंग के साथ 15 मल्लाहों को लाइन में खड़ा करके गोलियों से भून दिया और उनके घरों को आग लगा दी. इस क्रूर घटना ने उसे "यमुना-चंबल की शेरनी" का खिताब दिलाया और उसकी खूंखार छवि को मजबूत किया.
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