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औरंगाबाद : क्या महाराष्ट्र में अपनी एक मात्र लोकसभा सीट इस बार बचा पाएंगे असदुद्दीन ओवैसी?

Lok Sabha Elections 2024: महाराष्ट्र की संभाजीनगर (औरंगाबाद) लोकसभा सीट पर बड़ा दिलचस्प मुकाबला, एआईएमआईएम के मौजूदा सांसद इम्तियाज जलील का दो शिवसेनाओं से मुकाबला

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औरंगाबाद :  क्या महाराष्ट्र में अपनी एक मात्र लोकसभा सीट इस बार बचा पाएंगे असदुद्दीन ओवैसी?
औरंगाबाद लोकसभा सीट पर मौजूदा सांसद इम्तियाज जलील एक बार फिर एआईएमआईएम के उम्मीदवार हैं.
औरंगाबाद (महाराष्ट्र):

क्या असदुद्दीन ओवैसी महाराष्ट्र में अपनी एकमात्र लोकसभा सीट इस बार बचा पाएंगे? क्या दो शिवसेनाओं की लड़ाई के बीच उनकी पार्टी फिर एक बार बाजी मार लेगी? महाराष्ट्र की संभाजीनगर (औरंगाबाद) लोकसभा सीट पर मुकाबला बड़ा दिलचस्प है. 

भारत में औरंगाबाद नाम के दो शहर हैं, एक है बिहार में और दूसरा है महाराष्ट्र में. महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर का नाम कुछ वक्त पहले ही बदलकर छत्रपति संभाजी नगर कर दिया गया है. शहर का नाम भले ही बदल दिया गया हो, लेकिन यहां की राजनीति अब भी उतनी ही दिलचस्प है जितनी साल 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त थी. 

संभाजी नगर के सांसद इम्तियाज जलील ने तय किया है कि वे रमजान ईद के बाद अपना चुनाव प्रचार शुरू करेंगे, हालांकि इफ्तार के बहाने उन्होंने इलाके के लोगों से मिलना-जुलना शुरू कर दिया है. ओवैसी बंधुओं की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) ने फिर एक बार उन्हें संभाजी नगर से अपना उम्मीदवार बनाया है. जलील को पत्रकारिता छोड़े भले ही 10 साल हो गए हों लेकिन वे मानते है कि आज भी उनके तेवर पत्रकारों जैसे ही हैं. जलील के मुताबिक वे सत्ता की खामियां गिनाते हैं, सरकार से सवाल पूछने पर जोर देते हैं और लोगों की आवाज बनने की कोशिश करते हैं. इस बार भी जलील सत्ताधारी भगवा गठबंधन पर निशाना साधने से नहीं चूक रहे हैं.

चंद्रकांत खैरे 20 साल तक सांसद रहे

इम्तियाज जलील ने सन 2019 के लोकसभा चुनाव में चंद्रकांत खैरे को हराकर महाराष्ट्र में एआईएमआईएम का खाता लोकसभा के लिए खोला था. चंद्रकांत खैरे 1999 से लेकर 2019 तक लगातार 20 साल इस सीट से सांसद रहे. पिछले चुनाव में जलील की जीत इसलिए हो पाई थी क्योंकि खैरे के वोट बैंक में निर्दलीय उम्मीदवार ने सेंध लगा दी थी.

इम्तियाज जलील ने 2019 में करीब तीन लाख 90 हजार वोट लेकर शिवसेना के उम्मीदवार चंद्रकांत खैरे को महज साढ़े चार हजार वोटों के अंतर से हराया था. निर्दलीय उम्मीदवार हर्षवर्धन जाधव ने करीब 285000 वोट लिए थे. माना जाता है कि जाधव ने चंद्रकांत खैरे के वोट बैंक में सेंध लगाई थी जिसकी वजह से खैरे को हार का सामना करना पड़ा था. 

औरंगाबाद में फिर त्रिकोणीय मुकाबला

इस बार भी मुकाबला त्रिकोणीय है. उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना (यूबीटी) से जहां चंद्रकांत खैरे उम्मीदवार हैं तो वहीं एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना भी यहां से अपना उम्मीदवार उतार रही है. चंद्रकांत खैरे का मानना है कि इस बार उन्हें औरंगाबाद के मुसलमान भी वोट देंगे क्योंकि कोविड काल के दौरान उद्धव ठाकरे ने बतौर मुख्यमंत्री बिना किसी भेदभाव के मुस्लिम समुदाय का भी ध्यान रखा था.

हालांकि उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना अपने आप को हिंदुत्ववादी पार्टी बताती है लेकिन अब वह मुस्लिम विरोधी नहीं रह गई है. उद्धव ठाकरे अपने भाषणों में दिवंगत पिता बालासाहेब ठाकरे की तरह मुसलमानों के प्रति आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल नहीं करते. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अब संभाजी नगर के मुसलमानों का ठाकरे के उम्मीदवार को समर्थन मिलेगा?

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण डालता है असर

औरंगाबाद में मुगल शासक औरंगजेब की कब्र है, जिनके नाम से लंबे वक्त तक इस शहर को जाना जाता रहा है. दो साल पहले एआईएमआईएम के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी के यहां आने से सियासी बवाल मच गया था. संभाजीनगर सांप्रदायिक तौर पर बेहद संवेदनशील शहर रहा है. इस शहर का सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास रहा है. यही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण चुनावों के नतीजों पर भी अपना असर डालता है.

बालासाहेब ठाकरे समृद्धि एक्सप्रेस हाईवे को देवेंद्र फडणवीस के सपनों का सुपर हाईवे कहा जाता है. फडणवीस जब पहली बार 2014 में मुख्यमंत्री बने थे तब उन्होंने इसकी योजना बनाई थी. चुनाव प्रचार के दौरान एनडीए इस जैसे तमाम इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों को दिखाकर वोट मांग रही है. चुनावी सड़क किस पार्टी को सफलता की मंजिल तक पहुंचाती है, इसका खुलासा तो चार जून को ही हो पाएगा, जब वोटों की गिनती होगी.

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