नई दिल्ली : बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिन की बैठक शुक्रवार से बेंगलुरु में शुरू होगी। मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण पर किसान विरोधी होने का आरोप झेल रही है और कार्यकारिणी में इस आरोप का जवाब दिया जाएगा। पार्टी उन सात राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति पर भी विचार करेगी जहां वो कमज़ोर है।
सरकार में आने के बाद से बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पहली बार हो रही है। मोदी सरकार का एक साल पूरा होने वाला है और ये मौक़ा है ख़ुद की पीठ थपथपाने का।
प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह का कहना है कि सरकार के काम ने आम आदमी का उत्साह बढ़ा दिया है। उनका दावा है कि सरकार के काम से लोग ख़ुश हैं।
हालांकि बीजेपी को ये एहसास है कि भूमि अधिग्रहण क़ानून को लेकर उसकी छवि किसान विरोधी बन रही है। कार्यकारिणी की बैठक में भूमि अधिग्रहण पर विस्तार से समझाया जाएगा कि कैसे एनडीए का क़ानून यूपीए के क़ानून से बेहतर है। प्रतिनिधियों को बुकलेट दी जाएगी जिसमें इस क़ानून के फ़ायदे गिनाए जाएंगे। ये क़वायद इसलिए है ताकि किसान विरोधी होने के आरोपों का जवाब दिया जा सके। बिहार समेत सात राज्यों में अगले दो साल में चुनाव हैं। इनमें कई राज्य ऐसे हैं जहां बीजेपी कमज़ोर है जबकि दिल्ली में पार्टी की करारी हार हुई। कार्यकारिणी में इस पर भी बात होगी।
बिहार बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं में से एक और केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने एनडीटीवी से कहा कि पार्टी को मज़बूत करने का चिंतन एक सतत प्रक्रिया है।
आडवाणी का मार्गदर्शन
एक बार को छोड़ बीजेपी की हर कार्यकारिणी के समापन में आडवाणी का भाषण हुआ है मगर इस बार ऐसा होगा या नहीं ये पार्टी को नहीं पता। वो बैठक में शामिल हो तो रहे हैं लेकिन शुक्रवार की जनसभा में नहीं जाएंगे। एक वरिष्ठ महासचिव ने उनसे मुलाक़ात भी की थी। आडवाणी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार भी नहीं किया था। पहली बार ऐसा हुआ कि जब उन्होंने पार्टी के लिए किसी चुनाव में प्रचार न किया हो।
ग़ौरतलब है कि मोदी को प्रचार समिति का प्रमुख बनाए जाने के विरोध में आडवाणी ने जुलाई 2013 में गोवा में कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा नहीं लिया था। हालांकि बीजेपी प्रवक्ता शाहनवाज़ हुसैन ने इस बारे में पूछे जाने पर कहा कि पार्टी को सभी बड़े नेताओं का मार्गदर्शन मिलेगा।
कार्यकारिणी में प्रस्ताव पास कर विदेशों में झंडे गाड़ने के लिए मोदी की तारीफ़ की जाएगी। उनकी सभी विदेश यात्राओं का ज़िक्र होगा और कहा जाएगा कि इनसे भारत की छवि सुधरी है। साथ ही विदेशी निवेश लाने में भी मदद मिली है। राजनीतिक आर्थिक प्रस्ताव में मोदी सरकार के कामकाज का गुणगान किया जाएगा और दावा होगा कि पिछले 11 महीनों में सरकार ने महंगाई और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में कामयाबी हासिल की है।
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