सेक्शन 124-अ यानी देशद्रोह... आम तौर पर ऐसा आरोप किसी आतंकी के ऊपर ही लगाया जाता है लेकिन मुंबई पुलिस की नजर में यह काम किया है कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी ने।
पुलिस की एफआईआर कहती है कि असीम के बनाए गए कार्टून के चलते देश में सरकार के खिलाफ विद्रोह की भावना निर्माण हो सकती थी।
रविवार को असीम की हिरासत के लिए अदालत में पेशी के दौरान पुलिस ने काफी ऊंचे दावे किए। पुलिस ने अदालत को बताया कि असीम के अलावा उन्हें और भी लोगों की तलाश है जिन्होंने असीम को कार्टून बनाने और इन्हें इन्टरनेट पर अपलोड करने में मदद की।
कानूनी जानकार असीम की हिरासत पर सवाल उठा रहे हैं। पूर्व आईपीएस वाईपी सिंह का कहना है, "अगर पुलिस के पास मजिस्ट्रेट का आदेश भी आया है तो पुलिस मामला दर्ज कर जांच करती रहती लेकिन गिरफ्तारी करना सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश की अवहेलना की गई है।"
सिंह के अनुसार, "सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा है गिरफ्तारी उस वक़्त की जानी चाहिए जब जांच की दिशा न मिल पाए और आरोपी जांच में सहयोग न करे लेकिन असीम के मामले में ये दोनों ही सही नहीं बैठते हैं।"
कानूनी जानकर बताते हैं कि असीम को गिरफ्तार तो कर लिया गया है लेकिन अगर पुलिस चाहे भी तो यह मामला अदालत में सुनवाई के लिए नहीं ला सकती।
पुलिस को अदालत में बताना होगा कि क्या असीम के कार्टून से देश में विद्रोह की भावना बनी है... क्या असीम के कार्टून को किसी साजिश के तहत बनाकर लोगों को दिखाया गया है... क्या असीम के कार्टून को देखकर किसी ने सरकार के खिलाफ बगावत की है।
जानकार अब यह सवाल भी उठा रहे हैं कि जब पुलिस को असीम की हिरासत नहीं चाहिए थी तो तब रविवार को पेशी के दौरान असीम की हिरासत की मांग ही क्यों की गई।
कानूनी जानकार आशीष चव्हाण ने बताया, "मैंने अबतक के मेरे करियर में ऐसा मामला नहीं देखा जब पहले पुलिस हिरासत मांगती है और फिर अगले दिन ही उसे सरेंडर कर देती है। यह पुलिस की मंशा बताती है की वह केस को लेकर किस तरह काम कर रही है।"
अब जबकि असीम का कहना है कि वह मामले की सुनवाई के लिए न तो वकील की सेवा लेगा और न ही जमानत तो ऐसे में असीम के जेल से बहार आने के सिर्फ गिने-चुने विकल्प ही बचते हैं।
चव्हाण के मुताबिक, "पुलिस चाहे तो सेक्शन 169 के तहत याचिका दायर कर असीम पर से मामला ख़ारिज करने की मांग कर सकती है और असीम की जमानत का विरोध न कर उसे जमानत देने में मदद भी कर सकती है लेकिन ऐसे में भी असीम को अदालत के कुछ नियमों का पालन करने का वायदा करना होगा।"
दूसरी ओर, असीम की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। अगर सरकार चाहे तो भी मामले को ख़त्म नहीं कर सकती है, क्योंकि मामले के शिकायतकर्ता के पास पुलिस की जांच के खिलाफ आवाज उठाने का पूरा हक होता है और वह मामले की फिर से जांच की मांग के साथ-साथ जांच किसी और एजेंसी से कराने की दरख्वास्त कर सकती है। लेकिन, असीम के खिलाफ सिर्फ मुंबई में ही नहीं, महाराष्ट्र के बीड जिले में भी देशद्रोह का मामला दर्ज है।
अब ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मुंबई पुलिस की असीम के खिलाफ की गई कार्रवाई को देखकर क्या बीड पुलिस भी असीम को कार्टून विवाद में गिरफ्तार करती है।
पुलिस की एफआईआर कहती है कि असीम के बनाए गए कार्टून के चलते देश में सरकार के खिलाफ विद्रोह की भावना निर्माण हो सकती थी।
रविवार को असीम की हिरासत के लिए अदालत में पेशी के दौरान पुलिस ने काफी ऊंचे दावे किए। पुलिस ने अदालत को बताया कि असीम के अलावा उन्हें और भी लोगों की तलाश है जिन्होंने असीम को कार्टून बनाने और इन्हें इन्टरनेट पर अपलोड करने में मदद की।
कानूनी जानकार असीम की हिरासत पर सवाल उठा रहे हैं। पूर्व आईपीएस वाईपी सिंह का कहना है, "अगर पुलिस के पास मजिस्ट्रेट का आदेश भी आया है तो पुलिस मामला दर्ज कर जांच करती रहती लेकिन गिरफ्तारी करना सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश की अवहेलना की गई है।"
सिंह के अनुसार, "सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा है गिरफ्तारी उस वक़्त की जानी चाहिए जब जांच की दिशा न मिल पाए और आरोपी जांच में सहयोग न करे लेकिन असीम के मामले में ये दोनों ही सही नहीं बैठते हैं।"
कानूनी जानकर बताते हैं कि असीम को गिरफ्तार तो कर लिया गया है लेकिन अगर पुलिस चाहे भी तो यह मामला अदालत में सुनवाई के लिए नहीं ला सकती।
पुलिस को अदालत में बताना होगा कि क्या असीम के कार्टून से देश में विद्रोह की भावना बनी है... क्या असीम के कार्टून को किसी साजिश के तहत बनाकर लोगों को दिखाया गया है... क्या असीम के कार्टून को देखकर किसी ने सरकार के खिलाफ बगावत की है।
जानकार अब यह सवाल भी उठा रहे हैं कि जब पुलिस को असीम की हिरासत नहीं चाहिए थी तो तब रविवार को पेशी के दौरान असीम की हिरासत की मांग ही क्यों की गई।
कानूनी जानकार आशीष चव्हाण ने बताया, "मैंने अबतक के मेरे करियर में ऐसा मामला नहीं देखा जब पहले पुलिस हिरासत मांगती है और फिर अगले दिन ही उसे सरेंडर कर देती है। यह पुलिस की मंशा बताती है की वह केस को लेकर किस तरह काम कर रही है।"
अब जबकि असीम का कहना है कि वह मामले की सुनवाई के लिए न तो वकील की सेवा लेगा और न ही जमानत तो ऐसे में असीम के जेल से बहार आने के सिर्फ गिने-चुने विकल्प ही बचते हैं।
चव्हाण के मुताबिक, "पुलिस चाहे तो सेक्शन 169 के तहत याचिका दायर कर असीम पर से मामला ख़ारिज करने की मांग कर सकती है और असीम की जमानत का विरोध न कर उसे जमानत देने में मदद भी कर सकती है लेकिन ऐसे में भी असीम को अदालत के कुछ नियमों का पालन करने का वायदा करना होगा।"
दूसरी ओर, असीम की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। अगर सरकार चाहे तो भी मामले को ख़त्म नहीं कर सकती है, क्योंकि मामले के शिकायतकर्ता के पास पुलिस की जांच के खिलाफ आवाज उठाने का पूरा हक होता है और वह मामले की फिर से जांच की मांग के साथ-साथ जांच किसी और एजेंसी से कराने की दरख्वास्त कर सकती है। लेकिन, असीम के खिलाफ सिर्फ मुंबई में ही नहीं, महाराष्ट्र के बीड जिले में भी देशद्रोह का मामला दर्ज है।
अब ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मुंबई पुलिस की असीम के खिलाफ की गई कार्रवाई को देखकर क्या बीड पुलिस भी असीम को कार्टून विवाद में गिरफ्तार करती है।
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