नई दिल्ली:
केंद्रीय गृह मंत्रालय को पहले से ही एहसास था कि आम आदमी पार्टी अपने 21 विधायकों पर लटकी तलवार के लिए उसे ही ज़िम्मेदार ठहराएगी। इसलिए अब केंद्र सरकार की ओर से गृह मंत्रालय के दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जवाब देने का जिम्मा उठाया है। केंद्र याद दिला रहा है कि संसदीय सचिवों के मामले में पहले भी कानून का रुख़ सख़्त रहा है।
पूरा सच नहीं बता रहे केजरीवाल - गृह मंत्रालय
21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाने वाली आम आदमी पार्टी की मुख्य दलील ये है कि दूसरे राज्यों में भी ये होता रहा है, इसलिए उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई एक साज़िश है।
लेकिन, गृह मंत्रालय का कहना है कि पहले भी राज्यों में संसदीय सचिवों का मामला कानून के घेरे में आया है।
कब-कब लाभ के पद माने गए संसदीय सचिव के मुद्दे पर चली है तलवार
संसदीय सचिव का ओहदा राज्यमंत्री के बराबर माना जाता है, इसलिए कई जगहों पर कानूनन वे 10 फ़ीसदी के दायरे से ज़्यादा नहीं हो सकते। 2006 में शीला दीक्षित ने संसदीय सचिव नियुक्त करने के लिए छूट ली थी। लेकिन शीला को भी एक संसदीय सचिव नियुक्त करने की छूट मिली थी। लेकिन, आम आदमी पार्टी इसी दलील से चिपकी हुई है कि उसके संसदीय सचिवों ने कोई फ़ायदा नहीं लिया है। जाहिर है, कानूनन इस दलील का टिकना मुश्किल है। जानकारों की भी यही राय है।
पूरा सच नहीं बता रहे केजरीवाल - गृह मंत्रालय
21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाने वाली आम आदमी पार्टी की मुख्य दलील ये है कि दूसरे राज्यों में भी ये होता रहा है, इसलिए उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई एक साज़िश है।
लेकिन, गृह मंत्रालय का कहना है कि पहले भी राज्यों में संसदीय सचिवों का मामला कानून के घेरे में आया है।
कब-कब लाभ के पद माने गए संसदीय सचिव के मुद्दे पर चली है तलवार
- 2005 में हिमाचल प्रदेश में हाई कोर्ट ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद्द कर दी थी
- 2009 में गोवा भी ऐसी नियुक्तियां रद्द की गईं
- 2015 में पश्चिम बंगाल में भी अदालत ने पाया कि 13 संसदीय सचिवों की तादाद अनुपात से आगे जा रही है
- राजस्थान हाई कोर्ट ने भी राज्य के 5 संसदीय सचिवों को नोटिस दिया
- पंजाब में 19 और हरियाणा में 4 ऐसी नियुक्तियों को चुनौती दी गई है
- कर्नाटक में भी ऐसे 10 सचिव चुनौती का सामना कर रहे हैं
- तेलंगाना में 6 सचिवों पर स्टे लगा दिया गया है
संसदीय सचिव का ओहदा राज्यमंत्री के बराबर माना जाता है, इसलिए कई जगहों पर कानूनन वे 10 फ़ीसदी के दायरे से ज़्यादा नहीं हो सकते। 2006 में शीला दीक्षित ने संसदीय सचिव नियुक्त करने के लिए छूट ली थी। लेकिन शीला को भी एक संसदीय सचिव नियुक्त करने की छूट मिली थी। लेकिन, आम आदमी पार्टी इसी दलील से चिपकी हुई है कि उसके संसदीय सचिवों ने कोई फ़ायदा नहीं लिया है। जाहिर है, कानूनन इस दलील का टिकना मुश्किल है। जानकारों की भी यही राय है।
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