
अरुण जेटली की फाइल तस्वीर
नई दिल्ली:
केंद्र सरकार ने कहा है कि वह दागी जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों के जल्द निपटारे के लिए विशेष अदालतों के गठन से किसी भी हालत में पीछे नहीं हटेगी. राज्यसभा में सदन के नेता अरुण जेटली ने विपक्षी दलों की पुरजोर आपत्तियों को सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि कानून के निर्माताओं को यह नहीं कहना चाहिए कि उनके खिलाफ चल रहे मामलों में देरी होती रहे. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और एनसीपी का कहना था कि यह एफिडेविट बतौर नागरिक सांसदों को मिले मूल अधिकारों का हनन है. समाजवादी पार्टी के नरेश अग्रवाल ने संविधान के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उदाहरण देते हुए कानून के समानता की बात कही. अग्रवाल ने अदालत के आदेश और सरकार के हलफनामे पर आपत्ति जताई. उनका कहना था कि ऐसा कानून आतंकवादियों के लिए भी नहीं है.
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वहीं कांग्रेस के आनंद शर्मा ने कहा कि जनप्रतिनिधियों की प्रोफाइलिंग नहीं होनी चाहिए. चुने हुए जनप्रतिनिधियों को खलनायक की तरह पेश नहीं किया जाना चाहिए. हमारे देश में मर्डर और रेप जैसे बड़े अपराध होते हैं, आप राजनेताओं को सिंगल आउट करेंगे तो इससे गलतफहमी पैदा होगी, सवाल मूल अधिकारों का है. एनसीपी के माजिद मेमन ने कहा कि सरकार का यह संवैधानिक दायित्व है कि सभी लोगों को स्पीडी जस्टिस मिले. एक ही वर्ग यानी राजनेताओं को यदि स्पीडी जस्टिस की सुविधा दी जाती है तो यह उन सभी लोगों के अधिकारों का हनन है जो सालों से जेल में हैं.
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मनोनीत सदस्य केटीएस तुलसी ने कहा कि गरीब लोग 10, 15 साल से जेल में सिर्फ इसलिए रहते हैं कि वह गरीब हैं. ऐसे में स्पीडी जस्टिस का अधिकार उनको भी मिलना चाहिए. इस पर सदन के नेता अरुण जेटली ने कहा कि यह सही है कि सभी का स्पीडी ट्रायल हो. यह भी सही है कि राजनेताओं पर लोग लांछन लगाते हैं, लेकिन हम लोग कानून के निर्माता हैं, क्या हमें यह कहना चाहिए कि कम से कम हमारे केसेज के निपटारे में देर होती रहे. यह हमारे हित में है कि आरोप लगने पर हम उस मामले से फ़ौरन मुक्त हों. जेटली के जवाब पर विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि आपने गलत तरीके से व्याख्या की है. हमारा कहना है कि केवल विधायिका को सिंगल आउट करना ठीक नहीं है.
VIDEO : दागी जनप्रतिनिधियों के लिए विशेष अदालतें
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर 1581 सांसदों और विधायकों पर करीब 13500 लंबित मामलों के निपटारे के लिए 12 विशेष अदालतों के गठन की बात कही थी. इस पर 7 करोड़ 80 लाख रुपये का खर्च आने का अनुमान था. इस योजना को वित्त मंत्रालय ने भी हरी झंडी दे दी थी. अब देखना है कि कब तक ये विशेष अदालतें शुरू हो पाती हैं.
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वहीं कांग्रेस के आनंद शर्मा ने कहा कि जनप्रतिनिधियों की प्रोफाइलिंग नहीं होनी चाहिए. चुने हुए जनप्रतिनिधियों को खलनायक की तरह पेश नहीं किया जाना चाहिए. हमारे देश में मर्डर और रेप जैसे बड़े अपराध होते हैं, आप राजनेताओं को सिंगल आउट करेंगे तो इससे गलतफहमी पैदा होगी, सवाल मूल अधिकारों का है. एनसीपी के माजिद मेमन ने कहा कि सरकार का यह संवैधानिक दायित्व है कि सभी लोगों को स्पीडी जस्टिस मिले. एक ही वर्ग यानी राजनेताओं को यदि स्पीडी जस्टिस की सुविधा दी जाती है तो यह उन सभी लोगों के अधिकारों का हनन है जो सालों से जेल में हैं.
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मनोनीत सदस्य केटीएस तुलसी ने कहा कि गरीब लोग 10, 15 साल से जेल में सिर्फ इसलिए रहते हैं कि वह गरीब हैं. ऐसे में स्पीडी जस्टिस का अधिकार उनको भी मिलना चाहिए. इस पर सदन के नेता अरुण जेटली ने कहा कि यह सही है कि सभी का स्पीडी ट्रायल हो. यह भी सही है कि राजनेताओं पर लोग लांछन लगाते हैं, लेकिन हम लोग कानून के निर्माता हैं, क्या हमें यह कहना चाहिए कि कम से कम हमारे केसेज के निपटारे में देर होती रहे. यह हमारे हित में है कि आरोप लगने पर हम उस मामले से फ़ौरन मुक्त हों. जेटली के जवाब पर विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि आपने गलत तरीके से व्याख्या की है. हमारा कहना है कि केवल विधायिका को सिंगल आउट करना ठीक नहीं है.
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गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर 1581 सांसदों और विधायकों पर करीब 13500 लंबित मामलों के निपटारे के लिए 12 विशेष अदालतों के गठन की बात कही थी. इस पर 7 करोड़ 80 लाख रुपये का खर्च आने का अनुमान था. इस योजना को वित्त मंत्रालय ने भी हरी झंडी दे दी थी. अब देखना है कि कब तक ये विशेष अदालतें शुरू हो पाती हैं.
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