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बंगाल के 'अपराजिता' विधेयक की राह में कौन सी अड़चनें, जानिए कानून की शक्ल लेना कितना मुश्किल

अपराजिता विधेयक को पारित होने के लिए अब राज्यपाल और राष्ट्रपति दोनों की मंजूरी की जरूरत है और मिसालें दिखाती हैं कि ये कितना मुश्किल हो सकता है.

बंगाल के 'अपराजिता' विधेयक की राह में कौन सी अड़चनें, जानिए कानून की शक्ल लेना कितना मुश्किल
नई दिल्ली:

पश्चिम बंगाल विधानसभा में मंगलवार को 'अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक' सर्वसम्मति से पारित हो गया. इस कानून के तहत बलात्कार और हत्या के मामलों में या बलात्कार के ऐसे मामलों में जहां पीड़िता को मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, आरोपी को मौत की सजा का प्रावधान है. हालांकि इस विधेयक को अब राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा, उनके हस्ताक्षर के बाद ही ये कानून का शक्ल ले पाएगा. इससे पहले आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार के भी इसी तरह के विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति का इंतजार कर रहे हैं.

अपराजिता विधेयक को पारित होने के लिए अब राज्यपाल और राष्ट्रपति दोनों की मंजूरी की जरूरत है और मिसालें दिखाती हैं कि ये कितना मुश्किल हो सकता है.

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आंध्र प्रदेश सरकार के 2019 के दिशा विधेयक और महाराष्ट्र सरकार के 2020 के शक्ति विधेयक में भी ऐसे ही बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के मामलों में मौत की सजा का प्रावधान है. दोनों ही विधेयक को राज्य विधानसभाओं में सर्वसम्मति से पारित किया गया, लेकिन अभी तक किसी को भी राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली है.

‘अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक, (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) विधेयक 2024' का उद्देश्य बलात्कार और यौन अपराधों से संबंधित नए प्रावधानों को शामिल करके महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा मजबूत करना है.

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अपराजिता विधेयक में क्या-क्या हैं प्रावधान :

  • बलात्कार पीड़िता की मौत की सूरत में दोषियों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान
  • बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के दोषी व्यक्तियों को आजीवन कारावास की सजा
  • भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 अधिनियम और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 को पश्चिम बंगाल राज्य में उनके लागू करने के संबंध में संशोधित करने का प्रस्ताव है, ताकि सजा को बढ़ाया जा सके तथा महिलाओं व बच्चों के खिलाफ हिंसा के जघन्य कृत्य की शीघ्र जांच और सुनवाई के लिए रूपरेखा तैयार की जा सके.
  • विधेयक में कहा गया है, "ये राज्य की अपने नागरिकों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के मौलिक अधिकारों को बनाए रखने और ये सुनिश्चित करने की अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है कि बच्चों के खिलाफ बलात्कार और यौन अपराधों के जघन्य कृत्यों का कानूनी तरीके से पूरी ताकत से मुकाबला किया जाए."
  • विधेयक में जांच और अभियोजन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव करने की बात कही गई है. इसमें कहा गया है कि बलात्कार के मामलों की जांच शुरुआती रिपोर्ट के 21 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए, जो पूर्व की दो महीने की समय सीमा से कम है.
  • विधेयक के अनुसार, बार-बार अपराध करने वालों के लिए सजा आजीवन कारावास होगी, जिसका अर्थ होगा कि दोषी व्यक्ति को शेष जीवनकाल तक कारावास में रहना होगा.
  • प्रस्तावित विधेयक में अदालती कार्यवाही से संबंधित किसी भी सामग्री को बिना अनुमति के छापने या प्रकाशित करने पर तीन से पांच साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान है.
  • इन बदलावों को लागू करने के लिए विधेयक में जिला स्तर पर ‘अपराजिता कार्यबल' नाम से एक विशेष कार्यबल बनाने का भी सुझाव दिया गया है, जिसका नेतृत्व पुलिस उपाधीक्षक करेंगे. ये कार्यबल नए प्रावधानों के तहत अपराधों की जांच के लिए जिम्मेदार होगा.

पिछले महीने सरकारी आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक महिला चिकित्सक के साथ बलात्कार और उसकी हत्या की घटना के मद्देनजर विधानसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र बुलाया गया है.

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महाराष्‍ट्र के शक्ति विधेयक का प्रावधान :

  • संशोधित शक्ति विधेयक में गैंगरेप के दोषियों को मृत्युदंड तक की सजा का प्रावधान
  • FIR दर्ज होने के 30 दिन के भीतर पुलिस को जांच पूरी करनी होगी
  • इलेक्ट्रॉनिक सबूत देने में विलंब करने पर इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर को भी जेल होगी
  • एसिड अटैक और महिलाओं के खिलाफ साइबर क्राइम से जुड़े अपराध भी शक्ति विधेयक में प्रावधान
  • फर्जी आरोप लगाने वालों पर भी दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान
  • महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध के लिए मौत की सजा का प्रावधान
  • दोषियों के लिए मृत्युदंड, आजीवन कारावास और भारी जुर्माना सहित कड़ी सजा और मुकदमे की त्वरित सुनवाई का प्रावधान
  • प्रस्तावित कानून को राज्य में लागू करने के लिये विधेयक के मसौदे में भादंसं, सीआरपीसी और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की प्रासंगिक धाराओं में संशोधन करने का प्रस्ताव
  • कानून का रूप ले लेने पर इसे 'शक्ति अधिनियम' कहा जाएगा
  • 15 दिनों के भीतर किसी मामले में जांच पूरी करने और 30 दिन के भीतर सुनवाई का प्रावधान
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हैदराबाद में हुए बालात्कार और हत्या के एक विभत्स मामले के बाद आंध्र प्रदेश विधानसभा में 2019 में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर ऐसा ही एक 'दिशा' विधेयक पास हुआ था, जिसे बाद में मंजूरी के लिए राष्ट्र्रपति के पास भेजा गया था, जो अब तक लंबित है.

'आंध्र प्रदेश दिशा विधेयक' में क्या-क्या प्रावधान :

  • महिलाओं के ख़िलाफ़ आपराधिक मामलों का निपटारा 21 दिनों में किया जा सकेगा
  • पुलिस को सात दिनों के भीतर पूरी करनी होगी जांच
  • स्पेशल कोर्ट को 14 दिनों के भीतर ट्रायल पूरा करना होगा
  • 'आंध्र प्रदेश दिशा विधेयक' में दोषी को फांसी की सजा का प्रावधान
  • पुख्ता सबूत होने पर अदालतें 21 दिन में दोषी को सुना सकती हैं मौत की सज़ा
     

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