मौत की सजायाफ्ता शबनम और सलीम द्वारा दायर की गई पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने सुनवाई पूरी कर ली. परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने के जुर्म में मौत की सजा दी गई है. सुप्रीम कोर्ट इन पर बाद में फैसला सुनाएगा. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना ने सुनवाई की. चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने कहा कि हम ऐसे मामले में दोषी के अधिकारों पर फोकस या जोर नहीं देना चाहते जिसमें 10 महीने के बच्चे सहित सात लोगों की हत्या की गई. शबनम की वकील ने कहा कि उसका जेल में बर्ताव अच्छा है. वह जेल के स्कूल के बच्चों को पढ़ाती है. वह जेल के कई सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल होती है. सुप्रीम कोर्ट ने वकील से कहा कि आप कह रही हैं कि 10 महीने के बच्चे को मारने के बाद उसके व्यवहार में बदलाव आया है? चीफ जस्टिस ने कहा कि हम समाज के लिए न्याय करते हैं. हम ऐसे अपराधी, जिसको दोषी ठहराया जा चुका है, को माफ नहीं कर सकते क्योंकि उसका दूसरे अपराधियों के साथ व्यवहार अच्छा है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इस मामले में सभी पहलुओं को देखने के बाद फैसला दिया गया था. SC ने आगे कहा कि प्लान करके हत्या की गई थी, अपराधियों ने अपने शातिर दिमाग का इस्तेमाल करके घटना को अंजाम दिया. याचिकाकर्ता की ओर से आनंद ग्रोवर ने कहा कि उसका बच्चा छोटा है, उसकी देखभाल वाला कोई नहीं है.
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SC ने कहा कि उनका अफेयर था दोनों मिलते थे साथ में घूमने जाते थे, पिता ने इनके संबंध पर आपत्ति जताई, जिसके बाद घर में रोज़ लड़ाई होने लगी उसके बाद उन्होंने ने पिता की हत्या का प्लान किया और फिर सबको मार दिया, बच्चों को भी नहीं छोड़ा उनको भी मारा. प्लान करके किया गया था उसके बाद जांच भटकाने की कोशिश की गई.
SC ने कहा कि पिता की आपत्ति के बाद रोज़ लड़ाई होने लगी उसके बाद पूरे योजनाबद्ध तरीके से सबकी हत्या की. सरकारी वकील ने कहा कि उन्होंने 10 दिन पहले इसका प्लान बनाना शुरू किया. याचिकाकर्ता की वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि अगर एक प्रतिशत भी चांस है फांसी की सज़ा टालने का तो कोर्ट को उसपर विचार करना चहिए. हम इस मामले की गंभीरता समझते है और वीभत्स तरीके से हत्या की गई है, यह मानते हैं. लेकिन कोर्ट को फांसी की सज़ा कम करने पर विचार करना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हमको SC का कोई ऐसा फैसला दिखाइए, जिसमें जेल के अच्छे आचरण के कारण फांसी की सज़ा को कम किया गया हो.
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इस दौरान मौत की सजा पर CJI की बड़ी टिप्पणी आई है. CJI एसए बोबडे ने कहा कि हमारे फैसले का सम्मान किया जाना चहिए, मौत की सज़ा को स्वीकार किया जाना चाहिए लेकिन आज कल ऐसा नहीं हो रहा है. मौत की सजा का अंत बेहद जरूरी है और दोषी को इस सोच में नहीं रहना चाहिए कि मौत की सजा हमेशा खुली रहेगी और वो जब चाहे इसे चुनौती दे सकता है, जैसा कि हाल ही की घटनाओं में पता चला है.
कोर्ट ने कहा, अंतहीन मुकदमेबाजी की अनुमति नहीं दी जा सकती है. जाहिर है कि ये टिप्पणी निर्भया केस में दोषियों के कानूनी दांव पेंचों पर की गई है.
शबनम की वकील ने कहा कि जेल में शबनम के व्यवहार पर रिपोर्ट दाखिल करने की इजाज़त दी जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप केस के इस स्टेज पर उसको दाखिल करना चाहती हैं, इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या हम अब यह देखें कि सजा के बाद दोषी का किस तरह का बर्ताव रहा है. सजा के बाद उसके बर्ताव के आधार पर कैसे फैसला दे सकते हैं. इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती वरना दूसरे दोषी भी इसी आधार पर कोर्ट आने लगेंगे और सजा माफ करने की मांग करेंगे. इससे दोषियों के लिए एक अनावश्यक रास्ता खुल जाएगा.
अमरोहा कांड के हत्यारों के रिव्यू मामले में चीफ जस्टिस ने कहा कि दोषी का जेल में व्यवहार सज़ा में रियायत का आधार नहीं होना चाहिए. इसमें कोई शक नहीं कि सज़ा का मकसद कैदी का सुधार होता है. कैद में अपराधी के सुधरने की गुंजाइश रहती है. इस गुंजाइश पर ट्रायल के दौरान ही बात होनी चाहिए. सीजेआई ने कहा कि कैद के दौरान सिर्फ आपको सज़ा में रियायत देने से ही काम खत्म नहीं होगा बल्कि इससे आप सोचें देश भर की जेलों में बंद कैदियों की अर्ज़ियों की बाढ़ आ जाएगी. हमें भी रियायत..हमें भी...
राज्य सरकार ने शबनम और सलीम की पुनर्विचार याचिका का विरोध किया. उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि कोर्ट ने अपने फैसले में यह माना है कि यह रेयर ऑफ द रेयरेस्ट अपराध था. बहुत सोच समझकर लोगों की हत्या की. उसको किसी पर दया नही आई. वह दस लोगों की लाश के साथ बैठी हुई थी.
केंद्र ने भी अपनी अर्जी का जिक्र किया. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हमने एक और मामले में आवेदन दाखिल किया है. फांसी अभी तक नहीं हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में दिशा-निर्देश दिए थे और यह पूर्णतया दोषी केंद्रित है. निचली अदालत द्वारा मौत की सजा दिए जाने के बाद समय सीमा होनी चाहिए. हम समाज केंद्रित दिशानिर्देश चाहते हैं. चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा कि जब ये केस आए तो बहस करिए.
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बता दें कि मौत की सजा पाने वाली शबनम पहली महिला है. शबनम और सलीम को 2010 के मामले में दोषी ठहराया गया है, जिसमें शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी थी. 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों के डेथ वारंट पर रोक लगा दी थी.
कोर्ट ने कानून तय किया था कि दोषी को तब तक फांसी नहीं दी जा सकती जब तक वो अपने सारे कानूनी उपाय पूरे ना कर ले. सर्वोच्च अदालत ने ही इन दोनों को 15 मई को फांसी की सजा बरकरार का आदेश सुनाया था. कोर्ट ने कहा था कि दोषी को कोई राहत नहीं दी जा सकती. एक मां होने के बावजूद उसने अपने भाई के बच्चे को भी नहीं बख्शा.
सामूहिक हत्याकांड की ये वारदात 2008 में यूपी में अमरोहा में हुई थी. जस्टिस एके सीकरी और यूयू ललित की अवकाशकालीन पीठ ने यह आदेश दंपति की रिट याचिका पर जारी किया. अमरोहा कोर्ट ने 21 मई को उनके नाम से ब्लैक वारंट जारी कर मौत की सजा देने की तारीख के लिए सुनवाई की तारीख तय दी थी. शबनम की ओर से वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर ने कहा कि दोनों अपनी सजा के खिलाफ पुनर्विचार याचिका और राष्ट्रपति को क्षमा याचना अर्जी देना चाहते हैं.
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गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2013 में दोनों को मौत की सजा देने के सेशन कोर्ट के 2010 के फैसले को सही ठहराया था. सलीम और शबनम का एक दूसरे से प्यार था. सलीम बेकार था जबकि शबनम शिक्षामित्र के रूप में एक स्कूल में पढ़ाती थी. वे दोनों शादी करना चाहते थे और शबनम का परिवार इसके सख्त खिलाफ था. 15 अप्रैल 2008 को सलीम और शबनम ने मिलकर पूरे परिवार का गला काटकर हत्या कर दी.
शबनम ने राष्ट्रपति से सज़ा माफ़ी की भी गुहार की, लेकिन घटना की विभत्सता देखते हुए, वहां से भी न तो शबनम की सज़ा माफ़ हुई न कम हुई. साथ ही सलीम को भी वही सज़ा मिली जो शबनम को. उसकी भी माफ़ी याचना पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा अस्वीकार कर दी गई थी. उसकी भी रिव्यू पिटिशन पेंडिंग है. अगर रिव्यू पिटिशन में फैसला बरकरार रहता है तो शबनम फांसी की सज़ा पाने वाली आज़ाद भारत की पहली महिला होगी.
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क्या थी पूरी घटना?
दअरसल यूपी के अमरोहा डिस्ट्रिक्ट के बावनखेड़ी गांव में 15 अप्रैल, 2008 को शबनम और उसके प्रेमी सलीम ने मिलकर शबनम के घर में उसके परिवार के सात लोगों की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी थी. मरने वालों में शबनम के मां-बाप, शबनम के दो भाई, शबनम की एक भाभी, शबनम की एक मौसी की बेटी और शबनम का एक भतीजा यानि एक बच्चा था. ये मामला शबनम और सलीम की प्रेम कहानी का है. शबनम के परिवार को इन दोनों का ये रिश्ता मंज़ूर नहीं था. विरोध में शबनम ने मौका देखकर और सलीम के साथ प्लानिंग कर इन 7 लोगों की हत्याओं को अंजाम दे दिया.
पहले इन दोनों ने सबके खाने में कुछ मिलाया और उसके बाद एक धारदार कुल्हाड़ी से एक के बाद एक, पूरे परिवार की हत्या कर दी. जिस एक इंसान के साथ शबनम उस रात लगातार कॉल में थी वो दरअसल सलीम ही था. सलीम ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया था और वो कुल्हाड़ी, जिससे क़त्ल किया गया था, वो भी ठीक उसी जगह मिली जहां उसने बताई थी.
यूपी के अमरोहा जिले में अप्रैल, 2005 में हुई सनसनीखेज वारदात में शबनम ने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने माता-पिता, दो भाईयों, उनकी पत्नियों और 10 महीने के भांजे की गला घोंटकर हत्या कर दी थी. प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ को दोनों दोषियों के वकीलों ने कहा कि उनके सुधरने की संभावना को ध्यान में रखते हुये मौत की सजा कम की जाए. शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर और मीनाक्षी अरोड़ा से पूछा कि क्या दोषसिद्धि के बाद इन दोषियों के अच्छे व्यवहार पर विचार किया जा सकता है.
पीठ ने टिप्पणी की कि प्रत्येक अपराधी के बारे में कहा जाता है कि वह दिल से निर्दोष है लेकिन हमें उसके द्वारा किए गए अपराध पर भी गौर करना होगा. शीर्ष अदालत ने 15 अप्रैल 2008 को हुए इस अपराध के लिए सलीम और शबनम की मौत की सजा 2015 में बरकरार रखी थी. दोनों मुजरिमों को निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी जिसे 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था.
सलीम और शबनम का प्रेम प्रसंग चल रहा था और वे शादी करना चाहते थे लेकिन महिला का परिवार इसका विरोध कर रहा था. यूपी के अमरोहा जिले में 15 अप्रैल, 2008 को महिला के पूरे परिवार की हत्या कर दी गई. प्रारंभिक जांच पड़ताल में महिला ने यही दर्शाया कि अज्ञात हमलावरों ने उसके परिवार पर हमला किया था. लेकिन जांच के दौरान पता चला कि शबनम ने ही सलीम को यह अपराध करने के लिए उकसाया था. इस अपराध से पहले शबनम ने परिवार के सदस्यों के दूध में नशीला पदार्थ मिला दिया था. इसके बाद खुद उसने अपने नन्हे मासूम भतीजे का गला घोंट दिया था.
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