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किराये का कमरा से अपने संस्था की शुरुआत, कहानी स्वामी प्रणवानंद की...जिनकी वजह से आज भारत में है पश्चिम बंगाल

आपको बता दें कि स्वामी प्रणवानंद का जन्म बुधवार माघी पूर्णिमा के दिन हुआ था. वह तारीख थी 29 जनवरी का और साल था 1896 . उनका जन्म बंग-भूमि के फरीदपुर जनपद के वाजितपुरा गांव में हुआ था.

किराये का कमरा से अपने संस्था की शुरुआत, कहानी स्वामी प्रणवानंद की...जिनकी वजह से आज भारत में है पश्चिम बंगाल
स्वामी प्रणवानंद जी ने की थी भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना (फोटो क्रेडिट - भारत सेवाश्रम संघ)
नई दिल्ली:

NDTV के EXCLUSIVE इंटरव्यू में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भारत सेवाश्रम संघ के स्वामी प्रणवानंद जी का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि अब जिनको भारत के विभाजन का इतिहास मालूम है उन्हें मालूम है कि  भारत सेवा संघ की स्थापना प्रमुख स्वामी प्रणवानंद जी ना होते तो ना होते तो पश्चिम बंगाल आज बांग्लादेश का हिस्सा होता है. उन्हीं के कारण बंग भंग हुआ  और पश्चिम बंगाल आज हमारा हिस्सा है. मैं भारत सेवा संघ को अच्छे से जानता हूं. यह सात अर्थ में सन्यास के सारे संस्कारों से युक्त एक देशभक्तों का जमघट है.

अमित शाह ने जिन स्वामी प्रणवानंद जी का जिक्र किया है उनके बारे में कम ही लोगों को पता है. आज हम आपको स्वामी प्रणवानंद जी के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं...

1896 में हुआ था जन्म

स्वामी प्रणवानंद का जन्म बुधवार माघी पूर्णिमा के दिन हुआ था. वह तारीख थी 29 जनवरी का और साल था 1896 . उनका जन्म बंग-भूमि के फरीदपुर जनपद के वाजितपुरा गांव में हुआ था. अगर हम मौजूदा समय की बात करें तो फरीदपुर को बांग्लादेश में मदारीपुर जनपद के नाम से जाना जाता है. स्वामी प्रणवानंद के बचपन का नाम बुधाई था. यह नाम इसलिए रखा गया क्योंकि उनका जन्म बुधवार को हुआ था. हालांकि, अन्प्राशन के बाद घरवालों ने उनका नाम विनोद रखा. हालांकि, शुरू से ही साधुवृत्ति को देखकर बहुत से लोग उन्हें साधु कहकर भी बुलाते थे. 

1924 में अर्द्ध कुंभ में हुए थे दीक्षित, मिला था नया नाम

कहा जाता है कि स्वामी प्रणवानंद जी 1924 में प्रयागराज आए थे. वे यहां आचार्य विनोद के रूप में आए. जब वह प्रयागराज आए थे उस दौरान वहां अर्द्ध कुंभ चल रहा था. इसी दौरान माघी पूर्णिमा के दिन स्वामी गोविंदानंद गिरि जी महाराज ने नवयुवक आचार्य विनोद को संन्यास की दीक्षा दी थी. इसी दिन उन्हें नया नाम यानी स्वामी प्रणवानंद मिला था. और वह इसी दिन से स्वामी प्रणवानंद के नाम से जाने जाने लगे. 

स्वामी प्रणवानंद जी ने एक किराए के कमरे से शुरू किया था अपने संस्था का काम

स्वामी प्रणवानंद जी ने भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना 1917 में वाजितपुर में की थी. इसके बाद उन्होंने गया में 1924, बनारस और पुरी में 1926 और प्रयागराज में 1930 के कुंभ पर्व की थी. उन्होंने कोलकाता के बालीगंज में वर्ष 1933 में भारत सेवाश्रम संघ की शाखाओं की भी स्थापना की थी. कहा जाता है कि उन्होंने जब इस संस्था की स्थापना की थी उस दौरान वह खुद भी एक किराये के कमरे में ही रहते थे. 

बिहार के गया में भी की थी साधना

स्वामी प्रणवानंद जी ने बिहार के गया शहर में साधना भी की थी. कहा जाता है कि स्वामी गंभीरनाथ से दीक्षा लेने के बाद जब स्वामी प्रणवानंद जी काशी में साधना कर रहे थे उसी दौरान उन्हें अपने पिता के निधन की खबर मिली. उसके बाद स्वामी प्रणवानंद जी पिता के पिंडदान के लिए वे गया तीर्थ के लिए गए. उसी दौरान उन्होंने गया की एक गुफा में साधना की. यह वही गुफा थी जिसमे उनके गुरु स्वामी गंभीरनाथ भी तपस्या कर चुके थे.

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