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यह 56 साल पुरानी सिंधु जल संधि है
देश में उठ रही इस समझौते को खत्म करने की मांग
सरकार ने कहा कि ऐसी संधि के लिए परस्पर विश्वास होना जरूरी
यह पूछे जाने पर कि दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए क्या सरकार सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करेगी तो विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, ''ऐसी किसी संधि पर काम के लिए यह महत्वपूर्ण है कि दोनों पक्षों के बीच परस्पर सहयोग और विश्वास होना चाहिए.'' साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि संधि की प्रस्तावना में यह कहा गया है कि यह 'सद्भावना' पर आधारित है.
फिर पूछे जाने पर कि भारत इस संधि को खत्म करेगा तो उन्होंने कोई ब्यौरा नहीं दिया और सिर्फ इतना कहा कि कूटनीति में सब कुछ बयां नहीं किया जाता और उन्होंने यह नहीं कहा कि यह संधि काम नहीं कर रही है.
इस संधि के तहत ब्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों के पानी का दोनों देशों के बीच बंटवारा होगा. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने सितंबर 1960 में इस संधि पर हस्ताक्षर किया था.
पाकिस्तान यह शिकायत करता आ रहा है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है और वह कुछ मामलों में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए भी आगे गया है.
स्वरूप ने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच इस संधि के क्रियान्वयन को लेकर मतभेद है.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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