विज्ञापन

Justice Yashwant Verma को हटाने के लिए सभी दल सहमत, Supreme Court कमेटी ने की थी सिफारिश

न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास पर नकदी मिलने की घटना के बाद गठित जांच समिति की रिपोर्ट के बारे में पूछे जाने पर रीजीजू ने कहा कि तीन न्यायाधीशों की समिति की रिपोर्ट का उद्देश्य भविष्य की कार्रवाई की सिफारिश करना था क्योंकि केवल संसद ही एक न्यायाधीश को हटा सकती है.

Justice Yashwant Verma को हटाने के लिए सभी दल सहमत, Supreme Court कमेटी ने की थी सिफारिश
  • सरकार ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने के लिए सभी दलों से बातचीत की है.
  • सुप्रीम कोर्ट की इंटरनल कमेटी ने वर्मा को हटाने की सिफारिश की है.
  • केंद्रीय मंत्री किरेन रीजीजू ने विपक्षी दलों का समर्थन मिलने की पुष्टि की.
  • हस्ताक्षर प्रक्रिया जल्द शुरू होगी, लेकिन सदन का चयन अभी बाकी है.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।

जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने पर सरकार की सभी दलों से बात हुई है. सुप्रीम कोर्ट की इंटरनल कमेटी ने पाया कि वर्मा को हटाने की सिफारिश की जाए. सरकार ने इसीलिए सभी दलों से बात की है ताकि आम राय बन सके. सभी दलों से इसके लिए हस्ताक्षर लिए जाएंगे. अभी तय नहीं है कि यह प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाएगा या राज्य सभा में.

केंद्रीय मंत्री किरेन रीजीजू ने बृहस्पतिवार को कहा कि प्रमुख विपक्षी दलों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को हटाने के प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए अपनी सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है और इस संबंध में सांसदों के हस्ताक्षर कराने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो सकती है. उन्होंने कहा कि सरकार ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि यह प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाएगा या राज्यसभा में.

मानसून सत्र में आएगा प्रस्ताव

लोकसभा के लिए कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है. राज्यसभा के लिए कम से कम 50 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होती है. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा यह निर्णय लेने के बाद कि प्रस्ताव किस सदन में लाया जायेगा, हस्ताक्षर कराये जायेंगे. संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होकर 21 अगस्त तक चलेगा.

न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के अनुसार, जब किसी न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव किसी भी सदन में स्वीकार कर लिया जाता है, तो अध्यक्ष या सभापति, जैसा भी मामला हो, तीन-सदस्यीय एक समिति का गठन करेंगे जो उन आधारों की जांच करेगी, जिनके आधार पर न्यायाधीश को हटाने (महाभियोग) की मांग की गई है.

समिति में भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, 25 उच्च न्यायालयों में से किसी एक के मुख्य न्यायाधीश और एक ‘‘प्रतिष्ठित न्यायविद'' शामिल होते हैं.

रीजीजू ने कहा कि चूंकि यह मामला न्यायपालिका में भ्रष्टाचार से जुड़ा है, इसलिए सरकार सभी राजनीतिक दलों को साथ लेना चाहती है.

न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास पर नकदी मिलने की घटना के बाद गठित जांच समिति की रिपोर्ट के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि तीन न्यायाधीशों की समिति की रिपोर्ट का उद्देश्य भविष्य की कार्रवाई की सिफारिश करना था क्योंकि केवल संसद ही एक न्यायाधीश को हटा सकती है.

न्यायमूर्ति वर्मा का मामला

मार्च में राष्ट्रीय राजधानी में न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना हुई थी और जले हुए बोरों में नोट पाए गए थे. न्यायमूर्ति वर्मा उस समय दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे. न्यायाधीश ने हालांकि नकदी के बारे में अनभिज्ञता का दावा किया था, लेकिन उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति ने कई गवाहों से बात करने और उनके बयान दर्ज करने के बाद उन्हें दोषी ठहराया.

समझा जाता है कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा था, लेकिन न्यायमूर्ति वर्मा ने इंकार कर दिया. उच्चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया था, जहां उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है. न्यायमूर्ति खन्ना ने तब न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश करते हुए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com