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This Article is From May 26, 2014

अक्षरधाम मामला : छह बरी लोगों ने गुजरात सरकार से मुआवजा मांगा

मुंबई:

वर्ष 2002 के अक्षरधाम मंदिर हमला मामले में निचली अदालतों द्वारा दोषी ठहराए जाने, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल में बरी कर दिए जाने वाले छह आरोपियों ने 'अपराध में उन्हें गलत तरीके से फंसाने' के लिए गुजरात सरकार से आज मुआवजे की मांग की।

जमीयत उलेमा महाराष्ट्र की तरफ से आज आयोजित संवाददाता सम्मेलन में बरी किए जाने वाले लोगों ने उन अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की जिन्होंने उन पर अभियोजन चलाया। छह आरोपियों में से पांच अदम अजमेरी, मुफ्ती अब्दुल कय्यूम मंसूरी, मोहम्मद सलीम शेख, अब्दुलमियां कादरी और अल्ताफ हुसैन संवाददाता सम्मेलन में मौजूद थे।

सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई को सभी छह आरोपियों को अक्षरधाम मामले में बरी कर दिया और मामले में लापरवाहीपूर्ण जांच के लिए गुजरात पुलिस की खिंचाई की जिसमें सभी आरोपियों पर आतंकवाद गतिविधियां निरोधक कानून (पोटा) के तहत अभियोजन चल रहा था।

निचली अदालत ने जहां अजमेरी और मंसूरी को मौत की सजा सुनाई थी, वहीं अन्य को दस वर्ष से लेकर उम्रकैद तक की सजा सुनाई। बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी को बरी कर दिया।

जमीयत उलेमा महाराष्ट्र के कानूनी प्रकोष्ठ के सचिव गुलजार आजमी ने आरोपियों के लिए मुआवजे की मांग करते हुए कहा कि उनमें से अधिकतर ने दस वर्ष से ज्यादा वक्त जेल में बिताए हैं।

बरी हुए आरोपी मोहम्मद सलीम शेख ने कहा, 'मैं 13 साल से सउदी अरब में काम कर रहा था, जब उन्होंने यह कहते हुए मुझे उठाया कि मेरे पासपोर्ट में समस्या है। उन्होंने मुझे बुरी तरह पीटा, मेरे पीठ पर अब भी जख्म हैं और मेरा पैर टूट गया।' वहीं एक अन्य आरोपी ने कहा, 'इस मामले में हमारी जिंदगी बर्बाद हो गई और हम कहीं के नहीं रहे।'

जमीयत उलेमा ए महाराष्ट्र के अध्यक्ष मौलाना मुस्तकीम अहसान आजमी ने कहा कि जमीयत देश भर में आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार युवकों को कानूनी सहयोग मुहैया कराता है।

गौरतलब है कि 2002 के अक्षरधाम आतंकवादी हमले में 32 लोग मारे गए थे। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने छह आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि पोटा के तहत अभियोजन की मंजूरी देना बिना सोचे समझे मशीनी काम की तरह था और इसमें दिमाग नहीं लगाया गया, इसलिए इसे खारिज किया जाता है। इसमें यह भी कहा गया कि पोटा के तहत प्रक्रिया का पालन किए बगैर आरोपियों के इकबालिए बयान दर्ज किए गए।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह भी कहा था कि मामले में इकबालिया गवाह के बयान का स्वतंत्र साक्ष्यों से मिलान नहीं किया गया।

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