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This Article is From Jan 06, 2025

SC पहुंची अखिल भारतीय संत समिति, पूजा स्थल अधिनियम 1991 को दी चुनौती

अखिल भारतीय संत समिति ने वकील अतुलेश कुमार के माध्‍यम से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है. अर्जी में कहा गया है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है.

SC पहुंची अखिल भारतीय संत समिति, पूजा स्थल अधिनियम 1991 को दी चुनौती
अखिल भारतीय संत समिति की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में 17 फरवरी को सुनवाई होगी. (फाइल फोटो)
नई दिल्‍ली:

पूजा स्थल अधिनियम 1991 (Places Of Worship Act 1991) मामले में अखिल भारतीय संत समिति सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंची. समिति ने सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थल अधिनियम 1991 को चुनौती दी है. अपनी अर्जी में समिति ने कहा है कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है. अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 17 फरवरी को सुनवाई होगी. 

अखिल भारतीय संत समिति ने वकील अतुलेश कुमार के माध्‍यम से अर्जी दाखिल की. इस अर्जी में कहा गया है कि समिति 18.5 लाख पुजारी और 12 लाख संतों का प्रतिनिधित्व करती है. साथ ही कहा गया है कि समिति सनातन हिंदू धर्म को लेकर 6 लाख गांवों और 9 लाख मठ व मंदिरों में काम करती है. 

इसके साथ ही अर्जी में कहा गया है कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है और धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है. संत समिति 1991  में पारित केंद्र सरकार के इस कानून से ठगा हुआ महसूस करती है. 

12 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश

दरअसल 12 दिसंबर 2024  को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि उसके अगले आदेश तक देश में पूजा स्थलों के खिलाफ कोई और मुकदमा तो दाखिल हो सकता है, लेकिन उन्हें पंजीकृत नहीं किया जा सकता है. 

साथ ही यह भी निर्देश दिया गया था कि लंबित मुकदमों (जैसे ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा शाही ईदगाह, संभल जामा मस्जिद आदि से संबंधित) में अदालतों को सर्वेक्षण के आदेश सहित प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित नहीं होंगे. 

मामले में अलग-अलग कई याचिकाएं दाखिल 

यह अंतरिम आदेश भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की विशेष पीठ ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 से संबंधित याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई करते हुए पारित किया था. 

इसके तहत 15 अगस्त, 1947 की स्थिति से पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र में परिवर्तन पर रोक है, जहां कुछ याचिकाओं में अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती दी गई, वहीं कुछ अन्य ने इसके सख्त रूप से लागू करने की मांग की है. 

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