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अकबर इलाहाबादी : हिन्दुस्तानी ज़बान और तहज़ीब के दिलेर शायर, जिन जैसा कोई दूसरा नहीं

"चलो अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाएं, अपने अधिकारों के लिए लड़ें, नहीं तो गुलामी की जंजीरें हमेशा के लिए बंध जाएंगी." अपनी कलम से अकबर इलाहाबादी ने अंग्रेजों के खिलाफ भी आवाज बुलंद की.

अकबर इलाहाबादी : हिन्दुस्तानी ज़बान और तहज़ीब के दिलेर शायर, जिन जैसा कोई दूसरा नहीं
लोगों के दिलों में बसी अकबर इलाहाबादी की शायरी

अकबर हुसैन, जो बाद में अकबर इलाहाबादी हो गए, उन्होंने अपनी शायरी में युवाओं की जिंदगी को बहुत ही खूबसूरती से बयां किया है."छोड़ लिटरेचर को अपनी हिस्ट्री को भूल जा, शैख़-ओ-मस्जिद से तअल्लुक़ तर्क कर स्कूल जा, चार-दिन की ज़िंदगी है कोफ़्त से क्या फ़ायदा, खा डबल रोटी क्लर्की कर खुशी से फूल जा".अकबर इलाहाबादी की यह शायरी आज के दौर में भी बहुत प्रासंगिक है.

शायरी में छिपी युवाओं की जिंदगी की हकीकत

आज के युवा वर्चुअल दुनिया में ज्यादा समय बिता रहे हैं और अपनी जिंदगी को भूल जा रहे हैं. उन्हें अकबर इलाहाबादी की शायरी से सीखने की जरूरत है कि जिंदगी को खुलकर जीना चाहिए और अपनी हिस्ट्री को नहीं भूलना चाहिए. अकबर इलाहाबादी की शायरी में व्यंग्य का अंदाज है, लेकिन यह व्यंग्य युवाओं को जिंदगी की हकीकत से अवगत कराता है.उन्होंने यह भी कहा है कि युवा वर्ग को अपनी जिंदगी को स्कूल और क्लर्की तक सीमित नहीं रखना चाहिए, अपने सपनों को पूरा करना चाहिए।

"चलो अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाएं, अपने अधिकारों के लिए लड़ें, नहीं तो गुलामी की जंजीरें हमेशा के लिए बंध जाएंगी." अपनी कलम से अकबर इलाहाबादी ने अंग्रेजों के खिलाफ भी आवाज बुलंद की.उन्होंने अपनी शायरी में अंग्रेजों के अत्याचारों और उनकी दमनकारी नीतियों का जिक्र किया था. लोगों में देशभक्ति की भावना भरी.अंग्रेजों को चेताया कि वह भारतीयों को कमजोर न समझें उन्हें गुलामी की जंजीरें तोड़ना बखूबी आता है.

हास्य और व्यंग्य में माहिर थे अकबर इलाहाबादी

अकबर इलाहाबादी की पहचान जबान और हिन्दुस्तानी तहज़ीब के बड़े मजबूत और दिलेर शायर के रूप में है. उनकी शायरी में हमेशा हिन्दुस्तान की तामीर, इंसानियत, और मोहब्बत की बातें देखने को मिलती है. अकबर इलाहाबादी उर्दू अदब के बड़े ही मशहूर शायर थे, जिनके अल्फाज और लेखन ने उर्दू साहित्य में हास्य-व्यंग्य की विधा को एक नया आयाम दिया.कहा जाता है कि पारंपरिक होते हुए भी अकबर इलाहाबादी बागी थे और बागी होते हुए भी सुधारवादी. हास्य और व्यंग्य में वह माहिर थे.उनकी शायरी की खास बात उनकी ज़बान थी.वह हिन्दुस्तानी ज़बान के पक्षधर थे, उनकी शायरी में ये बातें साफ झलकती है.अपनी शायरी, अपने शायराना अंदाज को माध्यम बनाकर उन्होंने हिन्दुस्तान की तहज़ीब को दुनिया के सामने पेश किया.

लोगों के दिलों में बसी अकबर इलाहाबादी की शायरी

एक बेहतरीन शायर होने के साथ-साथ वह एक बेहतर इंसान भी थें.अपनी शायरी के माध्यम से वह इंसानों के बीच की दूरियों को मिटाना के लिए तत्पर रहते थे. शायरी में उन्होंने मोहब्बत की बातें की हैं और इसी के जरिए हिन्दुस्तान की तहज़ीब को दुनिया के सामने पेश किया है. शायरी ऐसी जो आज भी लोगों के दिलों में बसी है. महज 21 साल की उम्र में अकबर इलाहाबादी ने अपने पहले मुशायरे में दो लाइनें कही थीं."समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का, अकबर ये ग़ज़ल मेरी है अफ़साना किसी का".बड़ी ही सहजता और सरल अंदाज में गंभीर बातें कहने का हुनर क्या होता है ये बयां कर दिया.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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