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Airtel-Starlink Deal: क्या स्टारलिंक से भारत में Internet की Speed बढ़ जाएगी? जानिए पूरा मामला

जिस तरह से अमेरिका के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों में नए बदलावों का रास्ता साफ़ हो रहा है उससे लगता है कि जल्द ही एलन मस्क की स्टारलिंक को लाइसेंस मिल जाएगा. 

Airtel-Starlink Deal: क्या स्टारलिंक से भारत में Internet की Speed बढ़ जाएगी? जानिए पूरा मामला
नई दिल्ली:

वो दिन दूर नहीं जब आप किसी दूर दराज़ पहाड़ी  इलाके में ट्रैकिंग या कैम्पिंग के लिए जाएं और इंटरनेट आपके साथ-साथ चले. अभी ऐसा नहीं हो पाता. किसी आख़िरी कस्बे या गांव के आगे इंटरनेट काम ही नहीं करता. वैसे तो जब आप ट्रेकिंग के लिए जाएं तो बेहतर है इंटरनेट की इस बला से दूर कुछ शांति और सुकून भरे पल अपने लिए निकालें, फोन और सोशल मीडिया से कुछ समय के लिए कट जाएं ताकि ख़ुद को रिचार्ज कर सकें. लेकिन भागमभाग के इस दौर में कई लोगों के लिए दफ़्तर से संपर्क में रहना ज़रूरी हो सकता है, या कई लोग घर पर बात कर उन्हें तसल्ली देना चाहेंगे कि वो किसी दूर दराज़ इलाके में ठीक से हैं, या फिर कई ऐसे लोग जो लाइक्स और शेयर्स की लत के कारण सोशल मीडिया छोड़ ही नहीं सकते. तो उन लोगों के लिए जल्द ही स्टारलिंक के सहारे आसमानी इंटरनेट चालू होने जा रहा है. 

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इसके लिए भारत के दो सबसे बड़े टेलीकॉम ऑपरेटरों ने दुनिया के जाने माने उद्योगपति इलॉन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स की सैटलाइट इंटरनेट सर्विस कंपनी स्टारलिंक से क़रार कर लिया है. ये हैं पहले पायदान पर मौजूद जियो टेलीकॉम और दूसरे पायदान पर टिकी भारती एयरटेल. ये दोनों ही कंपनियां अब स्टारलिंक की सैटलाइट सर्विस के ज़रिए ग्राहकों तक एक नई पेशकश लेकर पहुंचने वाली हैं. स्टारलिंक दोनों ही कंपनियों का बैकएंड प्रोवाइडर होगा. इन दोनों कंपनियों ने स्टारलिंक के साथ क़रार तो कर लिया है लेकिन सेवाएं तभी शुरू हो पाएंगी जब स्टारलिंक के ऑपरेशन के लिए भारत सरकार इजाज़त देगी. स्टारलिंक ने 2022 से भारत सरकार के पास लाइसेंस के लिए आवेदन किया हुआ है लेकिन नियमों के चलते और कुछ हद तक सुरक्षा कारणों से उसे अभी तक सेवाएं शुरू करने की इजाज़त नहीं मिली है. हालांकि टेलीकॉम मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हाल में कहा कि बाकी देशों की तरह ही भारत भी सैटलाइट कम्युनिकेशन के लिए स्पेक्ट्रम allocate यानी आवंटन करने पर विचार कर रहा है.. 

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जिस तरह से अमेरिका के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों में नए बदलावों का रास्ता साफ़ हो रहा है उससे लगता है कि जल्द ही एलन मस्क की स्टारलिंक को लाइसेंस मिल जाएगा. 

टेलीकॉम विशेषज्ञ संदीप बुड़की ने बताया कि सैटेलाइट के इस्तेमाल के लिए सरकार की मंजूरी चाहिए .. स्टारलिंक ने पहले भी कोशिश की थी और अकेले आना चाहता था लेकिन तब उसे सरकार ने मंजूरी नहीं दी थी. इस बार भारत की दो सबसे बड़ी मोबाइल सेवा कंपनियों के साथ समझौता हुआ है तो उम्मीद है कि सरकार की मंजूरी मिलेगी>>

हालांकि ख़ुद जियो और एयरटेल भी सैटलाइट कनेक्टिविटी पर काम कर रहे हैं. लेकिन शायद वो अभी पूरी तरह तैयार नहीं हैं इसलिए उन्होंने स्टारलिंक के साथ साझेदारी की है. भविष्य में वो स्टारलिंक की तरह अपनी सेवाएं भी शुरू कर सकते हैं. 


अभी हम जानते हैं कि हमारे घरों में या हमारे मोबाइल फ़ोन्स पर जो इंटरनेट आता है वो ऑप्टिकल फाइबर या टेलीकॉम टावर्स के ज़रिए आता है. टेलीकॉम कंपनियों के ऑप्टिकल फाइबर हमारे घरों तक पहुंचते हैं और हमें उच्च क्वॉलिटी की इंटरनेट सेवाएं पहुंचाते हैं. ये वायर्ड नेटवर्क था.  इसके अलावा वायरलेस नेटवर्क के तहत टेलीकॉम के टावर्स से इंटरनेट या वॉयस कनेक्शन हमारे मोबाइल फ़ोन्स पर आते हैं. हम जब चलते हैं तो अलग अलग टेलीकॉम टावर्स से कनेक्ट होते जाते हैं. हमारा इंटरनेट कनेक्शन बना रहता है. 

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जैसे आप हर जगह ऑप्टिकल फाइबर केबल नहीं बिछा सकते. दूर दराज़ के पहाड़ी, रेगिस्तानी इलाकों में फाइबर केबल बिछाना काफ़ी महंगा पड़ सकता है और कई जगह ऐसा करना संभव भी नहीं होगा. इसी तरह हर जगह टेलीकॉम टावर भी नहीं लगाए जा सकते. टेलीकॉम टावर भी एक हद तक ही सिग्नल भेज पाते हैं. रास्ते में कोई पहाड़ आ जाए तो सिग्नल उसे पार नहीं कर पाते.

इसी सब का हल है सैटलाइट इंटरनेट जिसे हम आसमानी इंटरनेट भी कह सकते हैं. स्टारलिंक की सैटलाइट इंटरनेट में महारत है. अब सवाल है कि ये सैटलाइट इंटरनेट काम कैसे करता है. ये बताने से पहले हम आपको कुछ तस्वीरें दिखाते हैं. एक दो साल पहले कई लोग रात के अंधेरे में आसमान में एक साथ कई चमकती चीज़ों को उड़ते हुए देखकर हैरान हुए थे. सोशल मीडिया पर इसकी काफ़ी चर्चा हुई थी. लेकिन जब इसका ब्योरा ढूंढा तो पता चला कि ये इलॉन मस्क की कंपनी स्टारलिंक के उपग्रह हैं जो धरती का चक्कर लगाते रहते हैं और समय समय पर अलग अलग इलाकों से दिख जाते हैं अगर आसमान साफ़ हो तो. कई लोगों ने इसे सैटलाइट ट्रेन भी कहा.

वेबसाइट स्पेस डॉट कॉम के मुताबिक स्टारलिंक के सैटलाइट नेटवर्क में इस साल 27 फरवरी तक 7,086 सैटलाइट थे जो Low earth orbit यानी धरती के काफ़ी नीचे की कक्षा में चक्कर लगा रहे हैं.  स्टारलिंक ने इन छोटे छोटे सैटलाइट्स का आसमान में नेटवर्क बनाया है जो रेडियो सिग्नल्स से आपस में जुड़ा हुआ है.  स्टारलिंक की योजना कम से कम 42 हज़ार ऐसे सैटलाइट्स के नेटवर्क को तैयार करने की है.  ताकि धरती का कोई कोना उसकी इंटरनेट कनेक्टिविटी से बचा न रहे. हर सैटलाइट की उम्र लगभग पांच साल है. इसीलिए इलॉन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स लगातार इन सैटलाइट्स को धरती की कक्षा में छोड़ने के लिए रॉकेट लॉन्च करती रहती है.

जैसा हमने आपको बताया कि आसमान में सैटलाइट्स यानी उपग्रहों का एक नेटवर्क होता है. स्टारलिंक ज़मीन पर अपने हज़ारों ग्राउंड स्टेशंस से अपने सैटलाइट्स के नेटवर्क को रेडियो सिग्नल्स के ज़रिए इंटरनेट कनेक्टिविटी पहुंचाता है. ये सभी सैटलाइट आपस में रेडियो सिग्नल्स से जुड़े होते हैं और दुनिया के एक बड़े इलाके में उनका फुट प्रिंट है. ये सैटलाइट नीचे बनाए गए ग्राउंड स्टेशन्स या स्टारलिंक गेटवेज़ तक इंटरनेट सिग्नल भेजते हैं जहां से दूर दराज़ इलाके में इंटरनेट सिग्नल पहुंचाए जाते हैं. इसके अलावा ये सैटलाइट सीधे आपके या हमारे पास इंटरनेट के सिग्नल पहुंचाते हैं. इसके लिए हमारे पास एक डिश होनी चाहिए जो इन सिग्नल्स को रिसीव करे और फिर राउटर के ज़रिए हमारे कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन तक पहुंच जाए. सैटलाइट इंटरनेट का एक फ़ायदा ये भी है कि इसमें latency भी कम होती है. latency का अर्थ है डेटा के एक जगह से दूसरी जगह जाने में लगने वाला समय. ये समय जितना कम होगा उतना अच्छा है. इसी को Ping Rate भी कहते हैं और इस समय को मिलीसेकंड्स में गिना जाता है. यानी स्टारलिंक से आप झट से इंटरनेट से कनेक्ट कर सकते हैं, उसमें समय नहीं लगता. 

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यूज़र को स्टारलिंक की ओर से जो इंस्टॉलेशन किट दी जाती है उसमें ऐसे डिश और राउटर होते हैं. डिश सबसे क़रीब के स्टारलिंक सैटलाइट के संपर्क में आती है और राउटर के ज़रिए कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन पर उसके सिग्नल्स पहुंच सकते हैं. स्टारलिंक को वैसे fixed-location use के लिए डिज़ाइन किया गया है लेकिन अतिरिक्त हार्डवेयर के इस्तेमाल से ये चलती हुई गाड़ियों, नावों या विमान में भी इंटरनेट सुविधा देता है. ऐसे में आप दुनिया में कहीं भी हों अपने आसमान में दूर ऊपर उड़ रहे सैटलाइट से संपर्क साध कर आप इंटरनेट सुविधा हासिल कर सकते हैं. चाहे आप कहीं पहाड़ पर हों या फिर रेगिस्तान के बीच या फिर बीच समुद्र में. लेकिन दिक्कत तब आती है जब आसमान में बादल हों. इसलिए सैटलाइट इंटरनेट के लिए आसमान साफ़ होना चाहिए, बीच में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए ताकि आपकी डिश स्टारलिंक के सैटलाइट से कनेक्ट हो सके. आप प्लग इन करें और इंटरनेट शुरू हो जाए. 

कौन सी जगह कनेक्शन के लिए सबसे अच्छी रहेगी इसका पता आपको फोन पर स्टारलिंक के ऐप से चल सकता है. हालांकि आप दुनिया के किस कोने में रहते हैं इस पर भी आपकी इंटरनेट स्पीड निर्भर करेगी. दूर दराज़ इलाकों में इंटरनेट स्लो हो सकता है. स्टारलिंक अपनी वेबसाइट पर ऐसे मैप भी दिखाता है जिससे आप देख सकते हैं कि दुनिया के किस हिस्से में इंटरनेट कितना तेज़ आपको मिलेगा. 

तो साफ़ है सैटलाइट इंटरनेट की कुछ सीमाएं हैं. 

जैसे हमने बताया कि मौसम ख़राब है और आसमान साफ़ न हो तो इंटरनेट में दिक्कत आएगी.  इंटरनेट स्पीड की बात करें तो स्टारलिंक की इंटरनेट स्पीड फाइबर या केबल आधारित इंटरनेट जितनी तेज़ नहीं है लेकिन अगर आप किसी ऐसे इलाके में रहते हैं जहां इंटरनेट न आता हो या काफ़ी स्लो हो तो ये काफ़ी कारगर रहता है. 

शुरुआत में स्टारलिंक की अधिकतम स्पीड 150 Mbps थी लेकिन सैटलाइट का नेटवर्क बढ़ने के बाद ये तेज़ हुई हैं  और अब स्टार लिंक इंटरनेट सर्विस 264 Mbps तक की रफ़्तार मुहैया करा रहा है. 

अब सवाल ये है कि इस सुविधा की क़ीमत कितनी हो सकती है. इस बारे में हमने एक्सपर्ट से पूछा. एक्सपर्ट ने जवाब दिया कि इसकी लागत दस हज़ार रुपए है. अंतरराष्ट्रीय प्राइस ज़्यादा है. अगर कनेक्शन की लागत कम होगी तो भारत मेें इंटरनेट कनेक्टिविटी और भी ज़्यादा बढ़ जाएगी. अभी आलम ये है कि अप्रैल 2024 तक 95% से ज़्यादा गांवों तक 3G/4G मोबाइल कनेक्टिविटी हो चुकी थी. मार्च 2014 में जहां भारत में 25.16 करोड़ लोगों के पास इंटरनेट थावहीं मार्च 2024 तक यानी दस साल में ये क़रीब चार गुना हो गया और 95.44 करोड़ लोगों के पास इंटरनेट पहुंच गया.  चीन के बाद दूसरे स्थान पर सबसे ज़्यादा इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले भारत में हैं. 

अब सैटलाइट इंटरनेट का ज़माना आ चुका है तो देखना है भारत में इंटरनेट किस तरफ़ बढ़ता है. स्टारलिंक दुनिया भर में उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के 125 से ज़्यादा देशों में कवरेज मुहैया कराता है. भारत के पड़ोसी भूटान में भी स्टारलिंक इंटरनेट सेवाएं दे रहा है. यूक्रेन जैसे देश में अधिकतर इंटरनेट कनेक्टिविटी स्टारलिंक के ज़रिए ही बनी हुई है. स्टार लिंक के कारण यूक्रेन की सेना भी रियल टाइम में सूचनाओं का आदान प्रदान कर पा रही है. चीन में अभी स्टारलिंक को इजाज़त नहीं मिली है. तो स्टारलिंक से जुड़े कुछ और मुद्दों पर बात करने के लिए हमारे साथ हैं अनिल कुमार जो टेलीकॉम लाइव के एडिटर इन चीफ़ हैं. 

अभी स्टारलिंक को भारत सरकार से लाइसेंस नहीं मिला है. ऐसे में तब तक ये सेवाएं शुरू नहीं हो पाएंगी. लेकिन लाइसेंस मिलने के बाद क्या स्टारलिंक इन कंपनियों के बिना भी भारत के इंटरनेट सब्सक्राइबर्स तक पहुंच सकता है. क्या एयरटेल और जियो भी भविष्य में स्टारलिंक की तरह अपनी सैटलाइट इंटरनेट सेवाएं शुरू कर सकते हैं. इस दिशा में ये कंपनियां क्या कर रही हैं. 

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