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This Article is From Dec 15, 2017

आरुषि मर्डर मिस्ट्री : हेमराज की पत्नी खुमकला ने लगाई सुप्रीम कोर्ट में गुहार, जांच एजेंसी हत्यारों का पता लगाए

याचिका में कहा गया कि हाईकोर्ट का फैसला गलत, अदालत ने इसे हत्या तो माना है लेकिन किसी को दोषी नहीं ठहराया

आरुषि मर्डर मिस्ट्री : हेमराज की पत्नी खुमकला ने लगाई सुप्रीम कोर्ट में गुहार, जांच एजेंसी हत्यारों का पता लगाए
आरुषि-हेमराज हत्याकांड में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अक्टूबर में तलवार दंपत्ति को बरी कर दिया था.
नई दिल्ली: नोएडा के चर्चित आरुषि- हेमराज हत्याकांड मामले में हेमराज की पत्नी खुमकला बंजाडे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. उसने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका दाखिल की है. याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट का फैसला गलत है. हाईकोर्ट ने इसे हत्या तो माना है लेकिन किसी को दोषी नहीं ठहराया. ऐसे में जांच एजेंसी की यह ड्यूटी है कि वह हत्यारों का पता लगाए.

खुमकला बंजाडे की याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट आखिरी बार देखे जाने की थ्योरी पर विचार करने में नाकाम रहा जबकि इस बात के पुख्ता सबूत थे कि एल-32 जलवायु विहार में प्रतिवादी (नुपुर तलवार और राजेश तलवार) मरने वालों के साथ मौजूद थे जिसकी पुष्टि उनके ड्राइवर उमेश शर्मा ने की. उसने कोर्ट के सामने बयान भी दिए. हाईकोर्ट इस तथ्य पर भी विचार करने में नाकाम रहा कि ऐसा कुछ नहीं है जो ये दिखाता हो कि रात 9.30 के बाद कोई बाहरी घर में भीतर आया हो. इस बात का भी कोई मैटेरियल नहीं है कि कोई संदिग्ध परिस्थितियों में फ्लैट के आसपास दिखाई दिया हो. यह बयान 15-16 मई 2008 की रात में ड्यूटी पर तैनात चौकीदार ने दिए. ट्रायल कोर्ट ने यह सही पाया था कि इतने कम वक्त में किसी के घर में घुसने का मौका नहीं था. याचिका में डॉ नुपुर तलवार, डॉ राजेश तलवार और सीबीआई को प्रतिवादी बनाया गया है.

यह भी पढ़ें : आरुषि-हेमराज मर्डर केस : राजेश और नूपुर तलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरी किया

इससे पहले 12 अक्टूबर को इलाहाबाद  हाईकोर्ट ने तलवार दंपत्ति को इस मामले में बरी कर दिया. इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के साथ देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री और उलझ गई. हाईकोर्ट ने आरुषि के माता-पिता राजेश तलवार और नुपुर तलवार को बरी कर दिया है.

VIDEO : तलवार दंपत्ति हुए रिहा


हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दोनों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए क्योंकि निचली अदालत का फैसला ठोस सबूतों पर नहीं बल्कि हालात से उपजे सबूतों के आधार पर था. इससे पहले 25 नवंबर 2013 को गाजियाबाद की विशेष सीबीआई कोर्ट ने हालात से जुड़े सबूतों के आधार पर दोनों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी, जिसके खिलाफ जनवरी 2014 में दोनों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.

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