प्रतीकात्मक तस्वीर...
नई दिल्ली:
उत्तर रेलवे की 6 लाख वर्गमीटर जमीन पर झुग्गीवालों ने कब्जा जमाया हुआ है। समय के साथ-साथ झुग्गियां बनती गईं और धीरे-धीरे ये तादाद 47 हजार तक पहुंच गई।
आरटीआई के जरिए हासिल जानकारी के बाद नरेंद्र शर्मा ने यह खुलासा किया है। नरेंद्र बताते हैं कि रेलवे ने अपनी जमीन खाली करवाने को लेकर एमसीडी को भी 11 करोड़ रुपये दिए, लेकिन हालत जस की तस बनी है।
इतना ही नहीं, इन झुग्गियां के चक्कर में दयाबस्ती इलाके में रेलवे का 150 करोड़ का ग्रेड सेपेरेटर प्रोजेक्ट अधर में अटका है। दरअसल, इस प्रोजेक्ट की शुरुआत वर्ष 2009-10 में हुई। इसे वर्ष 2012 में पूरा होना था, लेकिन लैंडिग को लेकर दिक्कत आ रही है। दोनों तरफ झुग्गियां हैं, जिन्हें खाली करवाना रेलवे के लिए मुश्किल साबित हो रहा है। दिल्ली के डीआरएम अरुण अरोड़ा कहते हैं कि हमने दिल्ली सरकार से भी बात की है और तालमेल बिठाकर कोशिश में जुटे हैं कि झुग्गियां खाली करवा पाएं।
इतना ही नहीं इन झुग्गियों में करीब 24 हजार ऐसी झुग्गियां हैं जो सेफ्टी जोन के इलाके में आती हैं। मसलन, रेलवे लाइन के दोनों तरफ 15 मीटर के दायरे में। लोग कहते हैं कि रेलवे की तरफ से नोटिस मिलते ही डर लगा रहता है , लेकिन चुनाव के वक्त आम आदमी पार्टी ने वादा किया था कि हमारी झुग्गियों को वो टूटने नहीं देंगे। अब उम्मीद यहीं टिकी रहती है।
बस्ती बसते-बसते बसती है और इसमें वर्षों लगते हैं। लिहाजा चूक हुई है तो सामने अब चुनौती है। विकास की चुनौती...बसावट हटाने की चुनौती।
आरटीआई के जरिए हासिल जानकारी के बाद नरेंद्र शर्मा ने यह खुलासा किया है। नरेंद्र बताते हैं कि रेलवे ने अपनी जमीन खाली करवाने को लेकर एमसीडी को भी 11 करोड़ रुपये दिए, लेकिन हालत जस की तस बनी है।
इतना ही नहीं, इन झुग्गियां के चक्कर में दयाबस्ती इलाके में रेलवे का 150 करोड़ का ग्रेड सेपेरेटर प्रोजेक्ट अधर में अटका है। दरअसल, इस प्रोजेक्ट की शुरुआत वर्ष 2009-10 में हुई। इसे वर्ष 2012 में पूरा होना था, लेकिन लैंडिग को लेकर दिक्कत आ रही है। दोनों तरफ झुग्गियां हैं, जिन्हें खाली करवाना रेलवे के लिए मुश्किल साबित हो रहा है। दिल्ली के डीआरएम अरुण अरोड़ा कहते हैं कि हमने दिल्ली सरकार से भी बात की है और तालमेल बिठाकर कोशिश में जुटे हैं कि झुग्गियां खाली करवा पाएं।
इतना ही नहीं इन झुग्गियों में करीब 24 हजार ऐसी झुग्गियां हैं जो सेफ्टी जोन के इलाके में आती हैं। मसलन, रेलवे लाइन के दोनों तरफ 15 मीटर के दायरे में। लोग कहते हैं कि रेलवे की तरफ से नोटिस मिलते ही डर लगा रहता है , लेकिन चुनाव के वक्त आम आदमी पार्टी ने वादा किया था कि हमारी झुग्गियों को वो टूटने नहीं देंगे। अब उम्मीद यहीं टिकी रहती है।
बस्ती बसते-बसते बसती है और इसमें वर्षों लगते हैं। लिहाजा चूक हुई है तो सामने अब चुनौती है। विकास की चुनौती...बसावट हटाने की चुनौती।
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