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This Article is From Jan 01, 2018

इंसाफ की डगर पर 2017 : न्याय को दिशा देने वाले अदालतों के ऐतिहासिक फैसले

कई महत्वपूर्ण फैसलों को लेकर कानून के लिहाज से साल 2017 एक मील के पत्थर की तरह हमेशा याद किया जाएगा

इंसाफ की डगर पर 2017 : न्याय को दिशा देने वाले अदालतों के ऐतिहासिक फैसले
प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली: कैलेंडर बदलते रहते हैं लेकिन कानून के लिहाज से साल 2017 एक मील के पत्थर की तरह हमेशा याद किया जाएगा. बात चाहे देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट की हो या फिर निचली अदालतों की, उनके ऐतिहासिक फैसले दिशा निर्देशक के तौर पर देखे जाएंगे.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले  

22 अगस्त, 2017 - तीन तलाक असंवैधानिक
मुस्लिम समुदाय में एक ही बार में पत्नी को तीन बार तलाक देने वाली प्रथा यानी तलाक ए बिद्दत को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने असंवैधानिक करार दे दिया. अलग-अलग धर्मों के पांच जजों ने 3:2 के बहुमत से ये फैसला सुनाया. जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस फली नरीमन और जस्टिस यूयू ललित ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया. तीनों ने फैसले में कहा कि तीन तलाक इस्लाम धर्म का मूलभूत हिस्सा नहीं है. ये संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है. मुस्लिम महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन करता है. ये प्रथा बिना कोई मौका दिए शादी को खत्म कर देती है. जब मुस्लिम देश इसे बेन कर सकते हैं तो भारत इससे आजाद क्यों नहीं हो सकता?

हालांकि बेंच में शामिल CJI जेएस खेहर और जस्टिस एस अब्दुल नजीर का अल्पमत का फैसला अलग रहा. दोनों ने इसे पाप तो माना लेकिन कहा तीन तलाक संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव के खिलाफ अधिकार), 21 (मान-सम्मान के साथ जीने का अधिकार) और 25 (पब्लिक ऑर्डर, हेल्थ और नैतिकता के दायरे में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन नहीं है. यह प्रथा सुन्नी समुदाय का अभिन्न हिस्सा है जो 1400 सालों से चली आ रही है. कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए, लिहाजा सरकार इस पर कानून लाए. इस दौरान 6 महीने के लिए तीन तलाक निलंबित रहेगा.

अब संसद में कानून लाया जा रहा है तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसका विरोध कर रहा है जबकि कई विपक्षी दल इसके परारुप में संशोधन की मांग कर रहे हैं.

24 अगस्त 2017 - निजता का अधिकार
तीन तलाक पर ऐतिहासिक फैसले के दो दिन ही बीते थे कि नौ जजों की संविधान पीठ ने मौलिक अधिकारों की सूची में एक और बड़ा अधिकार जोड़ दिया निजता यानी प्राइवेसी का. एक बेहद अहम फैसले के तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार, यानी राइट टू प्राइवेसी को मौलिक अधिकारों का हिस्सा करार दिया.

नौ जजों की संविधान पीठ ने 1954 और 1962 में दिए गए फैसलों को पलटते हुए कहा कि राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकारों के तहत मिले जीवन के अधिकार का ही हिस्सा है. राइट टू प्राइवेसी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आती है. सर्वसहमति से आए इस इस बड़े फैसले में पीठ के 9 जजों में से 4 जज CJI खेहर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस आरके अग्रवाल और जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने फैसले में कहा निजता कोई अभिजात्य विचार  नहीं है, जो सिर्फ अमीर के लिए हो. निजता का अधिकार समाज के सभी वर्गों की चाहत  है. सिविल या राजनीतिक अधिकारों को सामाजिक आर्थिक अधिकारों के अधीन नहीं रखा जा सकता. भारत के लोकतंत्र को ताकत स्वाधीनता और स्वतंत्रता से मिलती है हर सामान्य नागरिक को निजता का अधिकार है भले ही वो अमीर हो या गरीब. शादी करने, बच्चे पैदा करने और परिवार रखने के मामले निजता से जुड़े हैं. महिला और पुरुष को खुशी निजता से ही मिलती है और ये खुशी अमीर या गरीब सभी के लिए बराबर है. देश में निजता को संविधान से सरंक्षण प्राप्त है. सरकार को डेटा प्रोटेक्शन या आंकड़ों की सुरक्षा को लेकर ऐसा कानून लाना चाहिए, जो सामान्य नागरिक के हितों और सरकार के हितों के बीच संतुलन बनाए रख सके.

इसी फैसले को लेकर अब पांच जजों की संविधान पीठ सरकारी योजनाओं में आधार की अनिवार्यता को लेकर सुनवाई शुरू करेगी.

और अब बात नेताओं की. सुप्रीम कोर्ट ने इस साल एक नई व्यवस्था शुरू की जो सासंदों व विधायकों के आपराधिक मामलों को एक साल के भीतर  निपटाने के लिए विशेष अदालतों के गठन से जुड़ी है.  

14 दिसंबर 2017 - नेताओं पर आपराधिक मुकदमों का जल्द निपटारा
सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों को एक साल में निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अहम आदेश जारी किए. कोर्ट ने कहा है कि 1 मार्च 2018 से सात राज्यों में 12 विशेष अदालतें शुरू हों.  सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की स्कीम को हरी झंडी दे दी है. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को 7.80 करोड़ का फंड  राज्य सरकारों को फौरन रिलीज करने को कहा है. राज्य सरकार को इस मामले में हाईकोर्ट की सलाह  के बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन करना होगा. हाईकोर्ट को इन विशेष अदालतों  के लिए  जजों की नियुक्ति करनी होगी. अदालत के गठन के बाद सांसदों व विधायकों से जुड़े मामले इनमें ट्रांसफर होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सांसदों व विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों का ब्यौरा इकट्ठा करने के लिए केंद्र को दो महीने का वक्त दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि ये अंत नहीं शुरुआत है. जब ये कोर्ट शुरू होंगे और केसों के आंकड़े आएंगे तब जरूरी आदेश जारी किए जाएंगे. 2014 के आंकड़ों के मुताबिक 1581 सांसदों व विधायकों पर करीब 13500 आपराधिक मामले लंबित हैं.

21 दिसंबर 2017 - 2जी घोटाला, जो हुआ ही नहीं
अब बारी देश के सबसे बड़े घोटालों में शुमार 2G घोटाले की जिसने 2010 में यूपीए सरकार की जड़ें हिला दीं. लेकिन सात साल बाद फैसला आया तो यूपीए के लिए राहत आई जबकि मोदी सरकार व सीबीआई बैकफुट पर दिखी और सीएजी पर भी सवाल उठे.

2G स्पैक्ट्रम घोटाले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट से बड़े फैसला आया. इसमें पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और कनिमोई सहित 17 आरोपी सभी मामलों में बरी कर दिए गए. जज ओपी सैनी ने अपने फैसले में लिखा. मैं ये भी बता दूं कि बीते सात साल से हर दिन- गर्मी की छुट्टियों सहित, मैं सुबह नौ बजे से शाम 5 बजे तक पूरी निष्ठा से खुली अदालत में बैठता था और इंतज़ार करता था कि कोई आए और अपने पास से कोई ऐसा सबूत दे जो क़ानूनी तौर पर स्वीकार्य हो, लेकिन सब बेकार रहा. एक भी शख़्स सामने नहीं आया. इससे पता चलता है कि हर कोई अफ़वाहों, अनुमानों और गपशप से बनी आम राय के हिसाब से चल रहा था. लेकिन न्यायिक कार्यवाही में लोगों की इस राय की जगह नहीं है. एनडीटीवी इंडिया से बात करते हुए कनिमोई ने इसे न्याय की जीत बताया.

1552 पेज के फैसले में जज ने कहा टेलीकॉम महकमे की बात किसी ने नहीं सुनी और सभी ने मान लिया कि ये बड़ा घोटाला है. जबकि ऐसा घोटाला नहीं था. सीबीआई ने इस केस की बड़ी अच्छी कोरियोग्राफ़ी की. ऐसा कोई रिकॉर्ड या सबूत नहीं, जिससे अपराध साबित होता हो. आरोप पत्र में आधिकारिक दस्तावेजों की मनमानी, गलत और संदर्भ से हटकर व्याख्या है. गवाहों की मौखिक गवाही के आधार पर आरोप पत्र है, जबकि कोर्ट में गवाहों ने ये सब नहीं कहा. आरोप पत्र में कई तथ्य गलत हैं. अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में बुरी तरह नाकाम रहा.

ये मामला 2007-08 के दौरान 2 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन का था जिसमें यूपीए सरकार पर अपनों को फायदा पहुंचाने के लिए घपले का आरोप था.सीएजी ने माना था कि इसकी वजह से 1.76 लाख करोड़ का नुक़सान हुआ और सीबीआई ने आरोप लगाया कि इस मामले में तब के टेलीकॉम मंत्री ए राजा ने 200 करोड़ की घूस ली है जो डीएमके सांसद कनिमोई के टीवी चैनल के मार्फ़त दी गई है. 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने टूजी आवंटन को मनमाना और असंवैधानिक बताते हुए 122 आवंटन रद्द कर दिए. ए राजा इस मामले में 15 महीने जेल में रहे और कनिमोई साल भर. टेलीकॉम विभाग के सचिवों और बड़े अफ़सरों सहित कई कंपनियों के एग्जिक्यूटिव को भी जेल काटनी पड़ी. अदालत के सामने दो मामले सीबीआई के और एक ईडी का था. अब सीबीआई इस फ़ैसले को ऊंची अदालत में चुनौती देने की बात कह रही है.

यहां से चलते हैं देश की राजनीति में दो दशक पहले हलचल पैदा करने वाले और अब तक सुर्खियों में रहे एक और घोटाले के फैसले पर. यह है कभी एक रहे बिहार और झारखंड का सनसनीखेज चारा घोटाला.

23 दिसंबर 2017 - चारा घोटाले में लालू दोषी करार
23 दिसंबर 2017 को चारा घोटाले से जुड़े एक मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव को दोषी करार दे दिया. फैसला आने के बाद उनको गिरफ्तार कर लिया गया. 3 जनवरी को इस मामले में उनको सजा सुनाई जाएगी. वहीं इसी मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा, ध्रुव भगत, विद्यासागर निषाद सहित 6 लोगों को बरी कर दिया है. लालू सहित 16 लोगों को अदालत ने दोषी पाया है. अदालत ने 950 करोड़ रुपये के चारा घोटाले से जुड़े देवघर कोषागार से 89 लाख, 27 हजार रुपये की अवैध निकासी के मामले में फैसला सुनाया है. अवैध ढंग से धन निकालने के इस मामले में लालू प्रसाद यादव एवं अन्य के खिलाफ सीबीआई ने आपराधिक षड्यंत्र, गबन, फर्जीवाड़ा, साक्ष्य छिपाने, पद के दुरुपयोग के साथ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया था.

इससे पहले लालू को एक और मामले में सजा सुनाई जा चुकी है और उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने ही चारा घोटाले के मामले के सभी ट्रायल अलग-अलग चलाने और 9 महीने में फैसला सुनाने का आदेश दिया था.


30 मई 2017 - बाबरी मामले में आडवाणी, जोशी के खिलाफ केस  
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादास्पद ढांचा गिराए जाने के मामले में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री मुरली मनोहर जोशी तथा केंद्रीय मंत्री उमा भारती सहित सभी 12 आरोपियों पर सीबीआई की विशेष अदालत ने आरोप तय कर दिए. इन पर आपराधिक साजिश का मामला शुरू हो गया. इससे पहले कोर्ट ने 20 हजार के निजी मुचलके पर सभी को ज़मानत दे दी थी, हालांकि सभी आरोपियों ने अदालत से आरोपों को खारिज करने का आग्रह किया था. इनके ऊपर बाबरी मस्जिद गिराने की साजिश करने, दो धर्मों के लोगों के बीच दुश्मनी पैदा करने, धार्मिक भावनाएं भड़काने, राष्ट्रीय एकता को तोड़ने के आरोप हैं.

19 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि बाबरी मस्जिद गिराने की आपराधिक साज़िश करने का मुकदमा आडवाणी, जोशी के खिलाफ लखनऊ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट में चलेगा और दो साल में इस पर फैसला सुनाया जाए. आरोपियों में विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, विष्णु हरि डालमिया, रामविलास वेदांती, महंत नृत्य गोपाल दास, चंपत राय बंसल और बैकुंठलाल शर्मा प्रेम भी शामिल हैं. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा वक्त में राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह पर केस नहीं चलेगा. पद पर होने की वजह से उन्हें केस से छूट दी गई है. पद से हटने के बाद उन पर केस चल सकता है.

7 सितंबर 2017 - 1993 के मुंबई धमाकों के मामले में दो को फांसी
बाबरी मस्जिद ढहाने का बदला लेने के लिए किए गए 1993 के मुंबई धमाकों के 24 साल बाद टाडा कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. फिरोज़ अब्दुल रशीद ख़ान और ताहिर मर्चेंट को फांसी की सजा सुनाई. वहीं अबू सलेम और करीमुल्लाह खान को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. दोनों पर 2-2 लाख रुपये जुर्माना भी लगाया गया. रियाज सिद्दकी को 10 साल की सजा हुई.

12 मार्च, 1993 को मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में ढाई सौ से अधिक लोगों की मौत हुई थी. मामले में कुल 7 आरोपी थे, जिनमें से एक अब्दुल कयूम को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था और छह को दोषी पाया गया.  छह दोषियों में एक मुस्तफा डोसा की मौत हो गई. 12 मार्च 1993 को 12 बम धमाकों में 257 की मौत हुई थी और 700 से ज़्यादा ज़ख़्मी हुए थे. अबू सलेम, मुस्तफ़ा डोसा समेत 7 आरोपियों को पुर्तगाल से डिपोर्ट कर लाया गया. 100 आरोपी पहले ही दोषी क़रार दिए जा चुके हैं और इनमें से 12 को फांसी की सज़ा सुनाई गई. याकूब मेमन को फांसी हो चुकी है. दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन समेत 33 अब भी फ़रार हैं. फिलहाल ताहिर की फांसी पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई है.

5 मई 2017 - दिल्ली गैंगरेप में चार को फांसी की सजा बरकरार
दिल्ली ही नहीं बल्कि देश को हिला देने वाले 16 दिसंबर 2012 के दिल्ली गैंगरेप मामले में चार दोषियों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगाते हुए फांसी की सजा को बरकरार रखा. जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आर बानुमति, जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने कहा सेक्स और हिंसा की भूख के चलते बड़ी वारदात को अंजाम दिया. दोषी अपराध के प्रति आसक्त थे. जैसे अपराध हुआ, ऐसा लगता है अलग दुनिया की कहानी है. जजों के फैसला सुनाने के बाद कोर्ट में तालियां बजीं. गैंगरेप के चारों दोषियों मुकेश, अक्षय, पवन और विनय को साकेत की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी, जिस पर 14 मार्च  2014 को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी मुहर लगा दी थी. दोषियों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा पर रोक लगा दी थी. इसके बाद तीन जजों की बेंच के पास मामले को भेजा गया और कोर्ट ने केस में मदद के लिए दो एमिक्‍स क्यूरी नियुक्त किए गए थे. फिलहाल दोषियों की पुनर्विचार पर सुनवाई चल रही है.

12 अक्तूबर, 2017 - आरुषि- हेमराज हत्याकांड में तलवार दंपति बरी
16 मई 2008 को नोएडा में हुए आरुषि- हेमराज हत्याकांड में नया मोड़ आया. आरुषि और हेमराज के कत्ल के आरोप में गाजियाबाद की विशेष सीबीआई अदालत ने जिन परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर राजेश और नूपुर तलवार को दोषी ठहराया, उन्हीं परिस्थितिजन्य सबूतों को इलाहाबाद ने पूरी तरह नकार दिया. ठोस सबूतों के अभाव में तलवार दंपति साढ़े चार साल बाद बरी होकर जेल से बाहर आ गए. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दंपति को दोषी करार देने वाली निचली अदालत के जज की तुलना 'गणित के अध्यापक' तथा 'फिल्म निर्देशक' से की, जो इधर-उधर छितराए हुए तथ्यों में से कहानी गढ़ रहा हो. हाईकोर्ट ने कड़े शब्दों में कहा कि तलवार दंपति को दोषी करार देने वाले जज ने न्याय की सामान्य प्रक्रिया से 'भटककर' काम किया था.सीबीआई यह साबित करने में नाकाम रही कि तलवार दंपति ने ही अपनी बेटी का कत्ल किया. निचली अदालत के जज द्वारा निकाला गया निष्कर्ष 'गैरकानूनी और विकृत' था, क्योंकि अदालत ने रिकॉर्ड किए गए सबूतों पर विचार ही नहीं किया. हाईकोर्ट के दोनों जजों ने कहा, "संदेह कितना भी मजबूत क्यों न हो, सबूतों की जगह नहीं ले सकता.

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट कई बड़े मामलों को लेकर सुनवाई करेगा और बड़े फैसले भी आएंगे. दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल मामले में पांच जजों के संविधान पीठ में सुनवाई पूरी हो चुकी है, फैसला सुरक्षित है. आधार की अनिवार्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों का संविधान पीठ सुनवाई शुरू करेगी और अयोध्या राम जन्मभूमि व बाबरी मस्जिद के बीच मालिकाना हक को लेकर तीन जजों की बेंच रोजना सुनवाई शुरू करेगी. जाहिर है कि 2018 भी देश की अदालतों से कई अहम फैसले आएंगे जो देश की न्याय व्यवस्था को पहले से बेहतर और कारगर बनाने में मददगार साबित होंगे.

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