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25 हफ्तों तक सिनेमाघरों से नहीं उतरती थी इस सुपरस्टार फिल्म, एक या दो नहीं 9 फिल्मों का है रिकॉर्ड

25 हफ्तों तक सिनेमाघरों में चलने वाली 9 फिल्मों का खिताब इस सुपरस्टार के नाम हैं, जिन्हें बादशाह कहें तो गलत नहीं होगा. 

25 हफ्तों तक सिनेमाघरों से नहीं उतरती थी इस सुपरस्टार फिल्म, एक या दो नहीं 9 फिल्मों का है रिकॉर्ड
इस सुपरस्टार के नाम है गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड का खिताब
नई दिल्ली:

हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार राजेश खन्ना से लेकर साउथ के दिग्गज एक्टर मोहनलाल को उनकी हफ्तों तक सिनेमाघरों में चलने वाली फिल्मों के लिए जाना जाता है. उनकी फिल्मों को ऑडियंस का इतना प्यार मिलता था कि 25 से 50 हफ्तों तक थियेटरों से उनकी फिल्में उतरती नहीं थीं. लेकिन एक सुपरस्टार ऐसे भी हैं, जिनकी 9 फिल्में 25 हफ्तों तक सिनेमाघरों में चलती रही, जिसके चलते उनके नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है. नहीं जानते तो हम आपको बताते हैं कि यह सुपरस्टार और कोई नहीं बल्कि मराठी सिनेमा के बेताज बादशाह दादा कोंडके हैं. 

8 अगस्त 1932 को मुंबई के लालबाग में एक साधारण कोंकण परिवार में जन्मे दादा कोंडके का असली नाम कृष्णा कोंडके था. वह मराठी सिनेमा के एक ऐसे सितारे  हैं, जिन्होंने अपनी कॉमेडी और डबल मीनिंग डायलॉग्स से दर्शकों का दिल जीता. दादा कोंडके के बचपन में छोटी-मोटी गुंडागर्दी और नायगांव की चॉल में बीते दिन उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन गए. वहीं परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उन्होंने 'अपना बाजार' में नौकरी करना शुरू किया. इसके बाद में सेवा दल के बैंड में वह शामिल हुए, जो कि कला के क्षेत्र में उनका एक कदम था. 

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दादा ने 1969 में भालजी पेंढारकर की फिल्म तांबडी माती से अपना फिल्मी करियर शुरू किया. वहीं दो साल बाद 1971 में सोंगाड्या ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया. इस फिल्म में उनके किरदार 'नाम्या' की सादगी और कॉमेडी ने दर्शकों को दीवाना बना दिया. इसके बाद पांडू हवलदार, आंधळा मारतो डोळा, राम राम गंगाराम, और बोट लावीन तिथे गुदगुल्या जैसी फिल्मों में वह नजर आए, जिसने उन्हें मराठी सिनेमा का बेताज बादशाह बना दिया. यहां तक कि उनकी 9 फिल्मों ने 25 हफ्तों तक सिनेमाघरों में धूम मचाई, जिसके लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है. 

दादा की फिल्मों में उनके डबल मीनिंग डायलॉग्स और बोल्ड टाइटल्स, जैसे अंधेरी रात में दिया तेरे हाथ में और खोल दे मेरी जुबान उनकी खासियत थी. टाइटल्स और डायलॉग्स सेंसर बोर्ड के लिए चुनौती बन जाते थे, लेकिन दादा की चतुराई और राजनीतिक रसूख ने उनकी फिल्मों को बैन होने से बचा लेती थीं. उन्होंने मराठी के साथ-साथ हिंदी और गुजराती फिल्में भी बनाईं. उनकी प्रोडक्शन कंपनी कामाक्षी प्रोडक्शन्स ने उषा चव्हाण, महेंद्र कपूर, और राम-लक्ष्मण जैसे कलाकारों के साथ मिलकर कई हिट फिल्में दीं. 

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