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This Article is From Jun 05, 2021

पर्यावरण दिवस : लॉकडाउन में कचरा बना मुसीबत, इकट्ठा करना, छांटने-बीनने और रिसाइकलिंग 25% तक प्रभावित

World Environment Day: कोरोना काल में अस्पतालों और कोविड केयर केंद्रों (Covid Care Centre) से निकल रहा मेडिकल कचरा भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, क्योंकि ज्यादातर अस्पतालों के पास बायोमेडिकल वेस्ट (Bio Medical Waste) के निपटारे की व्यवस्था ही नहीं है. 

पर्यावरण दिवस : लॉकडाउन में कचरा बना मुसीबत, इकट्ठा करना, छांटने-बीनने और रिसाइकलिंग 25% तक प्रभावित
पर्यावरण दिवस 2021: India की बढ़ती चुनौतियां और समाधान
नई दिल्ली:

World Environment Day: भारत दुनिया में कचरा पैदा करने वाला सबसे बड़ा देश है, जहां हर साल करीब 30 करोड़ टन सॉलिड वेस्ट ( Solid Waste) पैदा हो रहा है, लेकिन हम इसका 60 फीसदी ही निस्तारित कर पाते हैं. लेकिन कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण कचरे को इकट्ठा करने, उसे छांटने-बीनने और रिसाइकल (Waste Recycling) करने की व्यवस्था भी चरमरा गई है. पिछले साल लॉकडाउन के दौरान कचरा निस्तारण (Waste Disposal) में 25 फीसदी कमी आई थी और इस साल भी लॉकडाउन (Lockdown) के दूसरे चरण में 15-20 फीसदी काम प्रभावित हो चुका है. फिलहाल नगर निकाय और कुछ एजेंसियां ही सुचारू रूप से काम कर पा रही हैं. विश्व पर्यावरण दिवस पर पेश एक रिपोर्ट...

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कोरोना काल में अस्पतालों और कोविड केयर केंद्रों (Covid Care Centre) से निकल रहा मेडिकल कचरा भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, क्योंकि ज्यादातर अस्पतालों के पास बायोमेडिकल वेस्ट (Bio Medical Waste) के निपटारे की व्यवस्था ही नहीं है. अग्रणी फूड प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग समाधान कंपनी, टेट्रापैक (Tetrapak) के सस्टेनेबिलिटी डायरेक्टर (एशिया पैसेफिक) जयदीप गोखले का कहना है कि कचरा इकट्ठा करने में असंगठित क्षेत्र के कामगार सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण इनमें से काफी कुछ पलायन कर गए. इलेक्ट्रानिक, प्लास्टिक (Plastic Waste) या अन्य कचरा बीनने-छांटने का काम भी मुश्किल हुआ है. रिसाइकलिंग (Recycling) में श्रमिकों की भी कमी है. शहर के अंदर या बाहर कूड़े के परिवहन या उसको रिसाइकलर तक पहुंचाने में भी मुश्किलें हैं. इस काम को आवश्यक सेवाओं में शामिल नहीं किया गया है.


भारत में सॉलिड वेस्ट के तीन बड़े संकट

1. पूरा कचरा नहीं हो पाता रिसाइकल
भारत में 1.50 से 1.70 लाख टन कचरा रोज निकलता है, जो जल, वायु और भूतल प्रदूषण का कारण बन रहा है. इसमें 25 फीसदी का ही निस्तारण हो पाता है, 60 फीसदी ही लैंड फिल साइट तक पहुंचता है. बाकी इधर-उधर ही पड़े रहकर पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है. भारत में 75 फीसदी से ज्यादा कचरा खुले में डंप किया जाता है.

2. दिल्ली जैसे शहर कचरा उत्पादन में आगे...

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट बताती है दिल्ली में करीब 30 लाख टन कचरा उत्पन्न होता है, जो मुंबई, बेंगलुरु,हैदराबाद जैसे शहरों की तुलना में कई गुना है. लेकिन इन शहरों मे भी इलेक्ट्रानिक, प्लास्टिक जैसे कचरों को अलग-अलग करने और सही ढंग से रिसाइकलिंग की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. इन शहरों में लैंड फिल साइट भर चुकी हैं. प्लास्टिक या कचरे को कई जगहों पर जलाया जाता है. किसी भी जगह नई लैंड फिल साइट का लोग विरोध कर रहे हैं. 

3. कोरोनाकाल में बढ़ा बायोमेडिकल कचरा
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के कोविड वेस्ट ट्रैकिंग सिस्टम के मुताबिक, जून 2020 से मई 2021 के बीच 50 हजार मीट्रिक टन बायो मेडिकल वेस्ट पैदा हुआ है, जो पिछले साल के मुकाबले कई गुना है. प्रतिदिन औसतन यह 140 मीट्रिक टन रहा है, जो पिछले साल से कई गुना रहा. 10 मई 2021 को मेडिकल कचरे का उत्पादन 250 मीट्रिक टन तक पहुंच गया. 

कचरा निस्तारण के 3 बड़े समाधान

1. पेपर कार्टन बेहतर विकल्प
प्लास्टिक पैकेजिंग के विकल्प पर गोखले का कहना है कि प्लास्टिक को की तुलना में पेपर कार्टन रिन्यूवेबल सोर्स से आते हैं और उन्हें आसानी से रिसाइकल किया जा सकता है. टेट्रा पैक कार्टन (Tetra Pak cartons) का 75 फीसदी पेपर बोर्ड होता है.बाकी 20 फीसदी पॉलिथिन और 5 फीसदी एल्युमिनियम होता है.लाइफ साइकल एनालिसिस के आधार पर देखें तो पेपर कार्टन का कार्बन फुटप्रिंट या कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emission) सबसे कम है. इनके निर्माण में भी प्रदूषण न के बराबर है.

2. EPR जैसा कानून लागू हो
गोखले ने कहा, यूरोपीय देशों में कार्टन का 70 से 80 फीसदी तक रिसाइकल हो जाता है. पेट बोटल, प्लास्टिक का भी 60-70 फीसदी तक रिसाइकल होता है. इसका एक बड़ा कारण EPR यानी एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर्स रिस्पांसबिलिटी (Extended Producers Responsibility) कानून है, जो ऐसे वेस्ट मैटिरयल का उत्पादन करने वालों पर ही रिसाइकलिंग की जिम्मेदारी डालता है. भारत में भी नेशनल EPR फ्रेमवर्क प्रस्तावित तो है, लेकिन अमल में नहीं आय़ा है. लेकिन ये स्वैच्छिक है, जबकि यूरोपीय देशों में यह कानूनी रूप से अनिवार्य है. उल्लंघन करने पर पेनाल्टी या लाइसेंस रद्द हो सकता है. 

3. प्रदूषण, पैकेजिंग-रिसाइकलिंग के कानून में एकरूपता हो
पैकेजिंग इंडस्ट्री (Packaging Industry) के सामने सबसे बड़ी समस्या देश और राज्यों के अलग-अलग कानून हैं. टेट्रा पैक के गोखले का कहना है कि प्रदूषण, पैकेजिंग, रिसाइकलिंग के क्षेत्र संगठित तरीके से काम करने में दिक्कतें पेश आती हैं. लिहाजा पूरे देश में एक जैसा कानून हो, स्पष्ट और अच्छे तरह से परिभाषित हो. उनका सही तरह से अनुपालन भी कराया जाए. वेस्ट मैनेजमेंट का इन्फ्रास्ट्रक्चर भी देश में मजबूत नहीं है, जिससे कि घरों से ही कूड़े को अलग-अलग किया जा सके. इसकी पूरी वैल्यू चैन बननी चाहिए. कंज्यूमर, कूड़ा या कबाड़ इकट्ठा करने वाले, कलेक्शन पाटनर्स(Waste Collection Partners) , रिसाइकलर, म्यूनिसिपिलिटी, एनजीओ (NGO) सबको इसमें सही तरह से हिस्सेदार बनाना होगा. इन्हें किसी सामाजिक सुरक्षा, सब्सिडी देने का विकल्प भी बेहतर है.

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