प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कार्यकाल के साढ़े चार साल बीत जाने के बाद नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल की सहायता करने तथा दीर्घावधि रणनीतिक रक्षा समीक्षा में मदद के लिए स्ट्रैटेजिक पॉलिसी ग्रुप का पुनरुद्धार करने का फैसला किया है. इस कदम से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोवाल देश के सबसे शक्तिशाली नौकरशाह हो जाएंगे, जिनके पद का सृजन वर्ष 1998 में किया गया था. केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने NDTV को बताया, यह पॉलिसी ग्रुप अंतर-मंत्रालयी सामंजस्य के लिए तथा राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियां बनाने के दौरान सुझावों को शामिल करने के लिए सबसे अहम मैकेनिज़्म होगा.
...इस तरह सरकार में 'पावर सेंटर' बने NSA अजीत डोवाल
इससे पहले इस ग्रुप की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव किया करते थे, जो सरकार में सबसे वरिष्ठ नौकरशाह होते हैं. लेकिन अब इस ग्रुप की अध्यक्षता देश के शीर्षतम राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी अजीत डोवाल करेंगे, और इसके सदस्यों में नीति आयोग के उपाध्यक्ष, कैबिनेट सचिव, तीनों सेना प्रमुख, RBI के गवर्नर, विदेश सचिव, गृह सचिव, वित्त सचिव तथा रक्षा सचिव शामिल होंगे. इनके अलावा रक्षा उत्पादन तथा आपूर्ति विभाग के सचिव, रक्षामंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार तथा कैबिनेट सचिवालय के सचिव भी पैनल पर रहेंगे, जिनके साथ राजस्व, आणविक ऊर्जा, अंतरिक्ष विभागों एवं इंटेलिजेंस ब्यूरो के शीर्ष अधिकारी भी पैनल में शामिल होंगे. अन्य मंत्रालयों तथा विभागों को भी आवश्यकता पड़ने पर बैठकों में आमंत्रित किया जाएगा. NSA अजीत डोवाल बैठक आहूत करेंगे, तथा उसमें लिए गए निर्णयों को लागू करवाने के लिए सभी मंत्रालयों तथा राज्यों से कैबिनेट सचिव को सामंजस्य स्थापित करना होगा.
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सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, "इसमें नया कुछ नहीं है... यह ग्रुप पिछली UPA सरकार के कार्यकाल में भी इसी तरह काम कर रहा था... इसकी सिफारिश उस समिति ने की थी, जिसे कारगिल युद्ध के दौरान रही कमियों की जांच करने के लिए गठित किया गया था..." आम चुनाव से कुछ ही महीने पहले इस पॉलिसी ग्रुप को फिर रीवाइव करने को लेकर सरकार के भीतर भी सवाल उठने लगे हैं. एक वरिष्ठ नौकरशाह ने स्वीकार किया, "SPG को अपने कार्यकाल के अंतिम सिरे पर आकर रीवाइव करने के पीछे सरकार की मंशा स्पष्ट नहीं है..." एक सेवानिवृत्त नौकरशाह का कहना है, "NSA अब सबसे ज़्यादा शक्तिशाली हो गई है, और एक ही जगह केंद्रित शक्तियां लोकतंत्र के लिए बहुत स्वस्थ परंपरा नहीं होती है..."
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