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This Article is From Nov 22, 2016

कौन था दिल्ली का सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक, और क्या होता है 'तुगलकी फरमान'...?

कौन था दिल्ली का सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक, और क्या होता है 'तुगलकी फरमान'...?
नई दिल्ली: 14वीं सदी में दिल्ली के तख्त पर 26 वर्ष तक शासन करने वाले मोहम्मद बिन तुगलक का नाम न सिर्फ उसकी बादशाहत और लम्बे-चौड़े साम्राज्य के लिए जाना-पहचाना है, बल्कि रातोंरात बेहद सख्ती से लागू करवाए गए फैसलों के लिए भी उसे अक्सर याद किया जाता है, और आधुनिक युग के नेताओं की भी किसी फैसले को अचानक 'एकतरफा ढंग से' लागू करने पर 'तुगलकी फरमान' कहकर ही आलोचना की जाती है.

दरअसल, 1320 ईस्वी से 1413 तक दिल्ली सल्तनत पर राज करते रहे तुगलक वंश के दूसरे शासक के रूप में मोहम्मद बिन तुगलक 1325 ईस्वी में तख्त पर बैठा, और 26 साल तक सत्तासीन रहा. उपलब्ध इतिहास के अनुसार, उसके शासनकाल में सल्तनत-ए-दिल्ली का भौगोलिक क्षेत्रफल सर्वाधिक रहा, जिसमें लगभग पूरा भारतीय उपमहाद्वीप शामिल था.

इतिहासकारों के मुताबिक बेहद विद्वान शासकों में शुमार किया जाने वाला मोहम्मद बिन तुगलक वज़ीरों और रिश्तेदारों पर भी हमेशा संदेह करता था, और किसी भी शत्रु को कमतर समझना उसकी फितरत में शामिल नहीं था.

दिल्ली की जगह दौलताबाद बनी राजधानी...
उसने कई ऐसे निर्णय लिए, जो आज तक याद किए जाते हैं, और जिन्हें रातोंरात जबरन लागू करवाने की वजह से 'तुगलकी फरमान' का मुहावरा मशहूर हुआ. मोहम्मद बिन तुगलक ने अचानक अपनी राजधानी को दिल्ली से महाराष्ट्र के देवगिरी ले जाने का फैसला किया, जिसका नाम उसने दौलताबाद रखा. इस फैसले में सबसे खराब पहलू यह था कि उसने दिल्ली की आबादी को भी दौलताबाद स्थानांतरित होने के लिए मजबूर किया. बताया जाता है कि जो लोग स्थानांतरित हुए, उनमें से बहुतों की मौत रास्ते में ही हो गई. वैसे भी दौलताबाद खुश्क इलाका था, जहां बादशाह को पानी की ज़बरदस्त किल्लत का सामना करना पड़ा, और आखिरकार राजधानी को वापस दिल्ली स्थानांतरित करना पड़ा.

चांदी की जगह चलेंगे तांबे के सिक्के...
इसके अलावा मोहम्मद बिन तुगलक का एक और बेहद चर्चित फैसला था रातोंरात चांदी के सिक्कों की जगह तांबे के सिक्के चलवाना. उसने तांबे के जो सिक्के ढलवाए, वे अच्छे स्तर के नहीं थे, और लोगों ने उनकी नकल करते हुए उन्हें घरों में ही ढालना शुरू कर दिया, तथा उन्हीं से जज़िया (टैक्स) अदार करने लगे. सो, कुल मिलाकर उसका यह फैसला भी गलत साबित हुआ, और इससे राजस्व की भारी क्षति हुई, और फिर उस क्षति को पूरा करने के लिए उसने करों में भारी वृद्धि भी की.

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