प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
मौजूदा कैश की किल्लत के बाद डिजिटल लेनदेन को लेकर सरकार के दावों पर फिर बहस हो रही है. सवाल उठता है कि क्या डिजिटल लेनदेन में वाकई बड़ी क्रांति हुई है और अगर हां तो फिर कैश की कमी क्यों है. हमने आरबीआई के आंकड़ों को खंगाला जिससे पता चलता है डिजिटल लेनदेन ऐसे नहीं बढ़ा है कि वह कैश की जगह ले ले. लोग अब भी कैश पर कायम हैं.
सरकार कैश की अचानक हुई कमी से निबटने की कोशिश में है जबकि हमने से पता लगाने की कोशिश की कि नोटबन्दी के आगे और पीछे डिजिटल लेनदेन का ग्राफ कैसा रहा है.
नोटबंदी नवंबर के महीने में की गई तो हमने अक्टूबर के महीने को तुलना का आधार बनाया है. मोबाइल बैंकिंग पर नज़र डालें तो नोटबन्दी से पहले के दो सालों में ये लेन-देन औसतन साढ़े तीन से चार गुना बढ़ रहा था.
अक्टूबर 2014 में जहां मोबाइल बैंकिंग का कारोबार 9000 करोड़ था वहीं अक्टूबर 2015 में ये बढ़कर 30600 करोड़ हो गया यानी तीन गुना से अधिक की बढ़ोतरी. फिर अगले साल अक्टूबर 2016 में ये कारोबार 30600 करोड़ से बढ़कर करीब 4 गुना बढ़कर 113941 करोड़ रुपये हो गया. लेकिन दिलचस्प है कि नोटबंदी के बाद के पहले साल में मोबाइल बैंकिंग का कारोबार 22241 करोड़ कम हुआ और अक्टूबर 2017 में ये आंकड़ा 91700 करोड़ का था. हालांकि फरवरी 2018 में मोबाइल बैंकिंग का कारोबार 114600 करोड़ हो गया यानी उतना ही जितना नोटबंदी से ठीक पहले था.
PoS मशीन पर क्रेडिट कार्ड को देखें तो अक्टूबर 2014 में 17100 करोड़ का लेनदेन हुआ जबकि अक्टूबर 2015 में 21600 करोड़ के ट्रांजैक्शन हुए.
नोटबंदी से ठीक पहले अक्टूबर 2016 में क्रेडिट कार्ड से PoS मशीन पर 29900 करोड़ के लेनदेन हुये. यानी 2014 से 2016 के आंकड़ों - नोटबंदी से पहले दो सालों में- 26.30% और 38.4% की बढ़ोतरी हुई. नोटबंदी के एक साल बाद अक्टूबर 2017 में क्रेडिट कार्ड से 41900 करोड़ के लेनदेन हुये. यानी करीब 40% की वृद्धि. साफ है कि डिजिटल लेन देन की रफ्तार में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई. जबकि इस साल फरवरी 2018 में 37600 करोड़ के डिजिटल लेनदेन हुये.
जेएनयू में प्रोफेसर और अर्थशास्त्री हिमांशु कुमार कहते हैं, "डिजिटल लेनदेन पिछले करीब 10 सालों से तेज़ रफ्तार से बढ़ रहा है और नोटबंदी के बाद भी इसकी रफ्तार में कोई खास अंतर नहीं है. जहां तक कैश की कमी की बात है उसका कोई एक कारण नज़र नहीं आता. लेकिन आम लोगों और देश की बड़ी आबादी के लिये नकदी अभी भी लेनदेन का पसंदीदा ज़रिया है."
दूसरी और PoS मशीन पर डेबिट कार्ड नोटबंदी से पहले दो सालों में 15.8% की बढ़ोतरी हुई 57.55 % की बढ़ोतरी हुई. नोटबंदी के साल भर बाद अक्टूबर महीने में 87% की बढ़ोतरी ज़रूर हुई लेकिन फिर इस साल फरवरी महीने में 4000 करोड़ की गिरावट हुई है. लेकिन फरवरी 2018 में ये लेनदेन करीब 4000 करोड़ घटकर 37100 करोड़ हो गया.
कैश इन फ्लो यानी बाज़ार में नकदी नोटबंदी के बाद अचानक कम हुई लेकिन अब फिर सामान्य स्थिति में है. पिछले साल सितंबर में 15,04,800 करोड़ रुपया सर्कुलेशन में था और मार्च 2018 में 1759900 करोड़ रुपया सर्कुलेशन में है.
सरकार कैश की अचानक हुई कमी से निबटने की कोशिश में है जबकि हमने से पता लगाने की कोशिश की कि नोटबन्दी के आगे और पीछे डिजिटल लेनदेन का ग्राफ कैसा रहा है.
नोटबंदी नवंबर के महीने में की गई तो हमने अक्टूबर के महीने को तुलना का आधार बनाया है. मोबाइल बैंकिंग पर नज़र डालें तो नोटबन्दी से पहले के दो सालों में ये लेन-देन औसतन साढ़े तीन से चार गुना बढ़ रहा था.
अक्टूबर 2014 में जहां मोबाइल बैंकिंग का कारोबार 9000 करोड़ था वहीं अक्टूबर 2015 में ये बढ़कर 30600 करोड़ हो गया यानी तीन गुना से अधिक की बढ़ोतरी. फिर अगले साल अक्टूबर 2016 में ये कारोबार 30600 करोड़ से बढ़कर करीब 4 गुना बढ़कर 113941 करोड़ रुपये हो गया. लेकिन दिलचस्प है कि नोटबंदी के बाद के पहले साल में मोबाइल बैंकिंग का कारोबार 22241 करोड़ कम हुआ और अक्टूबर 2017 में ये आंकड़ा 91700 करोड़ का था. हालांकि फरवरी 2018 में मोबाइल बैंकिंग का कारोबार 114600 करोड़ हो गया यानी उतना ही जितना नोटबंदी से ठीक पहले था.
PoS मशीन पर क्रेडिट कार्ड को देखें तो अक्टूबर 2014 में 17100 करोड़ का लेनदेन हुआ जबकि अक्टूबर 2015 में 21600 करोड़ के ट्रांजैक्शन हुए.
नोटबंदी से ठीक पहले अक्टूबर 2016 में क्रेडिट कार्ड से PoS मशीन पर 29900 करोड़ के लेनदेन हुये. यानी 2014 से 2016 के आंकड़ों - नोटबंदी से पहले दो सालों में- 26.30% और 38.4% की बढ़ोतरी हुई. नोटबंदी के एक साल बाद अक्टूबर 2017 में क्रेडिट कार्ड से 41900 करोड़ के लेनदेन हुये. यानी करीब 40% की वृद्धि. साफ है कि डिजिटल लेन देन की रफ्तार में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई. जबकि इस साल फरवरी 2018 में 37600 करोड़ के डिजिटल लेनदेन हुये.
जेएनयू में प्रोफेसर और अर्थशास्त्री हिमांशु कुमार कहते हैं, "डिजिटल लेनदेन पिछले करीब 10 सालों से तेज़ रफ्तार से बढ़ रहा है और नोटबंदी के बाद भी इसकी रफ्तार में कोई खास अंतर नहीं है. जहां तक कैश की कमी की बात है उसका कोई एक कारण नज़र नहीं आता. लेकिन आम लोगों और देश की बड़ी आबादी के लिये नकदी अभी भी लेनदेन का पसंदीदा ज़रिया है."
दूसरी और PoS मशीन पर डेबिट कार्ड नोटबंदी से पहले दो सालों में 15.8% की बढ़ोतरी हुई 57.55 % की बढ़ोतरी हुई. नोटबंदी के साल भर बाद अक्टूबर महीने में 87% की बढ़ोतरी ज़रूर हुई लेकिन फिर इस साल फरवरी महीने में 4000 करोड़ की गिरावट हुई है. लेकिन फरवरी 2018 में ये लेनदेन करीब 4000 करोड़ घटकर 37100 करोड़ हो गया.
कैश इन फ्लो यानी बाज़ार में नकदी नोटबंदी के बाद अचानक कम हुई लेकिन अब फिर सामान्य स्थिति में है. पिछले साल सितंबर में 15,04,800 करोड़ रुपया सर्कुलेशन में था और मार्च 2018 में 1759900 करोड़ रुपया सर्कुलेशन में है.
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