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This Article is From Mar 04, 2019

आखिर क्या हुआ था बालाकोट में? भारत के दावे को साबित कर सकती हैं सैटेलाइट से मिली अप्रकाशित तस्‍वीरें

भारत के नियंत्रण रेखा पार कर पाकिस्‍तान के बालाकोट में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के ट्रेनिंग कैंप पर बम गिराने की घोषणा के 5 दिन बाद भी सरकार ने अब तक उस हमले की कोई भी तस्‍वीर जारी नहीं की है.

आखिर क्या हुआ था बालाकोट में? भारत के दावे को साबित कर सकती हैं सैटेलाइट से मिली अप्रकाशित तस्‍वीरें
भारत (India) ने 26 फरवरी को पाकिस्तान (Pakistan) के बालाकोट स्थित आतंकी कैंपों को ध्वस्त किया था...
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भारत ने बीते 26 फरवरी को आतंकी कैंपों को किया था ध्वस्त
करीब 19 मिनट तक चला था यह ऑपरेशन
भारतीय लड़ाकू विमानों ने रात 3 बजे के करीब नियंत्रण रेखा पार की थी
नई दिल्ली:

भारत के नियंत्रण रेखा पार कर पाकिस्‍तान के बालाकोट में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्‍मद के ट्रेनिंग कैंप पर बम गिराने की घोषणा के 5 दिन बाद भी सरकार ने अब तक उस हमले की कोई भी तस्‍वीर जारी नहीं की है. विपक्षी नेता जैसे ममता बनर्जी ने इसे लेकर वायुसेना की तारीफ तो की लेकिन साथ ही कहा कि अब जब विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान  की सुरक्षित वतन वापसी हो चुकी है, सरकार को बालाकोट हमले की जानकारी जरूर देनी चाहिए.

हमले की सैटेलाइट तस्‍वीरें, जिन्‍हें फिलहाल सरकारी अधिकारी अत्यंत गोपनीय मान रहे हैं, हमले में इस्‍तेमाल किए गए इजरायली बमों के असर की जगह का खुलासा कर सकते हैं. आपको बता दें कि 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना के मिराज लड़ाकू विमान सुबह 3:30 बले नियंत्रण रेखा पार कर 20 किलोमीटर अंदर तक गए थे और करीब 19 मिनट तके चले इस ऑपरेशन को अंजाम दिया था.

निशाना थीं जैश के आतंकी कैंप में स्थित 6 इमारतें.

NDTV को पता चला है कि दो अलग-अलग स्रोतों से सरकार द्वारा ली गईं तस्‍वीरें इस बात को साबित कर सकती हैं कि स्‍पाइस 2000 ग्‍लाइड बमों ने 5 अलग अलग ढांचों को निशाना बनाया जो पाकिस्‍तान के खैबर पख्‍तूनवा के बालाकोट के पास स्थित बिसियां टाउन के पश्चिम में स्थित थे.

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इन संरचनाओं की छतों पर छोटे छेद इजरायल में बने इन बमों के एंट्री प्‍वाइंट को दर्शाते हैं. हालांकि यह बम विस्‍फोट होने से पहले इमारतों, बंकरों और शेल्‍टरों को भेद कर अंदर घुसने के लिए डिजाइन नहीं किए गए हैं. स्‍पाइस 2000 को 'डीकैपिटेटिंग वेपन' कहा जाता है जो सटीक हमले के जरिए दुश्‍मन के नेतृत्‍व को खत्‍म करने के लिए डिजाइन किया गया है.

इस्‍तेमाल किए गए कुछ स्‍पाइस 2000 संभवत: उस ढांचे को पूरी तरह नहीं गिरा पाए जिसपर वो गिरे.

जैसा कि पहले भी NDTV ने रिपोर्ट की है, भारतीय वायुसेना के कुछ मिराज 2000 लड़ाकू विमान नियंत्रण रेखा पार कर उस ऊंचाई तक गए जहां विमान में लगे सिस्‍टम स्‍पाइस 2000 ग्‍लाइड बम को इलेक्‍ट्रॉनिक रूप से रिलीज कर देते.

भारतीय लड़ाकू विमानों ने रात 3 बजे के करीब नियंत्रण रेखा पार की और 20 किलोमीटर अंतर तक गए, अलग-अलग अपने लॉन्‍च प्‍वाइंट तक उड़ान भरी ताकि पाकिस्‍तान के रडार की पकड़ में जल्‍दी ना आ सकें. फ्रांस में बने मिराज विमानों में से एक बिना बम गिराए ही वापस लौट आया क्‍योंकि उसमें लगे कंप्‍यूटर ने ऐसा करने की इजाजत नहीं दी.

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गिराए जाने के बाद ग्‍लाइड बम पहले से ही फीड किए गए जीपीएस कोऑर्डिनेट्स की मदद से दर्जनों किलोमीटर की दूरी की. जैसे ही वो अपने लक्ष्‍य के पास पहुंचे, वो पहले से ही लोड की गईं आतंकी ट्रेनिंग कैंप की खुफिया तस्‍वीरों से मिलती जुलती संरचनाओं को ढूंढने लगे. उसके बाद अपने निर्धारित लक्ष्‍य पर गिर गए.

हमले के घंटों बाद बालाकोट के ऊपर बादलों की चादर छाए रहने की वजह से उस वक्‍त वहां से गुजर रहे भारतीय सैटेलाइट अगली सुबह उस जगह की हाई रिजोल्‍यूशन तस्‍वीरें नहीं ले सके. 

ऑस्‍ट्रेलिया स्थित इंटरनेशलन साइबर पॉलिसी सेंटर ने कमर्शियली उपलब्‍ध सैटेलाइट तस्‍वीरों का विश्‍लेषण करने के बाद बालाकोट हमले की सफलता के भारत सरकार के दावों पर सवाल उठाए हैं. रिपोर्ट के लेखक नेथन रूसेर के अनुसार, 27 फरवरी की सुबह प्‍लैनेट लैब्‍स इंक द्वारा ली गई तस्‍वीरें जो ASPI ने देखी हैं, वो भारत सरकार के दावों पर सवाल उठाती हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, 'तस्‍वीरों में आतंकी कैंप या उसके आस-पास के इलाकों में किसी भी तरह के नुकसान के सबूत नहीं दिखते.' रूसेर साथ ही यह भी कहते हैं कि स्‍थानीय मीडिया ने कई रिपोर्ट छापी हैं जिनमें आस-पास कई छोटे गड्ढों की बात कही गई है जो दर्शाते हैं कि भारतीय वायुसेना लक्ष्‍य से चूक गई.

जिन वरिष्‍ठ अधिकारियों ने NDTV ने बात की उन्‍होंने स्‍पष्‍ट रूप से इस बात से इनकार किया कि स्‍पाइस 2000 ग्‍लाइड बम चूके हैं. वो कहते हैं कि वहां जो गड्ढों की बात की जा रही है, ये वो इलाके हो सकते हैं जहां कैंप के आतंकी इंप्रोवाइज एक्‍सप्‍लोसिव डिवाइस (आईईडी) की ट्रेनिंग लेते हैं. वो कहते हैं कि स्‍पाइस 2000 क्रेटर नहीं छोड़ते अगर वो उन इलाकों में गिरते. इसके बजाय वहां टीले बन गए होंगे क्‍योंकि ये बम अपने लक्ष्‍य को भेदकर अंदर जाकर फटने के लिए डिजाइन किए गए हैं.

NDTV को एक अगोपनीय सैटेलाइट तस्‍वीर भी दिखाई गई जिसमें पोखरण में भारतीय वायुसेना की परीक्षण रेंज स्थित एक लक्ष्‍य को दिखाया गया है. इस लक्ष्‍य पर सितंबर 2016 में स्‍पाइस 2000 बम का इस्‍तेमाल किया गया था. तस्‍वीर में घेरे में जो ढांचा दिख रहा है, उसकी छत पर एक छोटा छेद दिख रहा है तो बम का एंट्री प्‍वाइंट है. अधिकारियों के अनुसार ऐसी ही प्‍वाइंट ऑफ एंट्री जैश-ए-मोहम्‍मद के कैंप सैटेलाइट तस्‍वीरों में भी दिखेगी.
 
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इससे पहले अवॉर्ड वीनिंग पत्रकार ताहा सिद्दिकी ने 'द प्रिंट' में एक लेख लिखा, जिसमें एक ऑडियो रिकॉर्डिंग की बात की, जो बलाकोट हमले के दो दिन बाद का है. इस रिकॉर्डिंग में जैश-ए-मोहम्मद इस बात को स्वीकार कर रहा है कि भारतीय वायुसेना ने उनके बालाकोट के सेंटर पर हमला किया था. जहां पर उनके स्टूडेंट जिहाद सीख रहे थे. जैश-ए-मोहम्मद ने यह भी कहा कि भारतीय वायुसेना के हमले में कोई भी मारा नहीं गया.  

पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर रिपोर्ट कर चुकीं स्वतंत्र पत्रकार फ्रांसेस्का मारिनो ने इस संबंध में बताया, "26 फरवरी को जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी कैंपों पर भारत के हमले के बाद वहां मौजूद चश्मदीदों का कहना है कि उन्होंने हमले के कुछ घंटे बाद 35 शवों को एम्बुलेंस से ले जाते देखा था."

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न्यूयॉर्क टाइम्स सहित अन्य रिपोर्टों में यह बात कही गई थी कि जैश-ए-मोहम्मद के ट्रेनिंग कैंप बालाकोट से बहुत पहले हट चुके थे. उस रिपोर्ट में मिलिट्री विश्लेषक और दो पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों का मानना था कि भारतीय वायुसेना के हमले में बहुत कम नुकसान हुआ था. इन दोनों बातों का यह ऑडियो रिकॉर्डिंग खंडन करता है.

इससे पहले, सरकारी सूत्रों ने बताया था कि जैश-ए-मोहम्मद के शिविर पर भारतीय वायुसेना के हमले में लगभग 300 आतंकवादी मारे गए हैं. हालांकि, 28 फरवरी को एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में एयर वाइस मार्शल आरजीके कपूर ने कहा था कि हमले में हुई क्षति और हताहतों की संख्या का आकलन करना अभी बहुत जल्दबाजी होगी.

सैटेलाइट इमेजरी को रिलीज करने की देरी की वजह से यह अटकलबाजी जोरों पर हैं कि आखिर उस हमले में हुआ क्या था. वरिष्ठ सरकारी सूत्रों ने NDTV से कहा है कि यह तय करना सरकार के ऊपर है कि वो सैटेलाइट की तस्वीरों को जारी करे या ना करे.

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