"पापा तो वापस नहीं आएंगे", किसान आंदोलन में मृत किसान के बेटे का छलका दर्द

किसानों ने आखिरकार एक साल तक चले आंदोलन को समाप्त कर 11 दिसंबर को अपने अपने घर लौटने का फैसला किया है, लेकिन इस आंदोलन को सफल बनाने में कई किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दी है.

नई दिल्ली:

किसानों ने आखिरकार एक साल तक चले आंदोलन (Farmers protest) को समाप्त कर 11 दिसंबर को अपने अपने घर लौटने का फैसला किया है, लेकिन इस आंदोलन को सफल बनाने में कई किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दी है. गौरतलब है कि सरकार के तीनों कृषि कानून वापस लेने के बाद दूसरे प्रस्ताव पर भी किसान संगठनों से सहमति बनने के बाद किसानों ने आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया है. सरकार ने भी किसान आंदोलन के दौरान अलग अलग राज्यों में हुई एफआईआर को तुरंत प्रभाव से रद्द करने की बात मान ली है. 

किसानों ने आंदोलन ख़त्म करने का ऐलान किया, 11 दिसंबर से लौटेंगे घर

किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए किसान जसवंत सिंह के बेटे मनप्रीत सिंह से एनडीटीवी ने बात की. उन्होंने बताया कि उनके पिता 24 मई को आंदोलन में आए थे और 31 मई तक यहां रहे जब अचानक उनकी त​बीयत बिगड़ गई. इसके बाद उन्हें इमरजेंसी में एडमिट करवाया गया जहां उनकी मौत हो गई. इससे पहले भी वे छह सात बार इस आंदोलन में आ चुके थे. मनप्रीत ने कहा, "हम जीत कर वापस जा रहे हैं, पापा भी होते तो अपने साथियों के साथ वापस जाते, लेकिन पापा तो अब कभी वापस नहीं आएंगे. पापा की बहुत याद आती है. मां बाप के बिना दुनिया में कुछ नहीं है. वो साथ थे तो कोई टेंशन नहीं थी."

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उन्होंने बताया, "मौत तो सबकी आनी है, लेकिन मुझे गर्व है कि मेरे पापा इस आंदोलन में शहीद हुए हैं." अपनी मां के बारे में बात करते हुए भारी मन से मनप्रीत ने बताया, "जब मैं घर नहीं होता तो मेरी मां घर में अकेली रोती रहती है. उन्हें भी पापा पर मान है और मुझे हिम्मत देती हैं." इस दौरान वहां मौजूद अन्य किसान साथियों की भी आंखें नम हो गईं.

मनप्रीत ने कहा, "पापा की बहुत याद आती है, अगर आज वो हमारे साथ होते तो खुशी दोगुनी हो जाती. यहां अन्य किसान भाईयों ने बहुत प्यार दिया है, इन सब का बहुत ज्यादा साथ है." 

इस आंदोलन में हिस्सा लेने आए जसवंत सिह के एक साथी ने कहा, "दुख होता है कि हमारे काफिले से दो साथ बिछड़ गए, वे कभी वापस नहीं आएंगे. हम सब लोग तब से ही साथ थे जब से इन कानूनों के खिलाफ और सरकार के खिलाफ अलग अलग तरीके से आंदोलन शुरू किया था. हम मोगा जिले से हैं, हमारे वो दोनों साथी जीत सिंह और जसवंत सिंह दिन रात हमारे साथ रहते थे. मोगा स्टेशन पर भी हमने 56 दिन आंदोलन किया था. तब भी वो हमारे साथ ही रहते थे."

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