तीन नए कृषि कानूनों पर (Farm Bills) पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर किए जाने के अगले ही दिन उत्तर प्रदेश के 50 किसानों को हरियाणा की सीमा पर रोक दिया गया. ये किसान अपनी उपज लेकर सरकारी मंडी में बेचने के लिए हरियाणा के करनाल जा रहे थे, तभी उन्हें सीमा पर ही रोक दिया गया. ऐसा तब हुआ है, जब केंद्र सरकार के नए किसान विधेयक पर रविवार की रात को ही राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किए हैं. विवादों में चल रहे इन विधेयकों पर सरकार का दावा है कि इससे किसानों के लिए बिना किसी बाधा के अपनी मर्जी के बाजारों में पहुंचने और अपनी कीमत पर फसल बेचने की आजादी मिलेगी.
करनाल के डिप्टी कमिश्नर निशांत यादव ने शनिवार को राज्य की सीमा पार कर आ रहे किसानों को रोकने का आदेश जारी किया था. ये किसान गैर-बासमती चावलों की अलग-अलग किस्में बेचने आ रहे थे. हरियाणा सरकार इन किस्मों को MSP पर खरीदती है, लेकिन यूपी सरकार नहीं, इसलिए किसान इसे हरियाणा में बेचते हैं.
जानकारी है कि जिला प्रशासन कथित रूप से यह सुनिश्चित करना चाहता था कि यही फसल उपजाने वाले स्थानीय किसानों को वरीयता दी जाए- जैसा पहले कभी नहीं हुआ है. हालांकि, हरियाणा सरकार का कहना है कि गैर-बासमती किस्मों के चावल बेच रहे किसानों को पहले हरियाणा सरकार के एक पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा और फिर अपनी बारी का इंतजार करना होगा.
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अतिरिक्त मुख्य सचिव (खाद्य व नागरिक आपूर्ति) पीके दास ने कहा कि 'ऐसा कोई कानून नहीं है, जो दूसरे राज्यों के किसानों पर हरियाणा में आकर अपनी उपज बेचने से रोकता है. हालांकि, हमारा एक पोर्टल है, जहां किसान अपनी डिटेल भर सकते हैं. इससे हमारे लिए उनसे उपज खरीदना आसान हो जाता है. कोविड की वजह से खरीद प्रभावित हुई है. हर रजिस्टर्ड किसान को बाजार में आने के लिए एक SMS के जरिए तारीख दी जाती है.' उन्होंने कहा, 'हमने इन किसानों से उस पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करने को कहा है. जब वो रजिस्टर कर लेते हैं, तो उन्हें भी वैसा एक SMS भेजा जाएगा. फिर वो तय तारीख पर बाजार में अपनी उपज बेचने आ सकते हैं.'
हालांकि, किसानों और कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थानीय किसानों को वरीयता देने के लिए राज्य सरकार का बहाना है. लेकिन यह केंद्र की मोदी सरकार के किसान विधेयकों को बिल्कुल उलट है. विरोध-प्रदर्शन में किसानों के बीच MSP का सबसे बड़ा मुद्दा है. MSP वो न्यूनतम मूल्य है, जिसपर सरकार किसानों से उनकी उपज खरीदती है. यह मूल्य इसलिए रखा जाता है, ताकि किसानों की मेहनत की कीमत उन्हें मिल सके. लेकिन किसानों का मानना है कि नए विधेयकों में यह प्रावधान खत्म कर दिया गया है और अब वो कॉरपोरेट कंपनियों को दबाव में आ जाएंगे और उन्हें अपनी फसल कम दामों पर बेचनी पड़ेगी. इसे लेकर देशभर में किसान जबरदस्त प्रदर्शन कर रहे हैं.
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