उबर, ओला, स्विगी, जोमैटो कर्मचारियों के लिए सामाजिक सुरक्षा लाभ की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. याचिका में केंद्र को उबर, ओला कैब्स, स्विगी और जोमैटो से जुड़े “गिग वर्करों और “प्लेटफॉर्म वर्करों” को सामाजिक सुरक्षा लाभ देने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है. एप आधारित जन सुविधाओं से जुड़ी कई कम्पनियों के कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर गुहार लगाई है कि उनकी जॉब और सोशल सिक्योरिटी सुनिश्चित करने के इंतजाम करने का आदेश सरकार को दें.
रिट दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वालों में ओला, उबर के ड्राइवर, जोमैटो, स्विगी के डिलिवरी ब्वॉय के साथ इनसे जुड़े कई कर्मचारी भी हैं. याचिका के मुताबिक इन लोगों ने कहा है कि दिन रात मेहनत करने के बावजूद कंपनियों ने उनकी सोशल सिक्योरिटी के लिए कुछ ठोस इंतजाम नहीं किए हैं. ये संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में दिए समानता और गरिमामय जीवन यापन के अधिकारों का हनन है.
याचिका में इन लोगों ने कोविड संकट के दौरान जीवन और रोजी रोटी पर आए संकट के मद्देनजर आर्थिक मदद की भी गुहार लगाई है. इनका कहना है कि 31 दिसंबर तक एप आधारित टैक्सी सेवा से जुड़े चालकों को कम से कम ₹1175 रोजाना और डिलीवरी बॉयज को ₹675 रुपए रोजाना की आमदनी सुनिश्चित की जाए ताकि वो अपना और परिवार का पेट भर सकें. पेंशन और स्वास्थ्य बीमा जैसी सामाजिक सुरक्षा से वंचित करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. सामाजिक सुरक्षा से वंचित करने के परिणामस्वरूप जबरन श्रम के माध्यम से शोषण हुआ है. रोजगार की अनिश्चितता और सामान्य समय के दौरान भी कम कमाई के बावजूद, COVID-19 महामारी के पहले और दूसरे चरण में, ऐप-आधारित श्रमिकों की स्थिति और भी खराब हो गई और रोजगार को नुकसान भी हुआ.
याचिकाकर्ताओं ने यूके के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया है जिसमें कहा गया था कि उबर ड्राइवर न्यूनतम वेतन, भुगतान की गई वार्षिक छुट्टी और अन्य श्रमिकों के अधिकारों के हकदार "श्रमिक" हैं.
यह भी पढ़ेंः
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं