कोरोना महामारी के दौरान 'डिजिटल दूरी' को हटाने में स्‍टूडेंट्स की मदद कर रहीं चेन्‍नई की दो बहनें

कोरोना महामारी के दौरान डिजिटल डिवाइड (digital divide) ने स्‍कूली बच्‍चों को बुरी तरह प्रभावित किया है.चेन्‍नई की दो बहनों गुनीशा और अर्शिता ने दिखाया है कि इस 'दूरी' को हर कोई कैसे 'पाट' सकता है.

चेन्‍नई :

चेन्‍नई के मूलाकडाई में छोटे से घर में IAS ऑफिसर बनने का सपना देख रही आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग की कक्षा 12 की स्‍टूडेंट संगीता अपनी ऑनलाइन क्‍लास के बाद हिंदी सीखने में व्‍यस्‍त है. इसके लिए वह शहर की दो युवा महिलाओं से तोहफे के तौर पर मिले टैबलेट का इस्‍तेमाल कर रही है. इन दो महिलाओं में से एक गुनीशा अग्रवाल, संगीता की तरह कक्षा 12वीं की स्‍टूडेंट है. संगीता की मां का निधन हाल ही में हुआ है और पिता के छोड़ने के बाद वह अपनी दादी धनबकैयम के साथ रहती है. पिता के संगीता को छोड़ देने के बाद धनबकैयम घरेलू नौकरानी के तौर पर काम करती है. 

दादी स्‍मार्टफोन को अफोर्ड नहीं कर सकती. दो बहनों गुनीशा और अर्शिता के मदद के लिए आगे आने से पहले संगीता ऑनलाइन क्‍लास ज्‍वॉइन करने के बारे में कल्‍पना भी नहीं सकती थी. स्‍मार्टफोन या टैबलेट के बगैर होने वाली परेशानियों को जिक्र करते हुए क्‍लॉस की टॉपर संगीता ने NDTV से कहा, 'मैंने ऑनलाइन क्‍लास के बगैर काफी परेशानी झेली है लेकिन अब मैं इसे ज्‍वॉइन कर सकती हूं.' महत्‍वाकांक्षा के बारे में पूछे जाने पर संगीता कहती है, 'कक्षा 12वीं के बाद मैं हिस्‍ट्री में बीए करना चाहती हूं और IAS अधिकारी बनना चाहती हूं. यह मेरी मां का सपना और अब मेरा इरादा है.' विशिष्‍ट पृष्‍ठभूमि से आने वाली अग्रवाल बहनों ने कोविड की पहली लहर आने के बाद से ऑनलाइन क्‍लास के लिए जरूरी स्‍मार्टफोन, टैबलेट और लैपटॉप (नया या इस्‍तेमाल किया हुआ) स्‍टूडेंट को बांटने का मिशन बना रखा है. पिछले 11 माह में वे करीब 500 स्‍टूडेंट्स की इस तरह से मदद कर चुकी हैं. जिन लोगों को devices की जरूरत होती है, वे इनके वेबसाइट- www.helpchennai.org के जरिये या केवल फोन करके मदद मांग सकते हैं. जो व्‍यक्ति, एनजीओ और कॉर्पोरेट इस काम में दोनों बहनों की मदद करना चाहते हैं, वे भी उनकी वेबसाइट के जरिये संपर्क कर सकते हैं.

दोनों बहनों में छोटी गुनीशा, जिसने इस प्रोजेक्‍ट की शुरुआत की है, ने बताया, 'एक नागरिक के तौर पर हमारी लोगों की मदद करने की जिम्‍मेदारी बनती है. जरूरी नहीं है कि यह मदद बड़ी हो. हम उस संसाधन का उपयोग कर सकते हैं जो हमारे पास हैं. यह एक ऐसे cycle का निर्माण करता है कि इससे समाज के हर किसी को समृद्ध बनने में मदद मिलती है.' इन्‍होंने यह काम अभी छोटे स्‍तर  पर प्रारंभ किया है लेकिन वे इसे जल्‍द ही बढ़ाएंगी. निजी व्‍यक्तियों के अलावा रोटरी और कुछ कार्पोरेट्स भी नए टैबलेटस देने के लिए आगे आए हैं. उन्‍होंने बताया कि एक आईटी कंपनी ने 'फ्री ऑफ कास्‍ट' हमारी वेबसाइट डिजाइन की है जो कि दानदाताओं और जरूरतमंद स्‍टूडेंट्स को जोड़ने के लिहाज से 'परफेक्‍ट प्‍लेटफार्म' साबित हुई है. नईनवेली वकील अर्शिता कहती है, 'ऐसे कार्यकर्ता भी हैं जो डिवाइसेस की मरम्‍मत करने और स्‍टूडेंट्स के लिहाज से इन्‍हें काम करने के लायक बनाने में हमारी मुफ्त में मदद कर रहे हैं क्‍योंकि हममें से कोई इसके लिए सक्षम नहीं है.'

इन युवा महिलाओं के पिता महेश कुमार अग्रवाल वरिष्‍ठ IPS अधिकारी हैं. दोनों बहनें कहती हैं कि उन्‍हें इसके लिए प्रेरणा अपनी मां, डॉक्‍टर वनीता से मिली जो यूनिवर्सिटी टीचर हैं. डॉक्‍टर वनीता ने घरेलू नौकरानी की बेटी को लैपटॉप दिया था. इस 'सेवा' में दोनों बेटियों का काफी समय खर्च हो जाता है लेकिन डॉक्‍टर वनीता को बेटियों पर गर्व है. उन्‍होंने कहा, 'इंसान के तौर पर हम सभी को दूसरे के लिए कुछ करना चाहिए, यही जिंदगी को मायने देता है.' कोरोना महामारी के दौरान डिजिटल डिवाइड (digital divide) ने स्‍कूली बच्‍चों को बुरी तरह प्रभावित किया है, राज्‍य में कुछ ने तो खुदकुशी करके जान भी गंवाई है. इन बहनों ने दिखाया है कि इस 'दूरी' को कैसे पाटा जा सकता है. 

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लॉटोलैंड आज का सितारा श्रृंखला में हम साधारण नागरिकों और उनके असाधारण कार्यों को दिखाते हैं. दो बहनों गुनीशा और अर्शिता को सहयोग देते हुए लॉटोलैंड उन्हें 1 लाख रुपये का नकद प्रोत्साहन देगा.