मध्य प्रदेश के पॉवर प्लान्ट में ज़हरीली राख हुई लीक, एस्सार ने कहा- गांववालों की ही है ये हरकत

सिंगरौली, जिसका कुछ हिस्सा उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में आता है, में 10 कोयला आधारित पॉवर प्लान्ट हैं, जिनकी कुल क्षमता देश के किसी भी इलाके में सबसे ज़्यादा 21,000 मेगावॉट है.

नई दिल्ली:

मध्य प्रदेश के सिंगरौली में रहने वाले ग्रामीणों का आरोप है कि एस्सार पॉवर एम.पी. लिमिटेड (EPMPL) द्वारा संचालित एक कोयला पॉवर प्लान्ट में ज़हरीले अवशेषों, यानी राख को जमा करने के लिए बनाए गए कृत्रिम तालाब के टूट जाने से आसपास के चार किलोमीटर क्षेत्र में सभी खेत बरबाद हो गए हैं.

सिंगरौली के जिला कलेक्टर के.वी.एस. चौधरी ने बताया, "पांच बच्चे एक घर में फंस गए थे... हमने उन्हें आधी रात के आसपास बचाया..." एक तस्वीर में पांचों बच्चों के सिरों, चेहरों और सीनों पर सफेद राख की परत को देखा जा सकता है.

सिंगरौली, जिसका कुछ हिस्सा उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में आता है, में 10 कोयला आधारित पॉवर प्लान्ट हैं, जिनकी कुल क्षमता देश के किसी भी इलाके में सबसे ज़्यादा 21,000 मेगावॉट है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के मुताबिक, इन्हीं पॉवर प्लान्टों ने सिंगरौली को गाज़ियाबाद के बाद देश का दूसरा सबसे ज़्यादा प्रदूषित औद्योगिक क्षेत्र बना दिया है.

EPMPL ने एक बयान में कहा कि राख के तालाब का टूटना बुधवार रात की घटना है, और आरोप लगाया कि यह 'साफ-साफ जानबूझकर की गई वारदात' (सैबोटाज या Sabotage) है.

श्री चौधरी ने बताया, "राख के लीक होने से लगभग 500 किसान प्रभावित हुए हैं... हमने शुरुआती जांच की मांग की है, जो कंपनी की ओर से जारी बयान समेत सभी पहलुओं की पड़ताल करेगी..." कलेक्टर ने यह भी बताया कि राज्य तथा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी सैम्पल इकट्ठे कर रहे हैं.

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ग्रामीणों द्वारा मोबाइल फोनों के ज़रिये खींची गई तस्वीरों और बनाए गए वीडियो में पॉवर प्लान्ट के आसपास के इलाकों में गाद की बाढ़ को देखा जा सकता है, जिसमें खेतिहर ज़मीनें भी शामिल हैं.

इस कृत्रिम तालाबा का इस्तेमाल उस राख को जमा करने के लिए किया जाता है, जो कोयला आधारित पॉवर प्लान्ट में मूल उत्पाद के साथ-साथ पैदा हो जाती है. कोयले की यह राख बेहद हानिकारक होती है, जिसमें आरसेनिक समेत कई ज़हरीले पदार्थ होते हैं. विज्ञानियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि पॉवर प्लान्टों के आसपास इस तरह राख के लीक हो जाने से ज़मीन के भीतर मौजूद पानी बहुत ज़हरीला हो सकता है, और इससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा.

सरकार तथा प्रदूषण नियंत्रण के नियमों के अनुसार, राख के तालाबों के चारों और कंक्रीट की दीवार बनाई जानी चाहिए, और नियम यह भी कहते हैं कि राख के तालाबों को क्षमता से ज़्यादा इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.

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सिंगरौली में प्रदूषण को लेकर राष्ट्रीय हरित पंचाट (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल या NGT) में याचिका दायर करने वाले कार्यकर्ता जगत नारायण विश्वकर्मा ने कहा, "कुछ इलाकों में राख छह-छह फुट ऊंचाई तक जमा हो गई है... दो गांव प्रभावित हुए हैं... राख के तालाब की दीवार टूटने की वजह से राख लीक हुई... इन दीवारों को मिट्टी, ईंटों और कंक्रीट से बनाया जाना चाहिए, लेकिन यहां ये दीवारें राख से ही बनाई गई थीं..."

उन्होंने कहा, "यह सही नहीं है... यह इससे पहले भी इलाके के अन्य पॉवर प्लान्टों में हो चुका है, लेकिन किसी को परवाह ही नहीं है..."

एस्सार एनर्जी ने एक बयान में कहा कि तालाब का टूटना 'जानबूझकर की गई हरकत' है. बयान में आरोप लगाया गया है कि इस 'शरारत' के लिए ग्रामीण ज़िम्मेदार हैं. कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर जारी बयान में कहा, "प्लान्ट में तैनात हमारे सुरक्षाकर्मियों ने स्थानीय पुलिस को बयान दिया है कि उन्होंने चार-पांच अनजान लोगों को घटना की रात घटनास्थल से भागते हुए देखा था... हमने 'जानबूझकर की गई हरकत' का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज किए जाने की अर्ज़ी दे दी है, और स्थानीय अधिकारियों को भी घटना के बारे में जानकारी दे दी है..."

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कंपनी का कहना है कि जिस ज़मीन पर राख गिरी है, वह EPMPL के स्वामित्व वाली गैर-खेतिहर ज़मीन है. कंपनी ने कहा, "दरअसल, इस ज़मीन पर वे परिवार कब्ज़ा करने वालों के रूप में अपनी मर्ज़ी से रहते आ रहे हैं, जबकि कंपनी बार-बार उनसे इसे खाली करने के लिए कहती रही है..."