सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
साल 2000 में तमिलनाडु में हिंसक आंदोलन के दौरान बस में आग लगाकर तीन छात्राओं को जिंदा जलाने के मामले में फांसी के सजायाफ्ता AIDMK के तीन समर्थकों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने उनकी सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया है।
भीड़ की हिंसा थी, इसलिए फांसी नहीं
कोर्ट ने कहा है कि यह योजनाबद्ध नहीं बल्कि भीड़ की हिंसा थी, लिहाजा इसके लिए फांसी नहीं दी जा सकती। इस दौरान तमिलनाडु पुलिस ने इसका विरोध नहीं किया। दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि जो घटना हुई वह उनकी नेता जयललिता को दोषी ठहराए जाने से भावनाओं में बहकर हुई, जबकि उनकी मंशा यह नहीं थी। उन्होंने सजा को उम्रकैद में तब्दील करने की मांग की थी।
भावनाओं में बहकर हिंसा की
सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान दोषियों के वकीलों ने दलील दी कि तमिलनाडु में लोग अपनी नेता को बहुत प्यार करते हैं और वे उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं। उस वक्त भी जयललिता के दोषी ठहराए जाने पर भावनाओं में बहकर लोगों ने हिंसक आंदोलन किए। उनका मकसद सिर्फ सरकारी संपत्ति को निशाना बनाना था लेकिन वे बस को सरकारी समझे। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी लेकिन यह कोई सुनियोजित नहीं बल्कि अचानक भावनात्मक रूप से आए गुस्से का नतीजा था। इसलिए उनकी सजा को उम्रकैद में तब्दील किया जाए।
धरमपुरी में जलाई थी बस
फरवरी 2000 में AIDMK के कार्यकर्ताओं ने धरमपुरी में बस में आग लगा दी थी, जिससे तीन छात्राएं जिंदा जल गईं थीं और कई लोग जख्मी हुए थे। जयललिता को कोडाइकनाल में होटल प्लीजेंट स्टे के अवैध निर्माण में दोषी ठहराए जाने और एक साल की सजा सुनाए जाने पर हिंसक आंदोलन हुआ था।
तीन अदालतों में फांसी की सजा के बाद राहत
मामले में दोषी सी मुनियप्पन, नेदू नेदूंचियन और मधु रविंद्रन को फरवरी 2007 में सेलम कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी और दिसंबर 2007 में मद्रास हाईकोर्ट ने सजा को बरकरार रखा। सन 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा पर मुहर लगाई, लेकिन 2011 में दोषियों की याचिका दाखिल होने पर सुप्रीम कोर्ट ने फांसी पर रोक लगा दी। याचिका में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट अपने नियमों में बदलाव करे और फांसी के मामलों की सुनवाई पांच जज या कम से कम तीन जज करें। इसके अलावा फांसी की सजा पर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई चेंबर के बजाए खुली अदालत में हो।
खुली अदालत में हुई सुनवाई
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपने नियमों में बदलाव कर कहा था कि फांसी के मामलों की सुनवाई तीन जजों की बेंच करेगी और पुनर्विचार याचिका की सुनवाई चेंबर के बजाए खुली अदालत में होगी। इसी नियम के तहत तीनों की पुनर्विचार याचिका पर पिछले शुक्रवार को तीन जजों की बेंच ने ओपन कोर्ट में सुनवाई की थी। कोर्ट ने कहा था कि अगले हफ्ते वह सुझाव लेकर आएं कि वह कौन-सी उम्रकैद चाहते हैं।
भीड़ की हिंसा थी, इसलिए फांसी नहीं
कोर्ट ने कहा है कि यह योजनाबद्ध नहीं बल्कि भीड़ की हिंसा थी, लिहाजा इसके लिए फांसी नहीं दी जा सकती। इस दौरान तमिलनाडु पुलिस ने इसका विरोध नहीं किया। दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि जो घटना हुई वह उनकी नेता जयललिता को दोषी ठहराए जाने से भावनाओं में बहकर हुई, जबकि उनकी मंशा यह नहीं थी। उन्होंने सजा को उम्रकैद में तब्दील करने की मांग की थी।
भावनाओं में बहकर हिंसा की
सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान दोषियों के वकीलों ने दलील दी कि तमिलनाडु में लोग अपनी नेता को बहुत प्यार करते हैं और वे उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं। उस वक्त भी जयललिता के दोषी ठहराए जाने पर भावनाओं में बहकर लोगों ने हिंसक आंदोलन किए। उनका मकसद सिर्फ सरकारी संपत्ति को निशाना बनाना था लेकिन वे बस को सरकारी समझे। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी लेकिन यह कोई सुनियोजित नहीं बल्कि अचानक भावनात्मक रूप से आए गुस्से का नतीजा था। इसलिए उनकी सजा को उम्रकैद में तब्दील किया जाए।
धरमपुरी में जलाई थी बस
फरवरी 2000 में AIDMK के कार्यकर्ताओं ने धरमपुरी में बस में आग लगा दी थी, जिससे तीन छात्राएं जिंदा जल गईं थीं और कई लोग जख्मी हुए थे। जयललिता को कोडाइकनाल में होटल प्लीजेंट स्टे के अवैध निर्माण में दोषी ठहराए जाने और एक साल की सजा सुनाए जाने पर हिंसक आंदोलन हुआ था।
तीन अदालतों में फांसी की सजा के बाद राहत
मामले में दोषी सी मुनियप्पन, नेदू नेदूंचियन और मधु रविंद्रन को फरवरी 2007 में सेलम कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी और दिसंबर 2007 में मद्रास हाईकोर्ट ने सजा को बरकरार रखा। सन 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा पर मुहर लगाई, लेकिन 2011 में दोषियों की याचिका दाखिल होने पर सुप्रीम कोर्ट ने फांसी पर रोक लगा दी। याचिका में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट अपने नियमों में बदलाव करे और फांसी के मामलों की सुनवाई पांच जज या कम से कम तीन जज करें। इसके अलावा फांसी की सजा पर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई चेंबर के बजाए खुली अदालत में हो।
खुली अदालत में हुई सुनवाई
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपने नियमों में बदलाव कर कहा था कि फांसी के मामलों की सुनवाई तीन जजों की बेंच करेगी और पुनर्विचार याचिका की सुनवाई चेंबर के बजाए खुली अदालत में होगी। इसी नियम के तहत तीनों की पुनर्विचार याचिका पर पिछले शुक्रवार को तीन जजों की बेंच ने ओपन कोर्ट में सुनवाई की थी। कोर्ट ने कहा था कि अगले हफ्ते वह सुझाव लेकर आएं कि वह कौन-सी उम्रकैद चाहते हैं।
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