हर साल की तरह इस बार भी अमेरिका की ही नहीं दुनिया की चर्चित पत्रिका 'टाइम' ने 'पर्सन ऑफ द ईयर' के लिए रीडर्स पोल (ऑनलाइन वोटिंग) करवाई जिसमें लोगों से पूछा गया कि उनके मुताबिक कौन है 'पर्सन ऑफ द ईयर'. इस वोटिंग में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम सबसे ऊपर रहा और उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप, हिलेरी क्लिंटन, बराक ओबामा, जुलयिन असांज और मार्क ज़ुकरबर्ग जैसी हस्तियों को पछाड़ कर 18 प्रतिशत वोट हासिल किए.
ट्विटर पर इस नतीजे की घोषणा के बाद पीएम मोदी के लिए कई बधाई संदेश आने लगे लेकिन इन ट्वीट्स में से कुछ ऐसे थे जो शायद मामले को पूरा नहीं समझ पाए. ट्विटर पर लिखा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी को 'टाइम पर्सन ऑफ द ईयर' चुन लिया गया है जो कि तथ्यात्मक रूप से गलत है.
"Person of the Year" @narendramodi Congratulations :)
— Kaushik Kishore (@_KaushikKishore) December 5, 2016
#NarendraModi congratulation to PM for wining the times person of the year award ,2 and in last 3 yrs INDIA shinning
— Dharmen bhatt (@DharmenBhatt) December 5, 2016
यहां गौर करने वाली बात यह है कि टाइम 1998 से यह ऑनलाइन पोल करवा रहा है जिसमें वह पाठकों से जानना चाहता है कि 'उनके हिसाब' से पर्सन ऑफ द ईयर कौन है. लेकिन साथ ही मैगज़ीन यह भी साफ करती है कि जरूरी नहीं कि पाठक जिसे इस टाइटल के लिए चुनें, उसे मैगज़ीन द्वारा भी 'पर्सन ऑफ द ईयर' चुना जाए. अगर हम पहले के फैसलों को देखें तो पाएंगे कि टाइम पत्रिका के संपादकों ने बार बार पाठकों की पसंद को दरकिनार करते हुए अंतिम फैसला कुछ और ही लिया है. 1998 में जब पहली बार यह ऑनलाइन पोल हुआ था, तब पहलवान मिक फोली को पाठकों ने 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट दिया था लेकिन पत्रिका ने उस साल बिल क्लिंटन और केन स्टार को पर्सन ऑफ द ईयर चुना. फोली के प्रशंसक इस फैसले से नाराज़ हो गए क्योंकि वह गलती से ऑनलाइन पोल के फैसले को ही आखिरी निर्णय मान बैठे थे.
यहां दिलचस्प यह जानना भी होगा कि इस मैगज़ीन के हिसाब से 'पर्सन ऑफ द ईयर' के मायने क्या हैं. कई लोग इस शीर्षक को 'महानता' के साथ जोड़ते हुए देखते हैं लेकिन पत्रिका के मुताबिक इस टाइटल का अर्थ उस व्यक्ति, घटना या वस्तु से है जिसने उस पूरे साल की गतिविधियों पर बहुत ज्यादा असर डाला हो. यह असर अच्छा या बुरा दोनों हो सकता है, शायद इसलिए एडोल्फ हिटलर, जोसेफ स्टैलिन और अयातुल्लाह ख़ोमेनी जैसे विवादित नाम भी पर्सन ऑफ द ईयर बने हैं. हालांकि बाद में मैगज़ीन विवादित नामों से ज़रा बचने लगी. यही वजह थी कि 9/11 हमले के बाद टाइम ने पर्सन ऑफ द ईयर के लिए न्यूयॉर्क सिटी के मेयर रुडॉल्फ जुलायिनी को चुना गया. हालांकि चर्चा इस बात की भी चली थी कि पत्रिका ने अपने संपादकीय में इस बात की तरफ इशारा किया है कि दरअसल ओसामा बिन लादेन को 'पर्सन ऑफ द ईयर' हैं क्योंकि अल क़ायदा के 9/11 हमले ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था.
चलते चलते एक बात और, जरूर नहीं कि टाइम द्वारा 'पर्सन ऑफ द ईयर' के रूप में हमेशा किसी व्यक्ति को ही नहीं चुना जाए. जैसा कि टाइम कहता है कि वह फैसला लेते वक्त यह देखता है कि इस 'पर्सन' ने इस साल दुनिया भर में कितना प्रभाव डाला है, इसलिए 1966 में इसने 'inheritor' यानि 25 साल से कम उम्र के अमरिकी युवाओं की पीढ़ी को चुना, तो 1968 में अपोलो 8 के अंतरिक्ष यात्रियों को चुना. 1982 में कम्प्यूटर को और 2006 में 'You' यानि हम सबको चुना गया जिसका प्रतिनिधित्व इंटरनेट कर रहा है.
जहां तक पीएम मोदी की बात है तो यह दूसरी बार है जब उन्होंने इस मैगज़ीन के ऑनलाइन पोल को जीता है. 2014 में भी उन्होंने यह पोल जीता था जब उन्हें 16 प्रतिशत वोट मिले थे. यह लगातार चौथा साल है जब इस पोल में पत्रिका ने पीएम मोदी को उन लोगों में से एक माना है जिसने 'खबरों और दुनिया को अच्छे या बुरे किसी भी लहज़े में प्रभावित किया है.'
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