लखनऊ:
सीबीआई की विशेष अदालत ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में करीब 31 साल पहले हुए फर्जी मुठभेड़ मामले में दोषी ठहराए गए तीन पुलिसकर्मियों को फांसी तथा पांच अन्य को उम्रकैद की सजा सुनाई।
फांसी की सजा पाए तीनों पुलिसकर्मी पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) केपी सिंह तथा 12 अन्य लोगों की फर्जी मुठभेड़ दिखाकर हत्या करने के दोषी पाए गए। अभियोजन पक्ष के मुताबिक 12 मार्च, 1982 को गोंडा जिले के कटराबाजार थाना क्षेत्र के माधवपुर गांव में दो पक्षों की रंजिश भड़कने की आशंका के मद्देनजर मौके पर पहुंचे तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक केपी सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
इस हत्या की साजिश कौड़िया के तत्कालीन थानाध्यक्ष आरबी सरोज, तत्कालीन हेड कांस्टेबल राम नायक पाण्डेय तथा सिपाही रामकरन ने रची थी। इसके बाद पुलिसकर्मियों ने माधवपुर पहुंचकर 12 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। पुलिस ने इसे मुठभेड़ का नाम दिया था। केपी सिंह की पत्नी विभा सिंह ने बाद में संदेह होने पर कोर्ट में याचिका दायर की थी। अदालत के आदेश पर मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी।
सीबीआई की जांच में मुठभेड़ को फर्जी पाया गया था। इस मामले में कुल 19 पुलिसकर्मियों के खिलाफ सीबीआई ने आरोपपत्र दाखिल किया था। आरोपी पुलिसकर्मियों में से 10 की मुकदमा विचारण के दौरान मौत हो गई थी।
विशेष सीबीआई न्यायाधीश राजेन्द्र सिंह ने गत 29 मार्च को दोनों पक्षों को सुनने के बाद कौड़िया के तत्कालीन थानाध्यक्ष आरबी सरोज, पीएसी कमाण्डर रमाकान्त दीक्षित, दारोगा नसीम अहमद, मंगल सिंह, परवेज हुसैन, राजेन्द्र प्रसाद सिंह, हेड कांस्टेबल राम नायक पाण्डेय तथा कांस्टेबल रामकरन को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाने की तारीख 5 अप्रैल मुकर्रर की थी। एक आरोपी पुलिसकर्मी प्रेम सिंह रैकवार को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया गया था। अदालत ने शुक्रवार को सजा सुनाते हुए आरबी सरोज, राम नायक पाण्डेय तथा रामकरन को फांसी तथा बाकी पांच पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई।
फांसी की सजा पाए तीनों पुलिसकर्मी पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) केपी सिंह तथा 12 अन्य लोगों की फर्जी मुठभेड़ दिखाकर हत्या करने के दोषी पाए गए। अभियोजन पक्ष के मुताबिक 12 मार्च, 1982 को गोंडा जिले के कटराबाजार थाना क्षेत्र के माधवपुर गांव में दो पक्षों की रंजिश भड़कने की आशंका के मद्देनजर मौके पर पहुंचे तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक केपी सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
इस हत्या की साजिश कौड़िया के तत्कालीन थानाध्यक्ष आरबी सरोज, तत्कालीन हेड कांस्टेबल राम नायक पाण्डेय तथा सिपाही रामकरन ने रची थी। इसके बाद पुलिसकर्मियों ने माधवपुर पहुंचकर 12 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। पुलिस ने इसे मुठभेड़ का नाम दिया था। केपी सिंह की पत्नी विभा सिंह ने बाद में संदेह होने पर कोर्ट में याचिका दायर की थी। अदालत के आदेश पर मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी।
सीबीआई की जांच में मुठभेड़ को फर्जी पाया गया था। इस मामले में कुल 19 पुलिसकर्मियों के खिलाफ सीबीआई ने आरोपपत्र दाखिल किया था। आरोपी पुलिसकर्मियों में से 10 की मुकदमा विचारण के दौरान मौत हो गई थी।
विशेष सीबीआई न्यायाधीश राजेन्द्र सिंह ने गत 29 मार्च को दोनों पक्षों को सुनने के बाद कौड़िया के तत्कालीन थानाध्यक्ष आरबी सरोज, पीएसी कमाण्डर रमाकान्त दीक्षित, दारोगा नसीम अहमद, मंगल सिंह, परवेज हुसैन, राजेन्द्र प्रसाद सिंह, हेड कांस्टेबल राम नायक पाण्डेय तथा कांस्टेबल रामकरन को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाने की तारीख 5 अप्रैल मुकर्रर की थी। एक आरोपी पुलिसकर्मी प्रेम सिंह रैकवार को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया गया था। अदालत ने शुक्रवार को सजा सुनाते हुए आरबी सरोज, राम नायक पाण्डेय तथा रामकरन को फांसी तथा बाकी पांच पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई।
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