प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:
दशकों से लटके राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद की सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है. सुप्रीम कोर्ट में अब 29 अक्टूबर से इस मामले की सुनवाई शुरू हो जाएगी. आज एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मस्जिद में नमाज़ पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं, इस सवाल को बड़ी पीठ को भेजने की जरूरत नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामला पिछले आठ साल से लटका हुआ है. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि अयोध्या में विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांट दिया जाना चाहिए. इसका एक हिस्सा राम लला को, एक हिंदू पक्ष को और तीसरा हिस्सा मुस्लिम पक्ष को दिया जाना चाहिए. जमीन के मालिकाना हक लेकर आए इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. लेकिन सुनवाई लटकी और भटकी हुई है.
इसी सुनवाई के दौरान 1994 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ के फैसले का सवाल उठा जिसमें राम जन्मभूमि पर यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया गया था ताकि हिंदू पूजा पाठ कर सकें. पीठ ने तब यह भी कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है. आज सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के फैसले में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में ज़मीन अधिग्रहण को लेकर टिप्पणी की थी. जिस ज़मीन पर मस्जिद है सरकार उसका अधिग्रहण कर सकती है. नमाज़ कहीं पढ़ी जा सकती है, इसके लिए मस्जिद ज़रूरी नहीं. 1994 का ये फ़ैसला बड़ी बेंच को नहीं सौंपा जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने आज यह फैसला दो-एक से सुनाया. अब अयोध्या ज़मीन विवाद की सुनवाई 29 अक्टूबर से शुरू होगी. अगर बड़ी बेंच को मामला जाता तो अयोध्या विवाद की सुनवाई में देरी होती.
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हालांकि सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले पर एक राय नहीं है. तीसरे जज जस्टिस एस अब्दुल नजीर दोनों जजों से असहमत रहे. उन्होंने कहा 1994 का फैसला सवालों के घेरे में है. उसमें बिना विस्तृत परीक्षण के ये टिप्पणी की गईं. इसका असर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर भी पड़ा. लिहाजा मामले को संविधान पीठ भेजा जाए.
लेकिन अब यह मामला संविधान पीठ में नहीं जाएगा. जाहिर है इस फैसले के कई सियासी पहलू भी हैं. अगले लोकसभा चुनावों से ठीक पहले आए इस फैसले को बीजेपी के लिए एक बड़ी राहत के तौर पर देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि इससे बीजेपी को फायदा हो सकता है जिसके तमाम बड़े नेता कई बार कह चुके हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बनना चाहिए. हालांकि पार्टी इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने की बात कहती आई है. उधर, बाकी पार्टियां भी यही बात कहती हैं लेकिन वे केंद्र और यूपी की बीजेपी सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाती हैं.
आज के फैसले पर प्रतिक्रियाएं आनी भी शुरू हो गई हैं. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि अयोध्या मसला जितना जल्दी सुलझे उतना अच्छा है. उन्होंने कहा कि माननीय उच्चतम न्यायालय का जो फैसला आज हुआ है इस मामले में वह बहुत महत्वपूर्ण है 1994 में भी माननीय उच्चतम न्यायालय ने इस प्रकार की व्याख्या की थी और मुझे लगता है कि श्री राम जन्मभूमि से जुड़ा हुआ जो कथित विवाद है जितनी जल्दी इसका समाधान हो जाए उतनी ही जल्दी यह सौहार्द और समृद्धि के लिए आवश्यक है और देश की बहुसंख्यक जनता इस मामले का अविलंब समाधान भी चाहती है.
यह भी पढ़ें : Ayodhya case Supreme court Verdict: जानिए क्या है राम मंदिर का मुद्दा, यहां पढ़ें अयोध्या विवाद की पूरी कहानी
योगी आदित्यनाथ ने आरोप लगाया कि ऐसे कई लोग हैं जो नहीं चाहते हैं कि इस मुद्दे का कोई समाधान हो. वे न सिर्फ रोड़े अटका रहे हैं बल्कि माहौल भी खराब करना चाह रहे हैं. "हमारी अपील होगी इसका जितनी जल्दी समाधान हो जाए. जो जानबूझकर देश के अंदर विवाद और न्यूसेंस क्रिएट करना चाहते हैं वह लोग कहीं न कहीं रोड़े अटकाने का प्रयास कर रहे हैं. आज का माननीय उच्चतम न्यायालय का जो आदेश बहुत महत्वपूर्ण है और हम इसका स्वागत करते हैं और विश्वास करेंगे कि बहुत शीघ्र ही इस मामले की सुनवाई पूरी करके फैसला देगा."
उधर, आरएसएस ने भी आज के फैसले का स्वागत किया. संघ ने एक बयान में कहा कि आज सर्वोच्च न्यायालय ने श्री राम जन्मभूमि के मुकदमे में तीन सदस्यीय पीठ के द्वारा 29 अक्टूबर से सुनवाई का निर्णय किया है, इसका हम स्वागत करते हैं और विश्वास करते हैं कि शीघ्रातिशीघ्र मुकदमे का न्यायोचित निर्णय होगा.
जबकि कांग्रेस ने कहा कि बीजेपी इस मुद्दे पर देश को पिछले तीस साल से बेवकूफ बना रही है. वहीं मामले में बाबरी मस्जिद की पैरवी कर रहे पक्षकारों ने निराशा जताई है.
अयोध्या विवाद में केंद्रीय मंत्री उमा भारती पर मुकदमा चल रहा है. उन्होंने भी आज के फैसले पर अपनी बात रखी है. हालांकि उन्होंने कह डाला कि राम जन्मभूमि हिंदुओं के लिए पवित्र है मगर मुसलमानों के लिए नहीं जिनके लिए मक्का पवित्र है. उमा भारती ने उम्मीद जताई कि अब जल्दी ही राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू होगा. लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने आज के फैसले को लेकर हो रहे हंगामे पर हैरानी जताई है. उन्होंने कहा कि इतना उत्साह समझ के परे है.
यह भी पढ़ें : बहुमत से अलग जस्टिस नजीर बोले- व्यापक परीक्षण के बिना लिया गया फैसला, धार्मिक आस्था को ध्यान में रखकर विचार की ज़रूरत
अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिक जाएंगी कि वहां वाकई जल्दी सुनवाई होकर कोई फैसला होता है या फिर एक बार फिर किसी कानूनी पेंच में यह मामला उलझ जाएगा. सवाल यह भी है कि क्या 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट विवादित भूमि के मालिकाना हक के बारे में कोई फैसला दे सकता है या नहीं? अगर ऐसा होता है तो लोकसभा चुनाव में यह एक बड़ा मुद्दा बन जाएगा.
यहां यह बताना जरूरी है कि किस तरह से वरिष्ठ वकीलों ने इस मामले की सुनवाई अगले लोकसभा चुनाव के बाद कराने की मांग की थी. पिछले साल दिसंबर में इसी मामले पर सुनवाई के वक्त मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा इसे लेकर नाराज भी हुए थे. अलग-अलग मुस्लिम याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में पेश हुए कपिल सिब्बल, दुष्यंत दवे और राजीव धवन ने कहा था कि इस मामले की सुनवाई टाल दी जाए. कपिल सिब्बल ने कहा था कि बीजेपी कह रही है कि कानूनी रास्ते के जरिए 2019 से पहले राम मंदिर बना दिया जाएगा. वे इसे चुनावी घोषणापत्र में शामिल करना चाहते हैं. अदालत को इस जाल में नहीं फंसना चाहिए. इस मामले में 90 हजार से अधिक दस्तावेज़ हैं जिनके अध्ययन के लिए समय चाहिए.
इन वकीलों ने गुस्से में अदालत से बाहर निकल जाने की धमकी भी दे डाली थी. इसके बाद मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने लताड़ लगाई थी. उन्होंने कहा था कि अदालत वकीलों के ऐसे बर्ताव से सहमत नहीं है. उन्होंने कहा था कि ऊंची आवाज़ में बात करना बर्दाश्त नहीं होगा. कानूनी मुद्दों पर बात कीजिए. ऊंची आवाज़ करने से आपकी अक्षमता उजागर होती है जो वरिष्ठ वकीलों के अनुकूल नहीं है.
VIDEO : नमाज इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं
थोड़े ही दिनों बाद कांग्रेस की ओर से दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी. हालांकि यह सिरे नहीं चढ़ पाई क्योंकि कांग्रेस के ही कई सहयोगी दलों ने इस पर साथ नहीं दिया. जब याचिका उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू के पास पहुंची तब उन्होंने उसे कानूनी सलाह लेने के बाद खारिज कर दिया था. यह सारी बातें यह बताती हैं कि किस तरह से अयोध्या विवाद पर लटके फैसले का बेहद सियासी महत्व है.
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामला पिछले आठ साल से लटका हुआ है. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि अयोध्या में विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांट दिया जाना चाहिए. इसका एक हिस्सा राम लला को, एक हिंदू पक्ष को और तीसरा हिस्सा मुस्लिम पक्ष को दिया जाना चाहिए. जमीन के मालिकाना हक लेकर आए इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. लेकिन सुनवाई लटकी और भटकी हुई है.
इसी सुनवाई के दौरान 1994 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ के फैसले का सवाल उठा जिसमें राम जन्मभूमि पर यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया गया था ताकि हिंदू पूजा पाठ कर सकें. पीठ ने तब यह भी कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है. आज सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के फैसले में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में ज़मीन अधिग्रहण को लेकर टिप्पणी की थी. जिस ज़मीन पर मस्जिद है सरकार उसका अधिग्रहण कर सकती है. नमाज़ कहीं पढ़ी जा सकती है, इसके लिए मस्जिद ज़रूरी नहीं. 1994 का ये फ़ैसला बड़ी बेंच को नहीं सौंपा जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने आज यह फैसला दो-एक से सुनाया. अब अयोध्या ज़मीन विवाद की सुनवाई 29 अक्टूबर से शुरू होगी. अगर बड़ी बेंच को मामला जाता तो अयोध्या विवाद की सुनवाई में देरी होती.
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हालांकि सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले पर एक राय नहीं है. तीसरे जज जस्टिस एस अब्दुल नजीर दोनों जजों से असहमत रहे. उन्होंने कहा 1994 का फैसला सवालों के घेरे में है. उसमें बिना विस्तृत परीक्षण के ये टिप्पणी की गईं. इसका असर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर भी पड़ा. लिहाजा मामले को संविधान पीठ भेजा जाए.
लेकिन अब यह मामला संविधान पीठ में नहीं जाएगा. जाहिर है इस फैसले के कई सियासी पहलू भी हैं. अगले लोकसभा चुनावों से ठीक पहले आए इस फैसले को बीजेपी के लिए एक बड़ी राहत के तौर पर देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि इससे बीजेपी को फायदा हो सकता है जिसके तमाम बड़े नेता कई बार कह चुके हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बनना चाहिए. हालांकि पार्टी इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने की बात कहती आई है. उधर, बाकी पार्टियां भी यही बात कहती हैं लेकिन वे केंद्र और यूपी की बीजेपी सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाती हैं.
आज के फैसले पर प्रतिक्रियाएं आनी भी शुरू हो गई हैं. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि अयोध्या मसला जितना जल्दी सुलझे उतना अच्छा है. उन्होंने कहा कि माननीय उच्चतम न्यायालय का जो फैसला आज हुआ है इस मामले में वह बहुत महत्वपूर्ण है 1994 में भी माननीय उच्चतम न्यायालय ने इस प्रकार की व्याख्या की थी और मुझे लगता है कि श्री राम जन्मभूमि से जुड़ा हुआ जो कथित विवाद है जितनी जल्दी इसका समाधान हो जाए उतनी ही जल्दी यह सौहार्द और समृद्धि के लिए आवश्यक है और देश की बहुसंख्यक जनता इस मामले का अविलंब समाधान भी चाहती है.
यह भी पढ़ें : Ayodhya case Supreme court Verdict: जानिए क्या है राम मंदिर का मुद्दा, यहां पढ़ें अयोध्या विवाद की पूरी कहानी
योगी आदित्यनाथ ने आरोप लगाया कि ऐसे कई लोग हैं जो नहीं चाहते हैं कि इस मुद्दे का कोई समाधान हो. वे न सिर्फ रोड़े अटका रहे हैं बल्कि माहौल भी खराब करना चाह रहे हैं. "हमारी अपील होगी इसका जितनी जल्दी समाधान हो जाए. जो जानबूझकर देश के अंदर विवाद और न्यूसेंस क्रिएट करना चाहते हैं वह लोग कहीं न कहीं रोड़े अटकाने का प्रयास कर रहे हैं. आज का माननीय उच्चतम न्यायालय का जो आदेश बहुत महत्वपूर्ण है और हम इसका स्वागत करते हैं और विश्वास करेंगे कि बहुत शीघ्र ही इस मामले की सुनवाई पूरी करके फैसला देगा."
उधर, आरएसएस ने भी आज के फैसले का स्वागत किया. संघ ने एक बयान में कहा कि आज सर्वोच्च न्यायालय ने श्री राम जन्मभूमि के मुकदमे में तीन सदस्यीय पीठ के द्वारा 29 अक्टूबर से सुनवाई का निर्णय किया है, इसका हम स्वागत करते हैं और विश्वास करते हैं कि शीघ्रातिशीघ्र मुकदमे का न्यायोचित निर्णय होगा.
जबकि कांग्रेस ने कहा कि बीजेपी इस मुद्दे पर देश को पिछले तीस साल से बेवकूफ बना रही है. वहीं मामले में बाबरी मस्जिद की पैरवी कर रहे पक्षकारों ने निराशा जताई है.
अयोध्या विवाद में केंद्रीय मंत्री उमा भारती पर मुकदमा चल रहा है. उन्होंने भी आज के फैसले पर अपनी बात रखी है. हालांकि उन्होंने कह डाला कि राम जन्मभूमि हिंदुओं के लिए पवित्र है मगर मुसलमानों के लिए नहीं जिनके लिए मक्का पवित्र है. उमा भारती ने उम्मीद जताई कि अब जल्दी ही राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू होगा. लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने आज के फैसले को लेकर हो रहे हंगामे पर हैरानी जताई है. उन्होंने कहा कि इतना उत्साह समझ के परे है.
यह भी पढ़ें : बहुमत से अलग जस्टिस नजीर बोले- व्यापक परीक्षण के बिना लिया गया फैसला, धार्मिक आस्था को ध्यान में रखकर विचार की ज़रूरत
अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिक जाएंगी कि वहां वाकई जल्दी सुनवाई होकर कोई फैसला होता है या फिर एक बार फिर किसी कानूनी पेंच में यह मामला उलझ जाएगा. सवाल यह भी है कि क्या 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट विवादित भूमि के मालिकाना हक के बारे में कोई फैसला दे सकता है या नहीं? अगर ऐसा होता है तो लोकसभा चुनाव में यह एक बड़ा मुद्दा बन जाएगा.
यहां यह बताना जरूरी है कि किस तरह से वरिष्ठ वकीलों ने इस मामले की सुनवाई अगले लोकसभा चुनाव के बाद कराने की मांग की थी. पिछले साल दिसंबर में इसी मामले पर सुनवाई के वक्त मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा इसे लेकर नाराज भी हुए थे. अलग-अलग मुस्लिम याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में पेश हुए कपिल सिब्बल, दुष्यंत दवे और राजीव धवन ने कहा था कि इस मामले की सुनवाई टाल दी जाए. कपिल सिब्बल ने कहा था कि बीजेपी कह रही है कि कानूनी रास्ते के जरिए 2019 से पहले राम मंदिर बना दिया जाएगा. वे इसे चुनावी घोषणापत्र में शामिल करना चाहते हैं. अदालत को इस जाल में नहीं फंसना चाहिए. इस मामले में 90 हजार से अधिक दस्तावेज़ हैं जिनके अध्ययन के लिए समय चाहिए.
इन वकीलों ने गुस्से में अदालत से बाहर निकल जाने की धमकी भी दे डाली थी. इसके बाद मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने लताड़ लगाई थी. उन्होंने कहा था कि अदालत वकीलों के ऐसे बर्ताव से सहमत नहीं है. उन्होंने कहा था कि ऊंची आवाज़ में बात करना बर्दाश्त नहीं होगा. कानूनी मुद्दों पर बात कीजिए. ऊंची आवाज़ करने से आपकी अक्षमता उजागर होती है जो वरिष्ठ वकीलों के अनुकूल नहीं है.
VIDEO : नमाज इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं
थोड़े ही दिनों बाद कांग्रेस की ओर से दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी. हालांकि यह सिरे नहीं चढ़ पाई क्योंकि कांग्रेस के ही कई सहयोगी दलों ने इस पर साथ नहीं दिया. जब याचिका उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू के पास पहुंची तब उन्होंने उसे कानूनी सलाह लेने के बाद खारिज कर दिया था. यह सारी बातें यह बताती हैं कि किस तरह से अयोध्या विवाद पर लटके फैसले का बेहद सियासी महत्व है.
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