
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुरेंद्र कोली और केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। हाइकोर्ट ने दया याचिका पर फैसला करने में ‘अत्यधिक देरी’ के आधार पर इसी साल 2006 के निठारी मामले के दोषी सुरेंद्र कोली की मौत की सजा घटाकर आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने यूपी सरकार का समर्थन करते हुए कहा कि कोली को फांसी दी जानी चाहिए। इस मामले में हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार भी याचिका दाखिल करेगी। यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कोली का फैसला करने में तीन साल का वक्त लगा और इसे अत्यधिक देरी नहीं कहा जा सकता।
इसलिए हाईकोर्ट के फैसले को रद्द किया जाना चाहिए। इससे पहले हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि कोली की दया याचिका पर फैसले में ‘अत्यधिक देरी को देखते हुए’ उसकी मौत की सजा पर अमल ‘असंवैधानिक’ होगा। अदालत ने गैर सरकारी संगठन ‘पीपुल्स यूनियन फार डेमोक्रेटिक राइट्स’ (पीयूडीआर) की जनहित याचिका पर यह फैसला सुनाया था।
इस संगठन ने दलील दी थी कि कोली की दया याचिका के निबटारे में ‘तीन साल और तीन महीने’ का समय लगा और ऐसी स्थिति में उसकी मौत की सजा पर अमल संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन होगा। बाद में कोली ने खुद भी एक याचिका दायर करके इस जनहित याचिका में दिए गए आधार पर ही मौत की सजा को चुनौती दी थी और इस दोनों याचिकाओं को नत्थी कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने यूपी सरकार का समर्थन करते हुए कहा कि कोली को फांसी दी जानी चाहिए। इस मामले में हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार भी याचिका दाखिल करेगी। यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कोली का फैसला करने में तीन साल का वक्त लगा और इसे अत्यधिक देरी नहीं कहा जा सकता।
इसलिए हाईकोर्ट के फैसले को रद्द किया जाना चाहिए। इससे पहले हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि कोली की दया याचिका पर फैसले में ‘अत्यधिक देरी को देखते हुए’ उसकी मौत की सजा पर अमल ‘असंवैधानिक’ होगा। अदालत ने गैर सरकारी संगठन ‘पीपुल्स यूनियन फार डेमोक्रेटिक राइट्स’ (पीयूडीआर) की जनहित याचिका पर यह फैसला सुनाया था।
इस संगठन ने दलील दी थी कि कोली की दया याचिका के निबटारे में ‘तीन साल और तीन महीने’ का समय लगा और ऐसी स्थिति में उसकी मौत की सजा पर अमल संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन होगा। बाद में कोली ने खुद भी एक याचिका दायर करके इस जनहित याचिका में दिए गए आधार पर ही मौत की सजा को चुनौती दी थी और इस दोनों याचिकाओं को नत्थी कर दिया गया था।
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