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This Article is From Nov 30, 2016

सतलुज यमुना लिंक नहर मामले में पंजाब सरकार को सुप्रीम कोर्ट से लगा झटका

सतलुज यमुना लिंक नहर मामले में पंजाब सरकार को सुप्रीम कोर्ट से लगा झटका
नई दिल्ली: सतलुज यमुना लिंक नहर मामले में पंजाब सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने सतलुज यमुना लिंक नहर पर आज यथास्थिति बरकरार रखने के आदेश दिए. हरियाणा सरकार की याचिका पर पंजाब को नोटिस दिया गया है. कोर्ट ने कहा कि नियुक्त तीनों रिसीवर रिपोर्ट दाखिल कर बताएंगे कि जमीनी हकीकत क्या है. तीनों रिसीवर केंद्रीय गृह सचिव, चीफ सेक्रेट्री पंजाब और DGP पंजाब दस दिनों में रिपोर्ट दाखिल करें. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आदेश को 10 दिन में अमल में लाया जाए. इस मामले में 15 दिसंबर तक सुनवाई होगी.

दरअसल, सतलुज यमुना लिंक नहर यानी एसवाईएल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. पंजाब ने एसवाईएल की जमीन भूस्वामियों को वापस करने का प्रस्ताव पारित कर दिया तो हरियाणा इसे रुकवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. हरियाणा ने अर्जी दाखिल कर एसवाईएल की जमीन सुरक्षित रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट से रिसीवर नियुक्त करने का आग्रह किया है ताकि जमीन व आधी बन चुकी नहर को कोई क्षति न पहुंचे. हरियाणा ने इसके साथ ही एसवाईएल नहर का निर्माण कराने के कोर्ट के आदेश और डिक्री को लागू करने की भी मांग की है.

हरियाणा ने दाखिल अर्जी और हलफनामे में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नहर का निर्माण पूरा करने का आदेश दिया था. केंद्र ने उस आदेश के बाद 2004 में केंद्रीय कमेटी भी गठित की, लेकिन इसके बाद नहर के निर्माण के लिए कुछ नहीं किया गया. केंद्र सरकार का दायित्व है कि वह कोर्ट के आदेश के मुताबिक नहर का निर्माण पूरा करे.

एसवाईएल के लिए अधिग्रहित जमीन भूस्वामियों को वापस देने के पंजाब के प्रस्ताव को देखते हुए हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि कोर्ट तत्काल जमीन की सुरक्षा के लिए रिसीवर नियुक्त करे. अगर ऐसा नहीं हुआ तो लोग जमीन पर कब्जा कर लेंगे और इससे नहर निर्माण का कोर्ट का आदेश और डिक्री निष्फल हो जाएगी.

हरियाणा ने पंजाब पर लगातार कोर्ट के आदेश की अवहेलना का आरोप लगाते हुए कहा है कि उसने हमेशा एसवाईएल परियोजना में बाधा डाली है. पंजाब की मंशा कभी भी हरियाणा को एसवाईएल के जरिये उसके हिस्से का 3.50 एमएएफ पानी देने की नहीं रही है. हरियाणा का कहना है कि अगर कोर्ट ने तत्काल रिसीवर नहीं नियुक्त किया तो उसे न भरपाई होने वाला नुकसान होगा जबकि रिसीवर नियुक्त करने से पंजाब या और किसी पक्षकार को कोई नुकसान नहीं होगा.

 

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