तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम बोफोर्स घोटाले में आया था (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
स्वीडन ने बोफोर्स घोटाले की जांच को इसलिए बीच में छोड़ दिया ताकि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को शर्मिंदगी न उठानी पड़े. यह जानकारी अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA की उस रिपोर्ट में दर्ज है जिसे हाल ही में डिक्लासिफाई (गुप्त सूची से हटाना) किया गया है. रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि राजीव गांधी की स्टॉकहोम यात्रा के बाद 1988 में स्वीडन ने उस जांच पर पूर्ण विराम लगा दिया था जिसमें उसके अधिकारियों को भी कथित रूप से रिश्वत दी गई थी.
80 के दशक में सामने आए इस घोटाले में आरोप लगाए गए थे कि स्वीडन की हथियार बनाने वाली कंपनी बोफोर्स ने भारत में अपनी तोप की बिक्री के लिए राजीव गांधी और अन्य लोगों को अच्छी खासी रिश्वत दी थी. 2004 में दिल्ली कोर्ट ने कहा था कि राजीव गांधी के रिश्वत लेने के कोई सबूत मौजूद नहीं हैं. 1991 में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी.
CIA ने 1998 की अपनी गुप्त रिपोर्ट में बोफोर्स हथियार घोटालों का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि स्टॉकहोम ने बोफोर्स रिश्वत मामले की जांच को शायद इसलिए बंद किया ताकि भारतीय अधिकारियों को दी गई रिश्वत के खुलासे सामने न आ सकें और प्रधानमंत्री राजीव गांधी को शर्मिंदा होने से बचाया जा सके. इस रिपोर्ट का नाम 'स्वीडन बोफोर्स हथियार घोटाला' है.
CIA ने बोफोर्स के खिलाफ लगाए गए तमाम आरोपों की लिस्ट बनाई है और कहा है कि कंपनी ने नई दिल्ली द्वारा की गई 155 एमएम तोपों की 150 करोड़ डॉलर्स की खरीद में शामिल भारतीय बिचौलिये और अधिकारियों को कथित तौर पर रिश्वत दी थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वीडन के जांचकर्ताओं ने भारत के साथ बोफोर्स के लेनदेन का राष्ट्रीय ऑडिट किया था. जून 1987 में पूरा हुआ यह ऑडिट बताता है कि करीब 4 करोड़ डॉलर्स बतौर कमीशन बिचौलियों को दिया गया था.
CIA ने लिखा है कि 'राष्ट्रीय ऑडिट के बाद स्वीडन की पुलिस ने बोफोर्स रिश्वत मामले की विशेष जांच शुरू की जिसके मुताबिक अगर यह रकम विदेशी अधिकारियों को दी गई है तो यह पूरी तरह गैरकानूनी होगा. लेकिन यह जांच भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी के स्टॉकहोम दौरे के बाद जनवरी 1988 में बंद कर दी गई. इस मामले पर आधे अधूरे मन से मांगी गई मदद पर स्वीडन ने स्विस बैंक खातों से हुए पेमेंट को ट्रैक करने में असमर्थता जाहिर कर दी.'
एजेंसी ने नोट किया है कि बोफोर्स ने यकीनन पेमेंट किया है - या तो सीधे भारतीय अधिकारियों को या फिर बिचौलियों को जिन्होंने रकम को आगे बढ़ाया ताकि तोपों की 120 करोड़ डॉलर की बिक्री को सुनिश्चित किया जाए.
रिपोर्ट में लिखा गया है कि 'रिश्वत की बात लीक हो गई और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के लिए उनके देश में मुसीबत खड़ी हो गई. स्वीडश लीक की वजह से गांधी पर पड़ रही मुसीबतों को स्टॉकहोम रोकना चाहता था और हथियार बनाने वाले कंपनी भी रिश्वत के कलंक से बचना चाहती थी. दोनों पक्षों ने एक दूसरे का साथ दिया और इस तरह रकम अदायगी की जानकारी को गुप्त रखने की योजना तैयार की गई. बाद में स्टॉकहोम ने रिश्वत की जांच को ही बंद कर दिया.'
80 के दशक में सामने आए इस घोटाले में आरोप लगाए गए थे कि स्वीडन की हथियार बनाने वाली कंपनी बोफोर्स ने भारत में अपनी तोप की बिक्री के लिए राजीव गांधी और अन्य लोगों को अच्छी खासी रिश्वत दी थी. 2004 में दिल्ली कोर्ट ने कहा था कि राजीव गांधी के रिश्वत लेने के कोई सबूत मौजूद नहीं हैं. 1991 में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी.
CIA ने 1998 की अपनी गुप्त रिपोर्ट में बोफोर्स हथियार घोटालों का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि स्टॉकहोम ने बोफोर्स रिश्वत मामले की जांच को शायद इसलिए बंद किया ताकि भारतीय अधिकारियों को दी गई रिश्वत के खुलासे सामने न आ सकें और प्रधानमंत्री राजीव गांधी को शर्मिंदा होने से बचाया जा सके. इस रिपोर्ट का नाम 'स्वीडन बोफोर्स हथियार घोटाला' है.
CIA ने बोफोर्स के खिलाफ लगाए गए तमाम आरोपों की लिस्ट बनाई है और कहा है कि कंपनी ने नई दिल्ली द्वारा की गई 155 एमएम तोपों की 150 करोड़ डॉलर्स की खरीद में शामिल भारतीय बिचौलिये और अधिकारियों को कथित तौर पर रिश्वत दी थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वीडन के जांचकर्ताओं ने भारत के साथ बोफोर्स के लेनदेन का राष्ट्रीय ऑडिट किया था. जून 1987 में पूरा हुआ यह ऑडिट बताता है कि करीब 4 करोड़ डॉलर्स बतौर कमीशन बिचौलियों को दिया गया था.
CIA ने लिखा है कि 'राष्ट्रीय ऑडिट के बाद स्वीडन की पुलिस ने बोफोर्स रिश्वत मामले की विशेष जांच शुरू की जिसके मुताबिक अगर यह रकम विदेशी अधिकारियों को दी गई है तो यह पूरी तरह गैरकानूनी होगा. लेकिन यह जांच भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी के स्टॉकहोम दौरे के बाद जनवरी 1988 में बंद कर दी गई. इस मामले पर आधे अधूरे मन से मांगी गई मदद पर स्वीडन ने स्विस बैंक खातों से हुए पेमेंट को ट्रैक करने में असमर्थता जाहिर कर दी.'
एजेंसी ने नोट किया है कि बोफोर्स ने यकीनन पेमेंट किया है - या तो सीधे भारतीय अधिकारियों को या फिर बिचौलियों को जिन्होंने रकम को आगे बढ़ाया ताकि तोपों की 120 करोड़ डॉलर की बिक्री को सुनिश्चित किया जाए.
रिपोर्ट में लिखा गया है कि 'रिश्वत की बात लीक हो गई और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के लिए उनके देश में मुसीबत खड़ी हो गई. स्वीडश लीक की वजह से गांधी पर पड़ रही मुसीबतों को स्टॉकहोम रोकना चाहता था और हथियार बनाने वाले कंपनी भी रिश्वत के कलंक से बचना चाहती थी. दोनों पक्षों ने एक दूसरे का साथ दिया और इस तरह रकम अदायगी की जानकारी को गुप्त रखने की योजना तैयार की गई. बाद में स्टॉकहोम ने रिश्वत की जांच को ही बंद कर दिया.'
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