हवा में करतब दिखते सूर्यकिरण विमान
नई दिल्ली:
पांच साल बाद आखिरकार भारतीय वायुसेना की पहचान रही सूर्यकिरण एरोबेटिक टीम वापस लौट आई है, एक नए एयरक्राफ्ट हॉक के साथ। इस बार वायुसेना दिवस के मौके फिर से दिखेंगे जाबांज नजारे। उसके चार विमान आसमान में दिखायेंगे पहले से ज्यादा रोमांचक करतब। सुर्यकिरण के कमांडिंग ऑफिसर विंग कमांडर अजीत कुलकर्णी कहते हैं, 'पुराने किऱण विमान की तुलना में हॉक काफी एडवांस है। ये काफी तेज और फुर्तीला है।
पहले सूर्यकिरण टीम इंटरमीडिएट जेट ट्रेनर किरण का इस्तेमाल करती थी। ये नौ विमानों के फोरमेशन के फ्लाई करते थे। बाद में जब पायलटों के ट्रेनिंग के लिए विमान कम पड़े तो इसका प्रदर्शन बंद कर इसे ट्रेनिंग के काम में लगा दिया गया। अब जबकि नये विमान आ गए हैं तो सूर्यकिरण टीम लौट आई है।' पर आसमान में करतब दिखाना आसान नहीं है। आम लड़ाकू विमान को उड़ाना और सूर्यकिरण टीम में उड़ाने में काफी अंतर है। विंग कमांडर साहिल गांधी कहते हैं, 'फाइटर फ्लाइंग में हम इतने करीब फ्लाई नहीं करते हैं और इसमें कोई गलती की गुजाइंश नहीं है।'
27 मई 1996 को बीदर में सूर्यकिऱण टीम का गठन किया गया और फिर 1998 में बेंगलुरू में हुए एयरशो के दौरान इसने अपना जलवा दिखाया। उसके बाद इसके कदम रुके ही नहीं। आगे बढ़ते चले गए, श्रीलंका से लेकर सिंगापुर तक इसके 450 से ज्यादा शो हुए। फिर वो दौर भी आया जब एयरो इंडिया 2011 इसकी अंतिम उड़ान साबित हुई थी। लेकिन जब इसी साल फरवरी में फिर सुर्यकिरण टीम के बनने की बात हुई तो कुछ पायलट पुराने टीम में से और कुछ नये पायलट रखे गए।
किरण विमान में करतब जहां 450 से 500 किलोमीटर की रफ्तार पर दिखाते थे वही हॉक में ये करतब 750 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से करने पड़ते है। ये ज्यादा देर तक हवा में उड़ सकता है, इसके एवियोनिक्स काफी अच्छे हैं। किऱण विमान में कंट्रोल मैनुअल था तो इसमें हाइड्रोलिक। पर एक बात किऱण विमान में खास थी, वो ये कि ये धीमे गति का विमान होने की वजह से इसके कारनामे आसानी से देखे जा सकते थे लेकिन हॉक में ये संभव नहीं।
फिर तैयार रहिए देखने के लिये इन विमानों के मार्फत भारतीय वायुसेना का पेशेवर अंदाज जिसका लोहा सारी दुनिया मानती है। सूर्यकिरण टीम के विमान पर सूर्य के किरणों की तरह नारंगी धारियां बनी हैं जो इसके नाम को सार्थक करती हैं।
पहले सूर्यकिरण टीम इंटरमीडिएट जेट ट्रेनर किरण का इस्तेमाल करती थी। ये नौ विमानों के फोरमेशन के फ्लाई करते थे। बाद में जब पायलटों के ट्रेनिंग के लिए विमान कम पड़े तो इसका प्रदर्शन बंद कर इसे ट्रेनिंग के काम में लगा दिया गया। अब जबकि नये विमान आ गए हैं तो सूर्यकिरण टीम लौट आई है।' पर आसमान में करतब दिखाना आसान नहीं है। आम लड़ाकू विमान को उड़ाना और सूर्यकिरण टीम में उड़ाने में काफी अंतर है। विंग कमांडर साहिल गांधी कहते हैं, 'फाइटर फ्लाइंग में हम इतने करीब फ्लाई नहीं करते हैं और इसमें कोई गलती की गुजाइंश नहीं है।'
27 मई 1996 को बीदर में सूर्यकिऱण टीम का गठन किया गया और फिर 1998 में बेंगलुरू में हुए एयरशो के दौरान इसने अपना जलवा दिखाया। उसके बाद इसके कदम रुके ही नहीं। आगे बढ़ते चले गए, श्रीलंका से लेकर सिंगापुर तक इसके 450 से ज्यादा शो हुए। फिर वो दौर भी आया जब एयरो इंडिया 2011 इसकी अंतिम उड़ान साबित हुई थी। लेकिन जब इसी साल फरवरी में फिर सुर्यकिरण टीम के बनने की बात हुई तो कुछ पायलट पुराने टीम में से और कुछ नये पायलट रखे गए।
किरण विमान में करतब जहां 450 से 500 किलोमीटर की रफ्तार पर दिखाते थे वही हॉक में ये करतब 750 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से करने पड़ते है। ये ज्यादा देर तक हवा में उड़ सकता है, इसके एवियोनिक्स काफी अच्छे हैं। किऱण विमान में कंट्रोल मैनुअल था तो इसमें हाइड्रोलिक। पर एक बात किऱण विमान में खास थी, वो ये कि ये धीमे गति का विमान होने की वजह से इसके कारनामे आसानी से देखे जा सकते थे लेकिन हॉक में ये संभव नहीं।
फिर तैयार रहिए देखने के लिये इन विमानों के मार्फत भारतीय वायुसेना का पेशेवर अंदाज जिसका लोहा सारी दुनिया मानती है। सूर्यकिरण टीम के विमान पर सूर्य के किरणों की तरह नारंगी धारियां बनी हैं जो इसके नाम को सार्थक करती हैं।
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