सुप्रीम कोर्ट आज यानि बुधवार को कर्नाटक में 17 बागी अयोग्य विधायकों की याचिका और सीजेआई दफ्तर को आरटीआई के अंतर्गत लाने या न लाने के मामले में अपना फैसला सुनाएगा. इसके साथ ही दिल्ली और NCR में प्रदूषण और राष्ट्रीय राजधानी में जारी ईवन- ऑड स्कीम को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा. आइए जानते हैं क्या हैं दोनों मामले में जिनमें सुप्रीम कोर्ट देगा निर्णय :
कर्नाटक अयोग्य बागी विधायकों की याचिका का मामला
कर्नाटक में 17 बागी अयोग्य विधायकों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार को तय करेगा कि ये लोग आगामी उपचुनाव में भाग ले सकते हैं या नहीं. दरअसल शीर्ष अदालत ने 25 अक्टूबर को कांग्रेस और जेडीएस के 17 बागी विधायकों द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. उनके इस्तीफे के बाद तत्कालीन अध्यक्ष के आर रमेश कुमार ने उन्हें विधान सभा के शेष कार्यकाल के सदस्य होने से अयोग्य घोषित कर दिया था. जुलाई में जेडीएस-कांग्रेस सरकार गिर गई थी.
उनकी याचिका पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने उपचुनावों को 21 अक्टूबर से 5 दिसंबर तक स्थगित करने पर सहमति व्यक्त की थी क्योंकि शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह किसी भी अंतरिम आदेश को पारित करने के बजाए मामले को पूरी तरह तय करना चाहती है.
CJI दफ्तर पर भी लागू होगा सूचना का अधिकार या नहीं
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस का दफ्तर सूचना के अधिकार (RTI) के दायरे में आएगा या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट का पांच जजों का संविधान पीठ अपना फैसला सुनाएगा. चार अप्रैल को शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय पीठ ने इस मसले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट को आरटीआई के दायरे में लाने के मामले की सुनवाई के दौरान एटॉर्नी जरनल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री की तरफ से दलील रखी थी. अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष कहा कि जजों की नियुक्ति पर कॉलेजियम जिन तथ्यों पर विचार करती है, उनकी सूचना सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए. हालांकि जजों की संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक किया जाना चाहिए.
इससे पहले जनवरी 2010 में दिए गए 88 पन्नों के अपने निर्णय में दिल्ली हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले को बरकरार रखा था. इस फैसले में कोर्ट ने केन्द्रीय सूचना आयोग के निर्देश के खिलाफ आपत्ति जताने वाली याचिका को खारिज कर दिया था.
साल 2010 में दायर इस याचिका को 2016 में संविधान बेंच को भेजे जाने का निर्णय सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने किया था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट एक बार चीफ जस्टिस के दफ्तर को आरटीआई के दायरे में आने का समर्थन कर चुका है.
शीर्ष अदालत की दो सदस्यीय पीठ ने कहा था कि सभी संवैधानिक अधिकारियों के कार्यालयों को उनके कार्यों में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व लाना चाहिए. इसके लिए इनको आरटीआई कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए. शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि चीफ जस्टिस और राज्यपाल के कार्यालयों को आरटीआई के दायरे के लाया जाना चाहिए.
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