Coronavirus Pandemic: कोरोना वायरस की महामारी के खिलाफ 'जंग' लड़ रहे डॉक्टरों व चिकित्साकर्मियों को बेहतर सुविधाएं देने की याचिका पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या हाईकोर्ट इस मामले की निगरानी नहीं कर सकते? सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद और दिल्ली की मीडिया रिपोर्ट के हवाले से कहा कि डॉक्टरों को तनख्वाह नहीं मिलने की बात सामने आई थी. ऐसी घटनाएं दोबारा नहीं होनी चाहिए.इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा है डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों के वेतन के भुगतान, उचित आवास और क्वारंटीन को लेकर शुक्रवार तक केंद्र सरकार आदेश जारी करे. केंद्र और राज्य सरकारें उनके वेतन को सुनिश्चित करें.कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने एक सर्कुलर जारी किया है कि डॉक्टरों का वेतन काटा नहीं जाएगा और चीफ सेकेट्री ये सुनिश्चित करेंगे वरना कड़ी सजा मिलेगी.केंद्र सरकार की ओर से मामले में पेश होते हुए सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General) तुषार मेहता (Tushar Mehta) ने कहा कि डॉक्टरों को वेतन का भुगतान न करना एक आपराधिक अपराध माना जाएगा और सजा को आकर्षित करेगा।. प्रत्येक राज्य के मुख्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि सभी डॉक्टरों को उनके वेतन का विधिवत भुगतान किया जाए.
डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों को समय पर वेतन सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार 24 घंटे के भीतर राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश जारी करेगा. सरकार 15 मई के आदेश को संशोधित करने के लिए भी आदेश जारी करेगी जिसमें सभी स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों के लिए अनिवार्य क्वारंटीन होगा. COVID-19 के उपचार में सभी स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के लिए न्यूनतम सात दिनों का क्वारंटीन होगा. सरकार ने अदालत में डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए उपयुक्त वैकल्पिक आवास के लिए नए आदेश जारी करने का आश्वासन दियाऔर स्वास्थ्य सचिव, मुख्य सचिवों को SC द्वारा दिशानिर्देश जारी करने के लिए कहा गयाा. केंद्र सरकार ने कहा कि अगर अस्पतालों आदि द्वारा समय पर वेतन का भुगतान नहीं किया जाता है तो यह एक अपराध है. सॉलिसिटर जनरल (SG)तुषार मेहता ने कहा कि एनडीएमए अधिनियम के तहत वेतन का भुगतान न करने पर अपराध है. मेहता का कहना है कि केंद्र एनडीएमए की धारा 10 के तहत एक निर्देश जारी करेगा. इसके साथ ही मामले में SC ने 4 सप्ताह में अनुपालन रिपोर्ट मांगी.
SG तुषार मेहता ने कहा कि डॉक्टरों को वेतन का भुगतान न करना एक आपराधिक अपराध माना जाएगा और सजा को आकर्षित करेगा. ऐसे में हर राज्य के मुख्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि सभी डॉक्टरों को उनके वेतन का विधिवत भुगतान किया जाए. उन्होंने कहा कि हम डॉक्टरों और नर्सों का विशेष ध्यान रख रहे हैं, जहां भी संभव हो, क्वारंटाइन सुविधाएं निकटतम स्थान पर दे रहे हैं. लेकिन प्रयोगशालाओं में पीपीएल की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वे सीधे मरीजों से संपर्क नहीं करते हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या हाईकोर्ट इस मामले की निगरानी नहीं कर सकते? गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को डॉक्टरों के मुद्दे पर सुनवाई की थी कुछ रिपोर्ट में यह बातें सामने आई थीं कि उन्हें सैलरी नहीं दी जा रही.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे सैनिकों (डॉक्टरों) को असंतुष्ट नहीं रखा जा सकता. यह भी कहा कि केंद्र सरकार को मेडिकल प्रोफेशनल्स के मुद्दे पर और विचार करना चाहिए. डॉक्टरों के हालात को लेकर आरुषि जैन ने याचिका दायर की थी, इसमें कहा गया था कि कोरोना के इलाज में जुटे डॉक्टर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मी ड्यूटी के बाद होटलों और गेस्ट हाउस में 7 से 14 दिन के लिए क्वारंटाइन में रह रहे हैं. इस मामले में सिर्फ लीपा-पोती से काम नहीं चलेगा. कोर्ट के मुताबिक ऐसी खबरें मिली थीं कि तीन महीने से सैलरी न मिलने के कारण डॉक्टरों को हड़ताल पर जाना पड़ा. सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए. इस बात का ध्यान रखें कि इन मसलों को कोर्ट के दखल देने की जरूरत ही न पड़े. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा, सरकार ने डॉक्टरों के लिए अनिवार्य क्वारंटीन में बदलाव क्यों किया है. इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि 15 मई को स्वास्थ्य कर्मचारियों की श्रेणियों को लेकर सर्कुलर जारी हुआ है.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब स्वास्थ्य कर्मियों की बात आती है तो कोई भेदभाव नहीं हो सकता.याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया था कि कोरोना मरीजों के इलाज में जुटे स्वास्थ्यकर्मियों के पास फुल पीपीई किट नहीं है, इसके चलते वे सीधे मरीजों के सीधे संपर्क में आते हैं, लिहाज स्वास्थ्यकर्मियों को क्वारंटाइन होना पड़ता है.
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