सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट अब फिर से ये विचार करेगा कि क्या सरकारी नौकरी में पदोन्नति में SC/ST को आरक्षण दिया जा सकता है या नहीं, भले ही इस संबंध में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को लेकर डेटा ना हो. नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा सरकारी आदेश को रद्द करने के आदेशों के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ मामले की सुनवाई करेगी.
कई राज्य सरकारों ने हाईकोर्ट के प्रमोशन में आरक्षण रद्द करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उनकी दलील है कि जब राष्ट्रपति ने नोटिफिकेशन के जरिए SC/ST के पिछड़ेपन को निर्धारित किया है, तो इसके बाद पिछड़ेपन को आगे निर्धारित नहीं किया जा सकता.
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राज्यों व SC/ST एसोसिएशनों ने दलील दी कि क्रीमी लेयर को बाहर रखने का नियम SC/ST पर लागू नहीं होता और सरकारी नौकरी में प्रमोशन दिया जाना चाहिए क्योंकि ये संवैधानिक जरूरत है. वहीं हाईकोर्ट के आदेशों का समर्थन करने वालों की दलील थी कि सुप्रीम कोर्ट के नागराज फैसले के मुताबिक इसके लिए ये साबित करना होगा कि सेवा में SC/ST का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है और इसके लिए डेटा देना होगा.
अब पांच जजों की पीठ पहले यह तय करेगी कि एम नागराज के फैसले पर पुनर्विचार की ज़रूरत है भी कि नहीं. क्योंकि 2006 में नागराज फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिना मात्रात्मक डेटा के SC/ST को प्रमोशन में आरक्षण नहीं दिया जा सकता.
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हालांकि, सुनवाई के दौरान दो जजों की पीठ का मामला सीधा संविधान पीठ को भेजने पर भी सवाल उठे. शुरुआत में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने सीधे मामले को तीन जजों की बजाए पांच जजों की संविधान पीठ भेजने की प्रक्रिया पर सवाल भी उठाए. लेकिन कानूनी मुद्दे पर विचार करते हुए बेंच ने कहा कि पांच जजों की संविधान पीठ देखेगी कि क्या नागराज फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है या नहीं. दरअसल मंगलवार को दो जजों की बेंच जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस आर बानुमति की बेंच ने ऐसे ही मामले को पांज जजों की संविधान पीठ को भेजा था.
VIDEO: जजों के नाम पर रिश्वत लेने का मामला, SC ने खारिज की याचिका
कई राज्य सरकारों ने हाईकोर्ट के प्रमोशन में आरक्षण रद्द करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उनकी दलील है कि जब राष्ट्रपति ने नोटिफिकेशन के जरिए SC/ST के पिछड़ेपन को निर्धारित किया है, तो इसके बाद पिछड़ेपन को आगे निर्धारित नहीं किया जा सकता.
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अब पांच जजों की पीठ पहले यह तय करेगी कि एम नागराज के फैसले पर पुनर्विचार की ज़रूरत है भी कि नहीं. क्योंकि 2006 में नागराज फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिना मात्रात्मक डेटा के SC/ST को प्रमोशन में आरक्षण नहीं दिया जा सकता.
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हालांकि, सुनवाई के दौरान दो जजों की पीठ का मामला सीधा संविधान पीठ को भेजने पर भी सवाल उठे. शुरुआत में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने सीधे मामले को तीन जजों की बजाए पांच जजों की संविधान पीठ भेजने की प्रक्रिया पर सवाल भी उठाए. लेकिन कानूनी मुद्दे पर विचार करते हुए बेंच ने कहा कि पांच जजों की संविधान पीठ देखेगी कि क्या नागराज फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है या नहीं. दरअसल मंगलवार को दो जजों की बेंच जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस आर बानुमति की बेंच ने ऐसे ही मामले को पांज जजों की संविधान पीठ को भेजा था.
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