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This Article is From Dec 16, 2020

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब, क्या सभी धर्मों में तलाक-भत्ता के लिए बना सकते हैं समान कानून?

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक जनहित याचिका की सुनवाई में सभी धर्मों में तलाक और महिलाओं को गुजारा भत्ता एक समान करने की याचिका को सुरक्षित रख लिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब, क्या सभी धर्मों में तलाक-भत्ता के लिए बना सकते हैं समान कानून?
सुप्रीम कोर्ट ने सभी धर्मों में समान तलाक और गुजारा भत्ता पर केंद्र को नोटिस भेजा है.
नई दिल्ली:

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक जनहित याचिका की सुनवाई में सभी धर्मों में तलाक और महिलाओं को गुजारा भत्ता एक समान करने की याचिका को सुरक्षित रख लिया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो इस मामले में बड़ी सावधानी के साथ नोटिस जारी कर रहा है. सुनवाई के दौरान CJI एस ए बोबडे ने कहा कि हम पर्सनल लॉ में कैसे अतिक्रमण कर सकते हैं. याचिका में तलाक के एक समान आधार की और महिलाओं को उनके धार्मिक संबद्धता के बावजूद गुजारा भत्ता देने में एकरूपता प्रदान करने की मांग की गई है.

जनहित याचिकाओं के लिए वरिष्ठ वकील पिंकी आनंद और मीनाक्षी अरोड़ा ने बहस की. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट याचिका पर परीक्षण करने को तैयार हुआ. सुप्रीम कोर्ट से संविधान की भावना और अंतरराष्ट्रीय समझौतों के अनुरूप देश के सभी नागरिकों के लिए तलाक के समान आधार और महिलाओं के लिए गुजारा भत्ता में बिना किसी धर्म, वर्ग, जाति के भेदभाव के समान के प्रावधान की मांग की गई है. भाजपा नेता और वकील अश्‍व‍िनी कुमार उपाध्याय ने इस बारे में जनहित याचिका दाखिल की है.

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याचिका में सुप्रीम कोर्ट से तलाक के कानूनों में विसंगतियों को दूर करने के लिए कदम उठाने की बाबत केंद्र सरकार को निर्देश दिए जाने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत तलाक के मसले पर धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर पूर्वाग्रह नहीं रखते हुए सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश जारी करे. यह भी मांग की गई है कि कोर्ट यह घोषणा करे कि तलाक के पक्षपातपूर्ण आधार अनुच्छेद 14, 15, 21 का उल्लंघन करते हैं. ऐसे में सभी नागरिकों के लिए तलाक के समान आधार के बारे में दिशानिर्देश जारी किया जाए.

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जनहित याचिका में कहा गया है कि अदालत विधि आयोग को तलाक संबंधी कानूनों का अध्ययन करने और तीन महीने के भीतर अनुच्छेद 14, 15, 21 और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप सभी नागरिकों के लिए तलाक के समान आधारों का सुझाव देने का निर्देश जारी करे. याचिका में कहा गया है कि हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन समुदाय के लोगों को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत तलाक के लिए आवेदन करना पड़ता है.

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