देश में पुलिस सुधारों की मांग हमेशा से महसूस की जाती रही है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह पुलिस सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने की मांग पर वह सुनवाई के लिए तैयार है. याचिका में जांच और कानून-व्यवस्था (लॉ एंड ऑर्डर) को अलग करने के फैसले को लागू करने की मांग की गई है. इस याचिका पर सुनवाई सबरीमाला मामले के बाद होगी. इस दौरान, वकील प्रशांत भूषण ने शीर्ष न्यायालय को बताया कि जब पुलिस पर ही आरोप हों तो जांच कैसे होगी.
जुलाई 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने देश में पुलिस सुधारों को लेकर कुछ निर्देश दिए थे. कोर्ट ने केंद्र और सभी राज्यों को आदेश दिया था कि वे कहीं भी एक्टिंग DGP (कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक) नियुक्त नहीं करेंगे. कोर्ट ने कहा था कि राज्य पद रिक्त होने से तीन महीने पहले UPSC को टॉप IPS अफसरों की सूची भेजेंगे. राज्य उसी अफसर को DGP बनाएंगे जिसका कार्यकाल दो साल से ज्यादा होगा. दरअसल वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि डीजीपी का कार्यकाल कम से कम दो साल होगा.
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इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने साल 2016 में पुलिस सुधारों की दिशा में अहम कदम उठाते हुए आदेश दिया था कि देशभर के थानों में दर्ज एफआईआर (FIR) को 24 घंटे के भीतर पुलिस या राज्य सरकार की वेबसाइट पर अपलोड किया जाए. कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि किसी तकनीकी कारण से दिक्कत आती है तो एफआईआर को 48 घंटे में अपलोड किया जाना अनिवार्य है.
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कोर्ट ने इस मामले से महिलाओं के साथ यौन शौषण, बच्चों के यौन शोषण यानी पोक्सो, आतंकवाद और विद्रोह जैसे संवेदनशील मामलों में छूट दी थी. शीर्ष न्यायालय ने आदेश में कहा था कि ऐसे मामलों में एफआईआर अपलोड करने की जरूरत नहीं है.
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