क्या CAA और कृषि कानूनों जैसे केंद्रीय कानूनों के खिलाफ राज्य ला सकते हैं प्रस्ताव? SC ने कही यह बात

CAA के खिलाफ कई राज्यों की विधानसभा में लाए गए प्रस्ताव के बाद केंद्रीय कानूनों के खिलाफ राज्यों की विधायी शक्तियों पर सवाल उठाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को और रिसर्च करने को कहा है.

क्या CAA और कृषि कानूनों जैसे केंद्रीय कानूनों के खिलाफ राज्य ला सकते हैं प्रस्ताव? SC ने कही यह बात

CAA और अन्य केंद्रीय कानूनों के खिलाफ राज्यों की विधायी शक्तियों पर SC में सवाल.

खास बातें

  • राज्यों की विधायी क्षमता पर सवाल उठाने वाली याचिका
  • सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को और रिसर्च करने को कहा
  • अगले चार हफ्तों बाद अगली सुनवाई
नई दिल्ली:

क्या CAA (Citizenship Amendment Act) और कृषि कानूनों जैसे केंद्रीय कानूनों के खिलाफ राज्य की विधानसभा प्रस्ताव पारित कर सकती है? राज्यों की विधायी क्षमता पर सवाल उठाने वाली याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इस मामले में और रिसर्च कर वापस आने को कहा है. प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा कि 'हम नहीं चाहते कि मामले को सुलझाने की बजाए समस्या को और बढ़ा दिया जाए.' इस मामले में अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी.

आज सुनवाई के दौरान CJI ने कहा, 'क्या केरल विधानसभा ने लोगों को ये नहीं कहा कि कानून का पालन ना करें. उन्होंने सिर्फ केंद्र से अनुरोध किया है कि कानून पर फिर से विचार करें. यह सिर्फ विधानसभा में प्रस्ताव पास किया गया है. क्या राज्य कोई प्रस्ताव भी पास नहीं कर सकते? इसमें गलत क्या है?

उन्होंने कहा, 'अगर आप ये कहते हैं कि केरल विधानसभा कह रही है कि वो केंद्र के कानून का पालन नहीं करेंगे तो हम आपके साथ हो सकते हैं, लेकिन क्या राज्य की विधानसभा को नागरिक का दर्जा दिया जा सकता है?'

बता दें कि याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि नियम साफ है कि केंद्रीय कानून से राज्यों का कोई लेना-देना नहीं है. CAA यानी नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ करीब 60 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं और इसे अदालत द्वारा तय किया जाना है. ऐसे में फिर भी केरल विधानसभा ने कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास किया है.

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बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में CAA और केंद्रीय कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने की राज्य विधानसभाओं की विधायी क्षमता को चुनौती दी गई है. समता आंदोलन समिति ने यह याचिका दाखिल की है. याचिकाकर्ता के अनुसार, राजस्थान, केरल, पंजाब और पश्चिम बंगाल की चार अलग-अलग राज्यों की विधानसभाओं की विधायी कार्रवाइयों ने नागरिकों को प्रभावित किया है. 

यह याचिका कानून के एक प्रश्न को उठाने के लिए दायर की गई है कि क्या संवैधानिक ढांचे के भीतर, विशेष रूप से अनुच्छेद 213 (2) (ए) और अनुच्छेद 246 (1) के तहत, कोई भी राज्य विधानमंडल, केंद्रीय कानून की आलोचना करते हुए ' प्रस्ताव' पास कर सकता है जो सातवीं अनुसूची की सूची I में आता है.

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याचिकाकर्ता के अनुसार राजस्थान, केरल, पंजाब और पश्चिम बंगाल के राज्य विधानसभाओं ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 की कथित रूप से निंदा की और प्रतिकूल रूप से उनके खिलाफ प्रस्ताव पास किए, जबकि ये कानून संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद और राष्ट्रपति की सहमति को विधिवत रूप से अधिसूचित किया गया. इसी तरह अन्य हाल ही में पारित केंद्रीय विधानों (कृषि कानूनों) के खिलाफ एक प्रस्ताव पास किए गए हैं. इन कानूनों को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भी चुनौती दी गई है.

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