प्रशांत किशोर को अमरिंदर सिंह का सलाहकार बनाए जाने से जुड़ी याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि प्रशांत ने खुद 4 अगस्त, 2021 को मुख्यमंत्री के सलाहकार के पद से इस्तीफा दे दिया है. इसलिए याचिका में कुछ नहीं बचा है.

प्रशांत किशोर को अमरिंदर सिंह का सलाहकार बनाए जाने से जुड़ी याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत किशोर से जुड़ी जनहित याचिका को खारिज किया

नई दिल्ली:

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) को पंजाब के तत्कालीन सीएम अमरिंदर सिंह (CM Amarinder Singh) के प्रमुख सलाहकार का पद देने के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सुनवाई बंद की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रशांत किशोर के इस्तीफा देने के बाद सुनवाई ज़रूरी नहीं है. याचिका में इस बात का विरोध किया गया था कि प्रशांत को सरकारी खजाने से सुविधाएं दी जाएंगी. प्रशांत किशोर ने इस साल 4 अगस्त को पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के सलाहकार के पद से इस्तीफा दे दिया है. इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक याचिका का निपटारा किया, जिसे मुख्यमंत्री के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था. 

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कोर्ट ने आदेश में कहा कि प्रशांत ने खुद 4 अगस्त, 2021 को मुख्यमंत्री के सलाहकार के पद से इस्तीफा दे दिया है. इसलिए याचिका में कुछ नहीं बचा है.जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ लाभ सिंह और सतिंदर सिंह द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी. इसमें 1 मार्च, 2021 को जारी आदेश को चुनौती दी गई थी. इसमें किशोर को कैबिनेट रैंक के साथ पंजाब के मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था.

वहीं 17 मार्च को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने उनकी चुनौती को खारिज कर दिया था. इ सके बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. पंजाब की वकील रंजीता रोहतगी के वकील ने पीठ को सूचित किया कि किशोर ने इस्तीफा दे दिया है. याचिकाकर्ता के वकील, बलतेज सिंह ने तर्क दिया कि किशोर के इस्तीफे के बावजूद अनधिकृत नियुक्ति और सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ के बड़े मुद्दे शेष हैं. 

पीठ ने कहा कि वह उन मुद्दों में नहीं जाना चाहती क्योंकि वह व्यक्ति पहले ही इस्तीफा दे चुका है. याचिका के निपटारे के आदेश में पीठ ने दर्ज किया कि वह हाईकोर्ट के तर्क को मंजूरी नहीं दे रहा है . हम फैसले में दिए गए तर्क को महत्व नहीं दे रहे हैं.  

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दरअसल हाईकोर्ट ने कहा था कि मुख्यमंत्री, एक निर्वाचित प्रतिनिधि होने के नाते राज्य के निवासियों के प्रति सुशासन सहित कई संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं और इस प्रकार, वह अपने सलाहकारों को चुनने के लिए स्वतंत्र हैं.