सुप्रीम कोर्ट ने एन श्रीनिवासन और निरंजन शाह के बीसीसीआई की एसजीएम में भाग लेने पर रोक लगा दी है.
नई दिल्ली:
श्रीनिवासन और निरंजन शाह बीसीसीआई एसजीएम (विशेष साधारण सभा) में हिस्सा नहीं ले सकेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों के हिस्सा लेने पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बैठक में सिर्फ राज्य संघों के पदाधिकारी ही हिस्सा ले सकते हैं.
बीसीसीआई में सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक राज्य-एक वोट शायद देश में अच्छा विचार न हो लेकिन इस पर बहस की जरूरत है. सभी स्टेट क्रिकेट एसोसिएशनों से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 26 जुलाई को होने वाले स्पेशल जनरल मीटिंग में एसोसिएशन के सदस्य ही भाग ले सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मीटिंग में लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को लागू करने पर चर्चा होगी.
सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई में तय करेगा कि क्या अयोग्य करार व्यक्ति राज्य की ओर से नामित सदस्य के तौर पर मीटिंग में भाग ले सकता है या नहीं? अगली सुनवाई 18 अगस्त को होगी.
दरअसल एन श्रीनिवासन को तमिलनाडु स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन का नॉमिनी बनाया गया था जिसके आधार पर वह पिछली मीटिंग में शामिल हो गए थे. इस पर सीओए ने आपत्ति जताई थी.
भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) की हाल ही में संपन्न विशेष आमसभा में राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के नामित प्रतिनिधि के रूप में बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष एन श्रीनिवासन और पूर्व सचिव निरंजन शाह को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया था. इस मुद्दे पर दोनों से जवाब मांगते हुए कहा गया कि अयोग्य घोषित किया गया कोई भी सदस्य मनोनीत सदस्य के रूप में भी इस तरह की बैठक में शामिल नहीं हो सकता.
इस बीच पूर्व सीएजी विनोद राय की अध्यक्षता वाली प्रशासकों की समिति ने अपनी चौथी स्थिति रिपोर्ट के साथ हाल ही में संपन्न विशेष आम सभा की एक सीडी संलग्न की और कहा कि श्रीनिवासन और शाह शीर्ष अदालत के आदेश की वजह से किसी भी पद पर रहने के अयोग्य हैं और वे राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के मनोनीत सदस्य के रूप में विशेष आमसभा में शामिल नहीं हो सकते.
वीडियो- श्रीनिवासन को बैठक में रोकने का ड्रामा
शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही बीसीसीआई के एक अन्य पूर्व अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के व्यक्तिगत रूप से पेश होने के बाद उनके खिलाफ लंबित अवमानना के मामले में उनकी बिना शर्त माफी स्वीकार कर ली. न्यायालय ने उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही भी समाप्त कर दी. न्यायालय ने इस प्रशासकों की समिति (सीओए) से रामचंद्र गुहा और विक्रम लिमये के त्यागपत्र स्वीकार करते हुए उन्हें उनकी जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया. इन दोनों ने बीसीसीआई के प्रशासक के रूप में काम करने में असमर्थता व्यक्त करते हुए त्यागपत्र दे दिया था.
बीसीसीआई में सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक राज्य-एक वोट शायद देश में अच्छा विचार न हो लेकिन इस पर बहस की जरूरत है. सभी स्टेट क्रिकेट एसोसिएशनों से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 26 जुलाई को होने वाले स्पेशल जनरल मीटिंग में एसोसिएशन के सदस्य ही भाग ले सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मीटिंग में लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को लागू करने पर चर्चा होगी.
सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई में तय करेगा कि क्या अयोग्य करार व्यक्ति राज्य की ओर से नामित सदस्य के तौर पर मीटिंग में भाग ले सकता है या नहीं? अगली सुनवाई 18 अगस्त को होगी.
दरअसल एन श्रीनिवासन को तमिलनाडु स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन का नॉमिनी बनाया गया था जिसके आधार पर वह पिछली मीटिंग में शामिल हो गए थे. इस पर सीओए ने आपत्ति जताई थी.
भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) की हाल ही में संपन्न विशेष आमसभा में राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के नामित प्रतिनिधि के रूप में बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष एन श्रीनिवासन और पूर्व सचिव निरंजन शाह को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया था. इस मुद्दे पर दोनों से जवाब मांगते हुए कहा गया कि अयोग्य घोषित किया गया कोई भी सदस्य मनोनीत सदस्य के रूप में भी इस तरह की बैठक में शामिल नहीं हो सकता.
इस बीच पूर्व सीएजी विनोद राय की अध्यक्षता वाली प्रशासकों की समिति ने अपनी चौथी स्थिति रिपोर्ट के साथ हाल ही में संपन्न विशेष आम सभा की एक सीडी संलग्न की और कहा कि श्रीनिवासन और शाह शीर्ष अदालत के आदेश की वजह से किसी भी पद पर रहने के अयोग्य हैं और वे राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के मनोनीत सदस्य के रूप में विशेष आमसभा में शामिल नहीं हो सकते.
वीडियो- श्रीनिवासन को बैठक में रोकने का ड्रामा
शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही बीसीसीआई के एक अन्य पूर्व अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के व्यक्तिगत रूप से पेश होने के बाद उनके खिलाफ लंबित अवमानना के मामले में उनकी बिना शर्त माफी स्वीकार कर ली. न्यायालय ने उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही भी समाप्त कर दी. न्यायालय ने इस प्रशासकों की समिति (सीओए) से रामचंद्र गुहा और विक्रम लिमये के त्यागपत्र स्वीकार करते हुए उन्हें उनकी जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया. इन दोनों ने बीसीसीआई के प्रशासक के रूप में काम करने में असमर्थता व्यक्त करते हुए त्यागपत्र दे दिया था.
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