मुलायम द्वारा 325 प्रत्याशियों की सूची जारी होने के बाद सपा की घमासान सतह पर आ गई है
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव द्वारा बुधवार को 325 उम्मीदवारों की सूची जारी करने के बाद सपा की अंदरखाने चल रही कलह एक बार फिर सतह पर आ गई है. इस सूची में शिवपाल समर्थकों को तरजीह दी गई है और अखिलेश के कई समर्थक मंत्रियों का पत्ता काट दिया गया है. अखिलेश यादव ने भी पलटवार करते हुए मुलायम के दो करीबियों को बर्खास्त कर दिया है.
हालांकि कल महोबा में उन्होंने कहा कि वह मुलायम सिंह से अच्छा काम करने वालों के नाम पर फिर से विचार करने का आग्रह करेंगे जबकि मुलायम सिंह ने पहले ही साफ कर दिया कि अब टिकटों में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया जाएगा. हालांकि अभी 78 सीटों पर प्रत्याशी घोषित नहीं किए गए हैं. मौजूदा घमासान के बीच अपनी भविष्य की रणनीति तय करने के लिए अखिलेश ने आज अपने समर्थकों की बैठक बुलाई है. सवाल उठता है कि मौजूदा परिस्थितियों में अखिलेश के पास अब क्या विकल्प हैं क्योंकि उनकी आपत्तियों के बावजूद सपा सुप्रीमो ने कई नामों पर मुहर लगाई है.
मौजूदा परिस्थितियों में सपा में मची घमासान के बीच लखनऊ के सियासी हलकों में गहमागहमी तेज हो गई है. इसमें सपा में एक बार फिर विभाजन के कयास लगाए जाने लगे हैं. इस बात की बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि पिछले दिनों शिवपाल और अखिलेश के बीच की तनातनी के दौरान सार्वजनिक रूप से शिवपाल ने अखिलेश पर आरोप लगाते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री ने उनसे कहा था कि वह अलग दल बना लेंगे. इस बात की सच्चाई के लिए शिवपाल अपने बेटे की कसम खाने को भी तैयार थे. ऐसे में अब कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या अखिलेश अपने पिता की छाया से निकलकर अब अपनी अलग राह बनाने की तरफ अग्रसर हैं. क्या यूपी चुनाव में इतना कम वक्त रहने के बावजूद क्या वह इतना बड़ा जोखिम ले सकते हैं?
अखिलेश की साफ छवि
अखिलेश के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि जनता के बीच उनकी इमेज बेहद पाक-साफ है. युवाओं में उनकी अपील है. उनको यकीन है कि उन्होंने पिछले पांच वर्षों में जो काम किया है, जनता उसको याद रखेगी और अपने इसी काम के दम पर विकास और अपनी साफ छवि के साथ जनता के बीच चुनाव में जाना चाहते हैं. इसके बावजूद सपा से अलग राह की स्थिति में उनको सहयोगियों की जरूरत होगी.
हालांकि इस संबंध में अखिलेश ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा था कि वैसे तो सपा अकेले दम पर ही बहुमत में आएगी लेकिन यदि कांग्रेस से गठबंधन हो जाएगा तो राज्य में 300 से भी ज्यादा सीटें जीतेंगे. अब मुलायम सिंह ने घोषणा करते हुए कहा है कि सपा किसी के साथ गठबंधन नहीं करेगी. ऐसी स्थिति में यदि अखिलेश अपनी अलग राह चुनते हैं तो वह कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकते हैं.
कांग्रेस की स्थिति
शीला दीक्षित को पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करके और राहुल गांधी की धुआंधार रैलियों के दम पर कांग्रेस ने शुरुआत में माहौल बनाने की कोशिश की लेकिन जल्द ही उसे लगा कि उसे एक मजबूत सहारे की जरूरत है. मौजूदा सूरतेहाल में सपा के साथ उनकी बातचीत भी चली. कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इस सिलसिले में मुलायम सिंह और अखिलेश से मुलाकात भी की.
अब मुलायम की गठबंधन नहीं करने की घोषणा से कांग्रेस की उम्मीदों को झटका तो लगा है लेकिन अभी भी उसकी उम्मीद काफी हद तक अखिलेश के रुख पर निर्भर है. अखिलेश की सेक्युलर, साफ-छवि और विकासमूलक एजेंडा भी कांग्रेस के लिए मुफीद है. ऐसे में सपा में चल रही घमासान पर कांग्रेस की पैनी नजर है. इन परिस्थितियों में आने वाले कुछ दिन सपा, अखिलेश और कांग्रेस के लिए बेहद अहम साबित होने जा रहे हैं.
हालांकि कल महोबा में उन्होंने कहा कि वह मुलायम सिंह से अच्छा काम करने वालों के नाम पर फिर से विचार करने का आग्रह करेंगे जबकि मुलायम सिंह ने पहले ही साफ कर दिया कि अब टिकटों में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया जाएगा. हालांकि अभी 78 सीटों पर प्रत्याशी घोषित नहीं किए गए हैं. मौजूदा घमासान के बीच अपनी भविष्य की रणनीति तय करने के लिए अखिलेश ने आज अपने समर्थकों की बैठक बुलाई है. सवाल उठता है कि मौजूदा परिस्थितियों में अखिलेश के पास अब क्या विकल्प हैं क्योंकि उनकी आपत्तियों के बावजूद सपा सुप्रीमो ने कई नामों पर मुहर लगाई है.
मौजूदा परिस्थितियों में सपा में मची घमासान के बीच लखनऊ के सियासी हलकों में गहमागहमी तेज हो गई है. इसमें सपा में एक बार फिर विभाजन के कयास लगाए जाने लगे हैं. इस बात की बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि पिछले दिनों शिवपाल और अखिलेश के बीच की तनातनी के दौरान सार्वजनिक रूप से शिवपाल ने अखिलेश पर आरोप लगाते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री ने उनसे कहा था कि वह अलग दल बना लेंगे. इस बात की सच्चाई के लिए शिवपाल अपने बेटे की कसम खाने को भी तैयार थे. ऐसे में अब कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या अखिलेश अपने पिता की छाया से निकलकर अब अपनी अलग राह बनाने की तरफ अग्रसर हैं. क्या यूपी चुनाव में इतना कम वक्त रहने के बावजूद क्या वह इतना बड़ा जोखिम ले सकते हैं?
अखिलेश की साफ छवि
अखिलेश के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि जनता के बीच उनकी इमेज बेहद पाक-साफ है. युवाओं में उनकी अपील है. उनको यकीन है कि उन्होंने पिछले पांच वर्षों में जो काम किया है, जनता उसको याद रखेगी और अपने इसी काम के दम पर विकास और अपनी साफ छवि के साथ जनता के बीच चुनाव में जाना चाहते हैं. इसके बावजूद सपा से अलग राह की स्थिति में उनको सहयोगियों की जरूरत होगी.
हालांकि इस संबंध में अखिलेश ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा था कि वैसे तो सपा अकेले दम पर ही बहुमत में आएगी लेकिन यदि कांग्रेस से गठबंधन हो जाएगा तो राज्य में 300 से भी ज्यादा सीटें जीतेंगे. अब मुलायम सिंह ने घोषणा करते हुए कहा है कि सपा किसी के साथ गठबंधन नहीं करेगी. ऐसी स्थिति में यदि अखिलेश अपनी अलग राह चुनते हैं तो वह कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकते हैं.
कांग्रेस की स्थिति
शीला दीक्षित को पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करके और राहुल गांधी की धुआंधार रैलियों के दम पर कांग्रेस ने शुरुआत में माहौल बनाने की कोशिश की लेकिन जल्द ही उसे लगा कि उसे एक मजबूत सहारे की जरूरत है. मौजूदा सूरतेहाल में सपा के साथ उनकी बातचीत भी चली. कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इस सिलसिले में मुलायम सिंह और अखिलेश से मुलाकात भी की.
अब मुलायम की गठबंधन नहीं करने की घोषणा से कांग्रेस की उम्मीदों को झटका तो लगा है लेकिन अभी भी उसकी उम्मीद काफी हद तक अखिलेश के रुख पर निर्भर है. अखिलेश की सेक्युलर, साफ-छवि और विकासमूलक एजेंडा भी कांग्रेस के लिए मुफीद है. ऐसे में सपा में चल रही घमासान पर कांग्रेस की पैनी नजर है. इन परिस्थितियों में आने वाले कुछ दिन सपा, अखिलेश और कांग्रेस के लिए बेहद अहम साबित होने जा रहे हैं.
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