सोहराबुद्दीन शेख और तुलसी प्रजापति फर्जी एनकाउंटर में फैसला तो 21 दिसंबर को ही आ गया था. सीबीआई की विशेष अदालत के जज एसजे शर्मा ने सबूतों के अभाव में सभी 22 आरोपियों को बरी कर दिया था. अब करीब सप्ताह भर बाद मुकदमें के फैसले में कुछ अहम मुद्दे सामने आए हैं जिनमें सबसे अहम है जांच एजेंसी सीआईडी और सीबीआई की खिंचाई. जज एसजे शर्मा ने तकरीबन 350 पन्नों में अपने फैसले के पैरा 210 में लिखा है कि सीबीआई मामले में सच की तह तक जाने के बजाय पहले से लिखी स्क्रिप्ट के मुताबिक सबूतों को गढ़ने में लगी थी.
जज ने यहां तक लिखा है कि जो सबूत, गवाह और मटेरियल मुकदमे के दौरान मेरे सामने रखे गए उन्हें देखते हुए मुझे ये कहने में कोई झिझक नहीं है कि एक अहम जांच एजेंसी सीबीआई ने पहले कभी राजनीतिक उद्देश्य से ऐसी बनी बनाई कहानी पर काम किया होगा. जाहिर है किसी भी जांच एजेंसी के लिए अदालत की इस तरह की टिप्पणी उसकी छवि के लिए ठीक नहीं है.
जज एसजे शर्मा ने आगे लिखा है कि ज्यादातर गवाह अदालत में बयान के वक्त अपने बयान से मुकर गए. पर मेरा मानना है कि वे मुकरे नहीं बल्कि अदालत के सामने उन्होंने निडर होकर जो सच था वह बताया. इससे साफ है कि सीबीआई पूरी जांच में स्क्रिप्ट के हिसाब से तय उद्देश्य को पाने के लिए काम करती रही. ताकि किसी भी तरह राजनीतिक नेताओं को फंसाया जाए. इसके लिए सीबीआई ने झूठे बयान दर्ज किए, सुबूत गढ़े जो अदालत की न्यायिक जांच में खड़े नहीं हो पाए. गवाहों ने अदालत में बिना किसी भय के बयान दिए. उससे साफ है कि अपनी कहानी साबित करने के लिए सीबीआई ने गवाहों के बयान जानबूझकर गलत लिए.
सोहराबुद्दीन मुठभेड़ केस में सभी 22 आरोपी बरी, सीबीआई की विशेष अदालत ने सुनाया फैसला
जज ने अपनी टिप्पणी में आरोपी क्रमांक 16 का जिक्र किया है. आरोपी क्रमांक 16 मतलब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह. अमित शाह मामले में पहले ही आरोप मुक्त हो चुके हैं. जज ने लिखा है कि मेरे पहले के जज ने डिस्चार्ज का आदेश देते समय आरोपी नम्बर 16 के बारे में लिखा कि सब कुछ देखते हुए ऐसा लगता है कि पूरी जांच राजनीतिक उद्देश्य से की गई थी. जज एसजे शर्मा का इशारा साफ है कि अमित शाह को एक साजिश के तहत मामले में फंसाने की कोशिश हुई थी.
जज ने आगे ये भी लिखा है सीबीआई की लापरवाही भरी जांच और झूठे सबूतों से पता चलता है कि जल्दबाजी में पहले की जांच को आगे बढ़ाया गया और उन बेगुनाह पुलिस वालों को फंसाया जिन्हें किसी भी साजिश की जानकारी नही थी.
फैसला खत्म करने के बाद जज ने लिखा है कि हो सकता है इस फैसले से समाज और पीड़ित परिवार में गुस्सा और झुंझलाहट पैदा हो. लेकिन बिना पुख्ता सुबूत के सिर्फ भावनाओं में बहकर फैसला नहीं दिया जाता. अभियोजन पक्ष की जिम्मेदारी होती है कि केस को साबित करे, वो भी पुख्ता सबूतों के आधार पर.
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सोहराबुद्दीन शेख की हत्या अनसुलझी रह गई है. उसकी पत्नी कौसरबी की कहानी भी सबूतों के अभाव में बिना किसी अंजाम तक पहुंचे अधूरी ही रह गई. जज के अनुसार सोहराबुद्दीन के इंदौर से हैदराबाद और फिर बस से सांगली जाने की बात, उसके अपहरण और फिर मारकर जला देने की बात साबित नहीं हो पाई. इसलिए मेरे पास आरोपियों को बरी करने के अलावा कोई चारा नहीं है. जज एसजे शर्मा का ये आखिरी फैसला है क्योंकि वे इसी महीने रिटायर हो रहे हैं.
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