सिद्धा हाथी (फाइल फोटो)
बेंगलुरु:
तक़रीबन 40 साल के नर हाथी सिद्धा ने गुरुवार रात तक़रीबन 2 बजे दम तोड़ दिया. उसका इलाज बनरगट्टा नेशनल पार्क के वेटरनरी डॉक्टर अरुण की देख-रेख में चल रहा था. इन्होंने NDTV को बताया कि उसकी सेहत लगातार सुधर रही थी और ख़ुराक भी लगभग सामान्य हो गई थी, ऐसे में उसकी मौत की वजह क्या है, वो पोस्टमार्टम के बाद ही पता चल पाएगा.
सिद्धा नाम के इस हाथी का दाहिना पैर ज़ख़्मी था. इसकी दो वजह बताई जा रही हैं. पहली या तो ये गड्ढे में गिरने से ज़ख़्मी हुआ या फिर किसी ने इसके पैरों में गोली मारी जिससे वो गड्ढे में गिरा.
बेंगलुरु से तक़रीबन 35 किलोमीटर दूर मंचन्बेले डैम में सिद्धा सितंबर महीने की शुरुआत में दिखा था. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक वो लगभग 15 से 18 घंटे पानी में बिताता था. ये सिलसिला लगभग 40 दिनों तक चला. बाद में अक्टूबर के मध्य में इसके इलाज का प्रयास शुरू हुआ. असम और केरल से पशु चिकित्सक बुलवाये गए जिन्होंने बताया कि उसके दाहिने पैर में सूजन फ्रैक्चर और इंफेक्शन की वजह से है.
वो जब पानी में रहता तो वज़न कम हो जाता और साथ ही साथ उसके घाव के बेजान टिशूज को मछलियां खा जातीं. ऐसे में उसका दर्द काफी कम हो जाता, इसीलिए सिद्धा अपना ज़यादा वक़्त पानी में बिताया करता था.
सिद्धा का इलाज शुरू होने के बाद उसने खाना छोड़ दिया और एक तरफ ज़मीन पर लेट गया. तब सेना के मद्रास इंजीनियरिंग ग्रुप ने काफी मशक्कत कर लोहे का एक पिंजड़ा तैयार किया ताकि बैल्ट के सहारे उसे खड़ा रखा जा सके. इन प्रयासों के बाद पिछले तक़रीबन 15 -20दिनों से उसकी हालत में सुधार आया और ख़ुराक भी लगभग सामान्य हो गई थी लेकिन अचानक गुरुवार रात उसने दम तोड़ दिया.
सिद्धा नाम के इस हाथी का दाहिना पैर ज़ख़्मी था. इसकी दो वजह बताई जा रही हैं. पहली या तो ये गड्ढे में गिरने से ज़ख़्मी हुआ या फिर किसी ने इसके पैरों में गोली मारी जिससे वो गड्ढे में गिरा.
बेंगलुरु से तक़रीबन 35 किलोमीटर दूर मंचन्बेले डैम में सिद्धा सितंबर महीने की शुरुआत में दिखा था. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक वो लगभग 15 से 18 घंटे पानी में बिताता था. ये सिलसिला लगभग 40 दिनों तक चला. बाद में अक्टूबर के मध्य में इसके इलाज का प्रयास शुरू हुआ. असम और केरल से पशु चिकित्सक बुलवाये गए जिन्होंने बताया कि उसके दाहिने पैर में सूजन फ्रैक्चर और इंफेक्शन की वजह से है.
वो जब पानी में रहता तो वज़न कम हो जाता और साथ ही साथ उसके घाव के बेजान टिशूज को मछलियां खा जातीं. ऐसे में उसका दर्द काफी कम हो जाता, इसीलिए सिद्धा अपना ज़यादा वक़्त पानी में बिताया करता था.
सिद्धा का इलाज शुरू होने के बाद उसने खाना छोड़ दिया और एक तरफ ज़मीन पर लेट गया. तब सेना के मद्रास इंजीनियरिंग ग्रुप ने काफी मशक्कत कर लोहे का एक पिंजड़ा तैयार किया ताकि बैल्ट के सहारे उसे खड़ा रखा जा सके. इन प्रयासों के बाद पिछले तक़रीबन 15 -20दिनों से उसकी हालत में सुधार आया और ख़ुराक भी लगभग सामान्य हो गई थी लेकिन अचानक गुरुवार रात उसने दम तोड़ दिया.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं